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झारखंड विधानसभा चुनाव: अकेली BJP पर भारी पड़ सकता है एकजुट विपक्ष

2014 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को विश्लेषण करने पर पाया कि राजनीतिक परिदृश्य बदलने के बाद अगर सभी पार्टियां अपना जनाधार बरकरार रखती हैं तो इन कड़े मुकाबले वाली सीटों पर बीजेपी की राह आसान नहीं होगी.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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  • 30 नवंबर से शुरू, पांच चरणों में संपन्न होंगे चुनाव
  • गठबंधन की वजह से मुकाबला होगा दिलचस्प

खनिज संसाधनों से भरपूर प्रदेश झारखंड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. चुनाव 30 नवंबर से शुरू होकर पांच चरणों में संपन्न होंगे. महाराष्ट्र की तरह यहां भी बीजेपी के सहयोगी दल उसका साथ छोड़ते दिख रहे हैं. इनमें प्रभावशाली संगठन ऑल झारखंड स्टूडेंट यूनियन (AJSU) भी शामिल है जो अब बीजेपी से अलग हो गया है.  

बीजेपी ने 2014 में 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में 37 सीटें जीती थीं. आजसू को मिली पांच सीटों को मिलाकर बीजेपी ने बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया था. लेकिन इस बार ये दोनों दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं, दूसरी ओर विपक्षी दलों झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने गठबंधन किया है और वे इसे एक मौके के रूप में देख रहे हैं. इन तीनों दलों ने भी पिछला चुनाव अलग-अलग लड़ा था. इस बार इनके बीच हुए गठबंधन की वजह से मुकाबला दिलचस्प हो गया है.

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कड़े मुकाबले वाली सीटें

विधानसभा चुनाव 2014 में 33 सीटें ऐसी थीं जिन पर जीत-हार का अंतर 10,000 या इससे कम था. इस बार एकजुट विपक्ष इन सीटों पर बीजेपी को परेशानी में डाल सकता है. इन 33 सीटों में से 19 सीटें ऐसी हैं जिन पर जीत-हार का अंतर 5,000 से कम था. इन 19 में से 10 सीटें बीजेपी और आजसू गठबंधन ने जीती थीं, 8 बीजेपी ने और 2 आजसू ने. इसके अलावा झामुमो और कांग्रेस को 3-3 सीटें, एक बाबूलाल मरांडी की पार्टी झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) और दो अन्य ने जीती थीं.

जिन सीटों पर हार-जीत का अंतर 5,000 से 10,000 के बीच रहा, उनमें से 7 अकेले बीजेपी ने जीती थीं. झामुमो ने तीन सीटें, कांग्रेस ने 2 सीटें और झाविमो ने 2 जीती थीं. इस तरह कड़े मुकाबले वाली 33 सीटों में से 17 सीटें बीजेपी-आजसू गठबंधन ने जीती थीं जिसमें अकेले बीजेपी ने 15 सीटें जीती थीं.

बीजेपी की राह आसान नहीं

इंडिया टुडे की डाटा इंटेलीजेंस यूनिट (DIU) ने 2014 के विधानसभा चुनाव के नतीजों को विश्लेषण करने पर पाया कि राजनीतिक परिदृश्य बदलने के बाद अगर सभी पार्टियां अपना जनाधार बरकरार रखती हैं तो इन कड़े मुकाबले वाली सीटों पर बीजेपी की राह आसान नहीं होगी.

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इन 10,000 से कम मार्जिन वाली सीटों पर झामुमो, कांग्रेस और राजद के वोट शेयर को मिलाने पर हमने पाया कि बीजेपी पिछली बार जीती हुई 15 सीटों में से 8 पर हार जाएगी और आजसू अपनी दोनों सीटें हार जाएगी. इस तरह गठबंधन का वोट बरकरार रहने पर बीजेपी को इन कम मार्जिन वाली सीटों में से सिर्फ 7 सीटें मिल पाएंगी जबकि झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन को 10 सीटों का फायदा होगा.

घाटशिला, गुमला, लोहरदगा और राजमहल जैसी कुछ सीटें जिनपर 2014 में भाजपा जीती थी, इस बार एकजुट विपक्ष के सामने उसे काफी मशक्कत करनी होगी. इत्तफाक से इनमें से ज्यादातर सीटों पर जनजातीय आबादी की अच्छी संख्या होने के कारण झामुमो यहां पर मजबूत है. हालांकि, इस श्रेणी की कुछ अहम सीटें जैसे गिरीडीह, दुमका और सिमडेगा पर बीजेपी वापसी की उम्मीद कर सकती है.

ज्याद मार्जिन वाली सीटें  

आइए अब उन सीटों को देखते हैं जहां 2014 में जीत-हार का अंतर 10,000 से ज्यादा था. 16 सीटें ऐसी थीं जिन पर जीत-हार का अंतर 10,000 से 20,000 के बीच था. इन 16 में से बीजेपी को 5, झामुमो को 5, झाविमो को 3, कांग्रेस को 1 और 2 सीटें अन्य को मिली थीं.

इसके अलावा 16 सीटें जहां पर जीत-हार का अंतर 20,000 से 30,000 के बीच था, बीजेपी और आजसू ने मिलकर 8 सीटें जीती थीं. 6 बीजेपी और 2 आजसू. झामुमो ने इनमें से 5, झाविमो ने 1 और 2 सीटें अन्य ने जीती थीं.

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16 सीटें ऐसी थीं जहां पर जीत-हार का अंतर 30,000 से ज्यादा था. इनमें से बीजेपी-आजसू गठबंधन ने 12 सीटें जीतीं. 11 बीजेपी ने और 1 आजसू ने. झामुमो ने 3 और झाविमो ने 1 सीट जीती. संयोग से 2014 में आजसू सिर्फ 8 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और इनमें से 5 सीटें जीत गई थी.

राजनीतिक विश्लेषक का क्या है कहना

इस 10,000 से ज्यादा मार्जिन वाली कुल 48 सीटों में से बीजेपी-आजसू गठबंधन ने कुल 25 सीटें जीत ली थीं. इनमें से 22 सीटें अकेले बीजेपी को मिली थीं. इस बार इन सीटों पर भी एकजुट विपक्षी दलों का गठबंधन बीजेपी के लिए कड़ा मुकाबला पेश करेगा.

2014 के वोट शेयर के आधार पर देखें तो कुछ महत्वपूर्ण सीटें जहां भाजपा सिर्फ 5 प्रतिशत से कम अंतर के साथ एकजुट विपक्ष को मात दे सकती है, वे हैं जमशेदपुर वेस्ट और खूंटी.

पारंपरिक रूप से बीजेपी शहरी और कस्बाई इलाकों में मजबूत है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पार्टी का यह जनाधार उसके लिए संजीवनी साबित होगा. बहरहाल, अब सबकी निगाहें 23 दिसंबर पर टिकी होंगी जब चुनाव के नतीजे आएंगे.

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