22 साल पुराना इतिहास
कर्नाटक विधानसभा की जिन मौजूदा परिस्थितियों ने जेडीएस और कांग्रेस को एकसाथ लाकर खड़ा किया है, वैसे ही कुछ समीकरण 1996 में देश की राजनीति में बने थे. 1996 के लोकसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल पाया था.
कांग्रेस ने बनवाया देवगौड़ा को पीएम
वाजपेयी सरकार गिरने के बाद कांग्रेस के हाथ में बाजी थी. बीजेपी के बाद कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी थी और उसके पास 140 सीट थीं. जबकि तीसरे नंबर पर जनता दल था, जिसके खाते में 46 सीटें थीं. कांग्रेस ने केंद्र की सत्ता चलाने के लिए कुमारस्वामी के पिता एचडी देवगौड़ा को समर्थन देने का ऐलान कर दिया. इस तरह देवगौड़ा देश के प्रधानमंत्री बने. हालांकि, देवगौड़ा की सरकार ज्यादा दिन नहीं टिक पाई. कांग्रेस ने समर्थन वापस ले लिया और करीब 10 महीने बाद देवगौड़ा की जगह इंद्रकुमार गुजराल को पीएम बनाया गया.
सोशल मीडिया पर इस तरह की आशंकाएं भी जताई जा रही हैं कि कांग्रेस के साथ जेडीएस का साथ ज्यादा लंबा नहीं चलने वाला है. बीजेपी नेताओं ने भी इस गठबंधन को अपवित्र बताते हुए जल्द टूटने के दावे किए हैं. ऐसे में ये भी चर्चा है कि जेडीएस कहीं बिहार की जेडीयू की तर्ज पर बीजेपी के साथ न चली जाए.
दरअसल, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू, लालू यादव की आरजेडी और कांग्रेस ने महागठबंधन में चुनाव लड़ा था. हालांकि, आरजेडी को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं, लेकिन गठबंधन शर्त के तहत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही बनाया गया.
गठबंधन सरकार बनते ही खटपट की खबरें आने लगीं. डिप्टी सीएम और लालू यादव के बेटे तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे और नीतीश कुमार ने उसे आधार बनाकर आरजेडी-कांग्रेस से गठबंधन तोड़ लिया और एक बार फिर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली.
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हालांकि, दोनों दलों का गठबंधन पहली बार नहीं हुआ था. 2013 से पहले जेडीयू एनडीए का ही हिस्सा थी. बिहार और केंद्र की सरकारों में भी दोनों दल साथ रह चुके थे.
ठीक उसी तरह जेडीएस और बीजेपी का अतीत भी है. ये दोनों दल भी साथ मिलकर कर्नाटक की सत्ता का स्वाद चख चुके हैं. ऐसे में कांग्रेस के साथ भविष्य में अगर जेडीएस की अनबन जैसी कोई स्थिति पैदा होती है, तो जेडीएस जेडीयू की तरह कांग्रेस का दामन छोड़कर बीजेपी का दामन न थाम ले, ये आशंका जताई जा रही है.
इन आशंकाओं को इसलिए भी बल मिल रहा है क्योंकि कर्नाटक में स्थायी सरकार को लेकर हमेशा संकट रहा है. कांग्रेस नेता सिद्धारमैया बतौर मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल (2013-2018) पूरा करने वाले पहले सीएम बने हैं. उनसे पहले तीन दशकों तक कोई भी एक सीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है और राज्य सरकार के स्थायित्व को लेकर भी हमेशा संकट रहा है.