कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने विपक्ष के तमाम नेता पहुंचे और एकजुटता दिखाई. ऐसी विपक्षी एकता इससे पहले कभी नहीं देखने को मिली. ये नजारा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के द्वारा लगाए गए आपातकाल के बाद कांग्रेस के खिलाफ जनता पार्टी के साथ आए दलों की याद ताजी करा रहा था.
लेकिन सवाल यह है कि विपक्षी नेताओं का ये साथ कितने दिनों तक रहेगा? क्या साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी के खिलाफ विपक्ष इसी तरह एकजुट होकर सामना करेगा या फिर उससे पहले ही अपने बोझों तले दबकर बिखर जाएगा?
मालूम हो कि कर्नाटक चुनाव नतीजों के बाद 21वें राज्य के रूप में बीजेपी ने सरकार बनाने के लिए कदम बढ़ाया, तो कांग्रेस-जेडीएस ने आपस में हाथ मिला लिया. इतना ही नहीं, विपक्ष के बाकी दल उनके समर्थन में खड़े हो गए.आपको बता दें कि कर्नाटक में 222 सीटों के लिए हुए चुनावों में बीजेपी को 104 सीटें मिलीं. कांग्रेस को 78 और जेडी(एस) को 37 और बहुजन समाज पार्टी को 1 सीट मिली थी.
इसका नतीजा यह रहा कि बीजेपी सदन में बहुमत साबित करने में नाकाम रही, जिसके चलते बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. इसके बाद बुधवार को कांग्रेस-जेडीएस के नेता के तौर पर कुमारस्वामी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.
मोदी सरकार के खिलाफ कांग्रेस सहित कई दलों के द्वारा विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश काफी समय पहले से चल रही थी, लेकिन कामयाबी नहीं मिल पा रही थी. कर्नाटक में येदियुरप्पा के इस्तीफा देने के बाद राहुल गांधी ने कहा था, ''हम विपक्ष के साथ मिलकर साल 2019 में मोदी को हराएंगे.''
सोनिया गांधी के डिनर से बड़ा मंच
यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान राहुल गांधी को सौंपने के बाद मार्च 2018 में बीजेपी के खिलाफ गठबंधन को मजबूत करने के मकसद से कई विपक्षी पार्टियों के नेताओं को डिनर पर आमंत्रित किया था. इसमें विपक्ष के करीब 20 दलों के नेता उपस्थित हुए थे, लेकिन बसपा सुप्रीमो मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इसमें खुद शामिल न होकर अपनी पार्टी के नेताओं को भेजा था. लेकिन कर्नाटक में नजारा कुछ अलग ही दिखा.
पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण के बीजेपी विरोधी एकजुट
कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के तकरीबन सभी दल एकजुट हुए. इसमें पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण तक के गैर बीजेपी नेता शामिल हैं. यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा प्रमुख मायावती, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी, टीडीपी अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू, एनसीपी शरद पवार, आरएलडी अध्यक्ष अजीत सिंह, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और सीपीआई डी राजा सहित विपक्ष के सभी नेता मौजूद थे. हालांकि तेलंगाना के सीएम केसीआर नहीं पहुंच सके.
मोदी लहर के सामने नहीं टिक पाए थे विपक्षी दल
साल 2014 में नरेंद्र मोदी जबरदस्त बहुमत के साथ देश की सत्ता पर काबिज हुए. मोदी लहर ने विपक्ष के सभी दलों का सफाया कर दिया था. पिछले लोकसभा चुनाव में कोई भी दल उनके आगे टिक नहीं पाया था. अब यही वजह है कि कर्नाटक के बहाने विपक्ष की एकजुटता को शक्ति प्रदर्शन के तौर पर भी देखा जा रहा है.
बीजेपी देख चुकी है विपक्षी एकता का अंजाम
बीजेपी लाख इनकार करे, लेकिन मायावती और अखिलेश की जोड़ी फूलपुर और गोरखपुर के उपचुनावों में उसे चित कर विपक्षी एकता की ताकत का एहसास करा चुकी है. ऐसे में अगर साल 2019 में ये सभी एकजुट होकर चुनावी रण में उतरे, तो फिर बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ जाएगी और मोदी के 'विजय रथ' पर लगाम लग सकती है. विपक्ष 429 लोकसभा सीटों पर मोदी-शाह के सामने पेंच फंसा सकते हैं.
कौन होगा चेहरा, कब तक रहेगा साथ?
फिलहाल विपक्षी दल एक साथ नजर आ रहे हैं, लेकिन मोदी के मुकाबले चेहरा कौन होगा? यह विपक्ष के बीच बड़ा सवाल है, जिसका उत्तर तलाश कर पाना आसान नहीं है. कांग्रेस किसी क्षेत्रीय दल के नेता को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रही है. वहीं, विपक्ष के क्षत्रप, जो कांग्रेस के संभावित सहयोगी दल हैं, वो फिलहाल राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य किसी नेता को पीएम उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार करने को राजी नहीं हैं. ऐसे में ये विपक्ष की एकता कितने दूर तक का सफर तय करेगी, ये कहना मुश्किल है.