कर्नाटक विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आने के बावजूद बीजेपी अपनी सरकार नहीं बना सकी. यहां पर 222 सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी के हाथ 104 सीटें लगीं और बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ भी ली. हालांकि, 55 घंटे बाद ही उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया.
राज्य की राजनीति में इतनी उठापटक देखने को मिली कि सीएम येदियुरप्पा को बहुमत परीक्षण से पहले ही इस्तीफा देना पड़ा. कांग्रेस (78 सीटें) और जेडीएस (37 सीटें) के नेताओं ने इस मामले में राज्यपाल की भूमिका को सवालों के घेरे में रखा और सुप्रीम कोर्ट तक गए. येदियुरप्पा आखिरी पलों तक सरकार बचाने का दावा करते रहे, लेकिन पूरे चुनावों के दौरान अग्रणी भूमिका निभाने वाले अमित शाह इस मामले में सामने नहीं आए.
यह हालिया समय में अमित शाह की दूसरी रणनीतिक हार थी. अमित शाह की दोनों रणनीतिक हार में रिजॉर्ट पॉलिटिक्स का अहम रोल रहा. संयोग यह है कि दोनों मौकों पर कर्नाटक का ईगलटन रिजॉर्ट पृष्ठभूमि में रहा. यह रिजॉर्ट इससे पहले भी राष्ट्रीय सुर्खियों में रहा था.
अमित शाह की दोनों हार में इस रिजॉर्ट की भूमिका
पिछले साल गुजरात में तीन सीटों के लिए राज्यसभा चुनाव हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह गुजरात की तीन राज्यसभा सीटों के चुनाव में कभी कांग्रेस के दूसरे सबसे ताकतवर शख्स रहे अहमद पटेल को मात देना चाहते थे, लेकिन उसमें सफल नहीं हो सके. इन दोनों नेताओं की अदावत गुजरात की राजनीति से शुरू होकर राष्ट्रीय फलक तक आई है.
मजेदार बात यह है कि अमित शाह को तब भी और अब भी हार का सामना करना पड़ा. दोनों बार अमित शाह की हार और कांग्रेस की जीत में कर्नाटक के ईगलटन रिजॉर्ट का भी जिक्र हुआ. गुजरात राज्य सभा चुनावों के दौरान कांग्रेस के 44 विधायक इसी रिजॉर्ट में रुके थे. उन्हें वोटिंग से एक दिन पहले ही गुजरात लाया गया था और अहमद पटेल राज्यसभा पहुंचे. इस बार भी कर्नाटक के कांग्रेसी विधायक ईगलटन रिजॉर्ट में ही रुके और आखिरकार येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ा.
कांग्रेस सरकार लगा चुकी है करोड़ों का जुर्माना
अक्सर कांग्रेस के काम आने वाले इस रिजॉर्ट पर कांग्रेस की ही सरकार भारी-भरकम जुर्माना भी लगा चुकी है. पिछली बार गुजरात के विधायकों के यहां रुकने से ठीक पहले राज्य की कांग्रेस सरकार ने 77 एकड़ जमीन के अतिक्रमण का आरोप लगाकर इस रिजॉर्ट पर करीब 1000 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था. यह कदम कांग्रेस सरकार की कैबिनेट ने सुप्रीम कोर्ट ने निर्देशों पर उठाया था.
2012 में बीजेपी की राज्य सरकार इस रिजॉर्ट से 82.6 करोड़ रुपये का शुल्क लेकर इसे 77 एकड़ जमीन देने के पक्ष में थी. हालांकि, बाद में कांग्रेस सरकार ने इस फैसले को पलट दिया था. बता दें कि इस कि इस रिजॉर्ट के एक कमरे का एक दिन का किराया 8 हजार रुपये से लेकर 10 हजार रुपये तक है.
टिकट बंटवारे में अमित शाह का हाथ
अमित शाह ने कर्नाटक चुनावों से पहले ही यहां पर डेरा जमा लिया था. इस दौरान उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को संगठित करने के अलावा गुटबाजी पर भी लगाम लगाई. अमित शाह ने येदियुरप्पा के साथ मिलकर टिकट बंटवारे पर भी अहम फैसले लिए. रेड्डी बंधुओं और उनके रिश्तेदारों को टिकट देने का फैसला हो या येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र का टिकट काटने का फैसला पूरे चुनावों के दौरान पार्टी अमित शाह की रणनीति पर भरोसा करती रही.
बीजेपी के अमित शाह की तरह कर्नाटक की राजनीतिक लड़ाई में कांग्रेस के भी अध्यक्ष राहुल गांधी ही मैदान में थे. हालांकि, कांग्रेस के खेमे में टिकट बंटवारे के दौरान राहुल गांधी से ज्यादा पूर्व सीएम सिद्धारमैया की चली थी. अपने बेटे यतींद्र को अपनी सीट वरुणा से उतारने से लेकर दो सीटों से चुनाव लड़ने या फिर युवाओं को टिकट देने का मामला हो, सबसे सिद्धारमैया की अहम भूमिका रही. इस काम में शाह राहुल से बाजी मार ले गए.
पीएम मोदी भी नहीं लगा सके नैया पार
कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान भी जबतक पीएम नरेंद्र मोदी मैदान में नहीं उतरे थे, कांग्रेसी खेमा बढ़त बनाता नजर आ रहा था. तत्कालीन सीएम सिद्धारमैया अकेले ही पीएम नरेंद्र मोदी और सिद्धारमैया को सोशल मीडिया और अपनी रैलियों में निशाने पर ले रहे थे. मोदी के प्रचार में उतरने के बाद उन्होंने मुकाबले को मोदी बनाम राहुल का बना लिया था और इसके बाद चुनाव में राज्य के नहीं राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे सामने आ गए थे. इसके बावजूद बीजेपी बहुमत ला पाने में नाकाम रही.
कर्नाटक की 222 सीटों पर हुए चुनाव में मतगणना के दौरान एक बार बीजेपी अकेली बहुमत लाती दिख रही थी और पार्टी नेताओं ने एक-दूसरे को बधाई देनी भी शुरू कर दी थी. हालांकि, बीजेपी बहुमत के आंकड़े से आठ सीट पीछे रुक गई और यहीं पर अमित शाह प्लान बी नहीं बना सके.
सोनिया के भरोसेमंदों ने जीती राहुल की जंग
कर्नाटक से पहले गोवा में राज्यसभा सांसद के चुनाव के दौरान भी अमित शाह की रणनीति को असफलता हाथ लगी थी. तब कांग्रेस के खेवनहार सोनिया गांधी के करीबी रहे अहमद पटेल बने थे. राहुल के बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद अहमद पटेल पार्श्व में चले गए थे, लेकिन गुजरात में पार्टी के लिए राज्यसभा सीट जीतने के दौरान वह पार्टी के संकटमोचक बने. यही काम कर्नाटक में सोनिया के दूसरे करीबी और राहुल के सलाहकार गुलाम नबी आजाद ने किया. उन्होंने कर्नाटक में फ्लोर टेस्ट से पहले तक कांग्रेसी विधायकों को टूटने से बचाए रखा.