बीएस येदियुरप्पा, कर्नाटक में बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे हैं. पार्टी फिर से येदियुरप्पा के सहारे कर्नाटक में कमल खिलाने की जुगत में है. येदियुरप्पा चावल मिल के क्लर्क और एक किसान नेता से आगे बढ़कर दक्षिण में पहली बार कर्नाटक में बीजेपी की सरकार के रूप में कमल खिलाने वाले नायक बने थे. पांच साल के बाद जब दोबारा से 2013 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी के लिए वही खलनायक बन गए. अब एक बार फिर से बीजेपी के लिए नायक बनने की जुगत में हैं.
कर्नाटक में बीजेपी ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाकर चुनावी मैदान में उतरी है. वे राज्य में दूसरी बार कमल खिलाने के लिए जमकर मेहनत किया है. येदियुरप्पा अपनी पुरानी परंपरागत शिकारीपुरा विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे हैं. ये लिंगायत बहुल सीट मानी जाती है. येदियुरप्पा खुद लिंगायत समुदाय से आते हैं. कांग्रेस ने उनके खिलाफ जीबी मालतेश को उतारा है. वहीं जेडीएस ने एचटी बालिगर पर दांव लगाया है.
बीएस येदियुरप्पा 75 साल की उम्र पूरी कर चुके हैं. उनका जन्म 27 फरवरी 1943 को राज्य के मांड्या जिले के बुकानाकेरे में सिद्धलिंगप्पा और पुत्तथयम्मा के घर हुआ था. चार साल की उम्र में उन्होंने अपनी मां को खो दिया था.
सियासी सफर
येदियुरप्पा राज्य के सबसे प्रभावी लिंगायत समुदाय से आते हैं. 1972 में उन्हें शिकारीपुरा तालुका जनसंघ का अध्यक्ष चुना गया और उन्होंने राजनीति में प्रवेश किया. 1977 में जनता पार्टी के सचिव पद पर काबिज होने के साथ ही राजनीति में उनका कद और बढ़ गया.
पहली बार बने MLA
उनके वास्तविक राजनीतिक करियर की शुरूआत 1983 में हुई जब वह पहली बार विधानसभा में पहुंचे और तब से अब तक 7 बार शिकारीपुरा से विधायक निर्वाचित हो चुके हैं. वो तीसरी बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं.
बता दें कि येदियुरप्पा की बदौलत बीजेपी ने 2008 के विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त जीत दर्ज की थी. हमेशा सफेद सफारी सूट में नजर आने वाले येदियुरप्पा नवम्बर 2007 में जनता दल (एस) के साथ गठबंधन सरकार गिरने से पहले भी 7 दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे थे.
ऑपरेशन लोटस अभियान से 2008 में कमल खिला
येदियुरप्पा के 'ऑपरेशन लोटस' अभियान के दम पर ही 2008 में 224 सदस्यीय विधानसभा में बीजेपी बहुमत हासिल करने में सफल रही थी, लेकिन खनन क्षेत्र से जुड़े प्रभावशाली रेड्डी बंधु जनार्दन और करुणाकर उनके लिए परेशानी का सबब बने रहे.
कर्नाटक में बीजेपी के लिए कमल खिलाने वाले बीएस येदियुरप्पा के तीन साल 62 दिनों का कार्यकाल संकटों से भरा रहा. बताते चलें कि खनन घोटाले में लोकायुक्त की रिपोर्ट येदियुरप्पा के गले की फांस बनी और उन्हें भ्रष्टाचार की वजह से अपनी मुख्यमंत्री पद की कुर्सी भी गंवानी पड़ी थी. उन पर जमीन और अवैध खनन घोटाले के आरोप लगे थे. इसके बाद वो जेल गए और फिर रिहा हुए. इसके बाद उन्होंने बीजेपी से बगावत करके अपनी पार्टी का गठन किया.
एक बार फिर बीजेपी ने लगाया दांव
विधानसभा चुनाव 2008 में बीजेपी के साथ-साथ उन्हें भी करारी हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद मोदी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनने के बाद जनवरी 2013 में उनकी दोबारा से बीजेपी में वापसी हुई. एक के बाद एक संकटों से उबरकर येदियुरप्पा ने खुद को पार्टी के अंदर राजनीतिक धुरंधर के रूप में साबित किया है. कर्नाटक में कांग्रेस सरकार को सत्ता से बेदखल करके बीजेपी का कमल खिलाने की कोशिश में लगे हैं.