कर्नाटक के नतीजे आने से पहले कांग्रेस की मोर्चेबंदी शुरू हो गई है. गोवा और मणिपुर के चुनावों से सबक लेते हुए इस बार कांग्रेस ने अपना प्लान B भी तैयार कर लिया है. जानकारी के मुताबिक कांग्रेस के आंतरिक सर्वे में पार्टी को कर्नाटक में 111 सीटें मिलती दिख रही हैं.
इस संकेत के फौरन बाद पार्टी हाईकमान ने दो सीनियर नेताओं अशोक गहलोत और गुलाम नबी आजाद को बेंगलुरु भेज दिया है. कर्नाटक प्रभारी केसी वेणुगोपाल समेत पांच सचिवों को भी कांग्रेस ने राज्य में तैनात कर दिया है. इन सभी नेताओं को कर्नाटक में पल-पल बदल रहे सियासी समीकरणों को समझने के लिए पहले ही रवाना कर दिया गया है. माना जा रहा है कि बहुमत से दूर रहने की सूरत में कांग्रेस जेडीएस को करीब लाने के लिए दलित सीएम का कार्ड भी खेल सकती है.
इस बार कर्नाटक की लड़ाई थोड़ी हटकर है. गुजरात जैसी कांटे की टक्कर यहां भी है. यहां ऊंट किस करवट बैठेगा, अभी कोई नहीं कह सकता. एग्जिट पोल से भी तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है. इसलिए नतीजे के बाद का जोड़-घटाना-गुणा-भाग अभी से चल रहा है. सिद्धारमैया जैसा मंझा राजनेता भी नतीजों से पहले दलित सीएम को समर्थन की बात करे तो समझ लेना चाहिए कि इस बार मामला कितना पेचीदा है.
इंडिया टुडे ग्रुप-AXIS MY INDIA के सर्वे में हालांकि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर आई है. एग्जिाट पोल के मुताबिक, कर्नाटक में कांग्रेस को 106 से 118 सीट मिलने का अनुमान है. वहीं, बीजेपी को 79 से 92 सीट मिलने का अनुमान है. इसके अलावा जेडीएस को 22 से 30 सीटें मिलती दिख रही हैं. चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर 39 फीसदी, जबकि बीजेपी को 35 फीसदी वोट मिलने का अनुमान है.
कर्नाटक का नतीजा कुछ भी आए लेकिन उसकी गूंज देशभर की राजनीति में अगले साल लोकसभा चुनाव तक सुनाई देती रहेगी. अगर कर्नाटक में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलता है तो ये ‘ग्रैंड ओल्ड पार्टी’ के लिए संजीवनी बूटी हाथ लगने से कम नहीं होगा. कांग्रेस कर्नाटक के किले को अपने पास लगातार दूसरी बार बरकरार रखती है तो इससे देशभर में पार्टी कार्यकर्ताओं का जोश बढ़ेगा. इसका सीधा मतलब होगा इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश और राजस्थान में होने वाले चुनाव में बीजेपी का सिरदर्द बढ़ेगा.