हिमाचल प्रदेश की फिजा में ठंडक है, लेकिन यहां का सियासी पारा चुनाव की तारीख नजदीक आने के साथ-साथ चढ़ता जा रहा है. राजनीति के सूरमा एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए अपने तरकश से हर तरह के तीर निकाल रहे हैं. बीजेपी इस चुनाव में सोच समझकर किसी को भी अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं करने की रणनीति पर चल रही थी, लेकिन कांग्रेस ने इस मुद्दे पर हमलावर होकर बैठे बिठाए अपने लिए मुसीबत मोल ले ली है.
दरअसल, जब तक हिमाचल प्रदेश में बीजेपी ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा घोषित नहीं किया था, तब तक यह लड़ाई मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह बनाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मानी जा रही थी. इस लड़ाई में बीजेपी को काफी राजनीतिक नुकसान हो रहा था, क्योंकि राहुल गांधी सहित कई बड़े पार्टी नेता नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दे उछालकर इनसे नाराज चल रहे आम लोगों सहित व्यापारी वर्ग को अपने करीब लाने में काफी हद तक कामयाब हो चुके थे.
कांग्रेस ने जैसे ही वीरभद्र सिंह को अपना मुख्यमंत्री चेहरा घोषित किया, तैसे ही पार्टी के कई नेता बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री चेहरा घोषित न करने की बात को बार-बार उछालने लगे. हिमाचल के सियासी गलियारों में ऐसे कयास भी लगाए जाने लगे कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व हरियाणा और उत्तर प्रदेश की तरह हिमाचल में भी जीत हासिल होने की स्थिति में मुख्यमंत्री के लिए किसी नए चेहरे पर दांव खेलेगा.
ऐसी अटकलों से पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का खेमा खुद को आहत महसूस कर रहा था और चुनाव प्रचार के लिए जी-जान से नहीं जुट पा रहा था. बीजेपी के मास्टर रणनीतिकार ने हिमाचल प्रदेश पहुंचते ही पार्टी कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया और पाया कि धूमल की सूबे के हर जिले में स्वीकार्यता है. ये भी पाया गया कि पार्टी से जिन और नेताओं के नाम मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर उछल रहे थे, उनकी पकड़ सिर्फ अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों तक ही सीमित थी.
राजनीति के जानकारों के मुताबिक अमित शाह ने धूमल के नाम पर मुख्यमंत्री चेहरे के लिए इस वजह से भी मुहर लगाई, क्योंकि हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पार्टी हाईकमान के पसंदीदा मुख्यमंत्री कोई खास कारगुजारी नहीं दिखा पाए. अलबत्ता इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के नाम चाहे वे मनोहर लाल खट्टर हों या फिर योगी आदित्यनाथ, कई विवादों से जुड़े नजर आए.
हिमाचल के मुख्यमंत्री चेहरे के लिए बीजेपी की ओर से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा के नाम की चर्चा भी थी, लेकिन पार्टी आलाकमान ने नड्डा को बतौर मुख्यमंत्री चेहरा पेश करने के बजाए उनकी योग्यता का इस्तेमाल केंद्र में ही करना बेहतर समझा, क्योंकि अगले लोकसभा चुनाव में भी अब डेढ़ साल का ही अर्सा बचा है.
धूमल को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए जाने के बाद बेशक उनके समर्थकों में दुगना जोश महसूस किया जा रहा है, लेकिन ये भी सच्चाई है कि चुनाव प्रचार के लिए अब एक हफ्ता भी नहीं बचा है.
ऐसे में धूमल हिमाचल के कितने विधानसभा क्षेत्रों में मतदाताओं को संबोधित कर पाएंगे, इस पर सबकी नजर रहेगी. धूमल नए विधानसभा क्षेत्र से इस बार चुनावी मैदान में उतरना भी एक चुनौती है. बीजेपी ने इस बार धूमल को उनकी परंपरागत सीट हमीरपुर की जगह सुजानपुर से उम्मीदवार बनाया है.