कर्नाटक विधानसभा चुनाव का मुकाबला बीजेपी-कांग्रेस के बीच सिमटता जा रहा है. सिद्धारमैया को आगे करके कांग्रेस अपनी सत्ता को बरकरार रखने की जद्दोजहद कर रही है तो वहीं येदियुरप्पा के चेहरे के सहारे बीजेपी एक बार फिर से कर्नाटक के रणभूमि में उतरी है. बीजेपी के लिए कर्नाटक चुनाव में जीतने का मतलब कांग्रेस मुक्त दक्षिण भारत की पहली सीढ़ी पर कदम रखने जैसा है.
कांग्रेस से पहले यहां पर बीजेपी की सरकार थी. पार्टी का जमीनी स्तर पर खासा नेटवर्क है. इसके बावजूद बीजेपी के लिए भी ये आसान लड़ाई नहीं है. यही वजह है कि बीजेपी 2013 विधानसभा चुनाव की गलती दोहराना नहीं चाहती है. राज्य की सत्ता में वापसी को सुनिश्चित करने के लिए कई फैक्टर बीजेपी के पक्ष में जा सकते हैं.
1. मोदी लहर का भरोसा
कर्नाटक की सत्ता में दोबारा से वापसी के लिए बीजेपी का सबसे बड़ा भरोसा मोदी लहर पर है. 2013 में सत्ता गंवाने के बाद बीजेपी ने 2014 के चुनाव में कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से 17 पर जीत हासिल की थी और उसे करीब 43 फीसदी वोट मिले थे. जबकि 2009 की तुलना में बीजेपी की सीट और वोट फीसदी दोनों कम हुए थे.
बीजेपी का मानना है कि प्रधानमंत्री मोदी वोट खींचने वाले नेता है और उनके नाम पर लोग विधानसभा चुनाव में बीजेपी को वोट देंगे. पार्टी की राज्य ईकाई प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों का इंतजार कर रही है. हालांकि मोदी चुनाव ऐलान से पहले कई बार कर्नाटक का दौरा कर चुके हैं. चुनावी घमासान के बीच मोदी की दर्जनों रैलियां कराने का प्लान बीजेपी ने बना रखा है.
2. येदियुरप्पा के सहारे लिंगायत वोट पर नजर
कर्नाटक की सत्ता पर फिर से बीजेपी ने काबिज होने के लिए अपने दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री का पद का उम्मीदवार घोषित करके पार्टी का चेहरा बनाया है. 2013 में येदियुरप्पा की बगावत बीजेपी की हार की वजह बनी थी. पिछले चुनाव के नतीजों को देखें तो बीजेपी को करीब 20 फीसदी और येदियुरप्पा की पार्टी को 10 फीसदी वोट मिले थे.
जबकि कांग्रेस 36 फीसदी वोट के साथ सत्ता पर काबिज हुई थी. इसीलिए 2014 के चुनाव से पहले नरेंद्र मोदी ने येदियुरप्पा को साथ मिलाया था. इसी का नतीजा बेहतर रहा. येदियुरप्पा के नाम पर विधानसभा के सियासी जंग में बीजेपी लिंगायत समुदाय के वोट को अपने पाले में रखना चाहती है.
3. टीम-16 के जिम्मे मिशन कर्नाटक
बीजेपी के पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मजबूत और अनुशासित नेटवर्क है जिसे बीजेपी बकायदा भुनाने में लगी है. बीजेपी ने अपने 55 दिग्गज नेताओं की टीम को राज्य में लगाया है इस टीम में 16 केंद्रीय मंत्री, 24 सांसद समेत बीजेपी के कई दिग्गज नेता शामिल हैं. इन सभी नेताओं को चुनावी रणनीति के तहत खास जिम्मेदारी सौंपी गई है. इसके अलावा राज्य में 280 सक्रिय नेताओं को पार्टी ने तैनात किए हैं. एक विधानसभा सीट के लिए एक सक्रिय नेता को जिम्मेदारी दी गई है. इसके अलावा 6 नेताओं की एक पर्यवक्षक टीम बनाई गई है.
4. योगी के नाथ संप्रदाय पर नजर
योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री होने के साथ-साथ, गोरखनाथ नाथ मंदिर के महंत भी हैं. नाथ संप्रदाय पर यकीन रखने वाले लोग नाथ संप्रदाय के महंत को भगवान का दर्जा देते हैं. इतना ही नहीं महंत को महादेव का अवतार भी मानते हैं. त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय के लोगों को बीजेपी खेमे में लाने योगी ने अहम भूमिका निभाई थी. इसी तर्ज पर कर्नाटक में नाथ संप्रदाय के लोगों बीजेपी खेमे में लाने की जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ को सौंपी गई है. कर्नाटक में इसी संप्रदाय की जड़ें बहुत गहरी और फैली हुईं हैं. इसी के मद्देनजर योगी को कर्नाटक के सियासी रणभूमि में सक्रिय किया जा रहा है.
पिछले दिनों योगी ने मंगलुरू के कदाली मठ का दौरा किया था जिसे योगेश्वर मठ के नाम से भी जाना जाता है. ये कर्नाटक में नाथ संप्रदाय का सबसे बड़ा केंद्र है. कर्नाटक के तटीय इलाकों में नाथ संप्रदाय के अनुयायियों की ज्यादा संख्या है. योगी आदित्यनाथ की एक रैली तटीय इलाके में हो चुकी है और कई रैलियां अभी होनी है. दक्षिण कन्नड और उडपी में नाथ संप्रदाय के लोग अपनी खास पकड़ के लिए जाने जाते हैं.
5. साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की बिसात
ध्रुवीकरण की बिसात पर कर्नाटक की सियासी जंग जीतने की कवायद की जा रही है. पिछले दिनों सिद्धारमैया ने कहा था कि बीजेपी हिंदुत्व के मुद्दे को हवा देकर वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश में लगी है. योगी आदित्यनाथ ने कर्नाटक दौरे के दौरान हिंदुत्व के मुद्दे को धार देने की कोशिश की थी. कांग्रेस को टीपू सुल्तान का हितैषी बताकर मुस्लिम परस्त और बीजेपी को भगवान हनुमान का समर्थक कह कर हिंदू परस्त बताने की कोशिश की है. इतना ही नहीं बीजेपी के कई नेता लगातार कर्नाटक में हिंदुत्व के मुद्दे को हवा दे रहे हैं.