भारतीय जनता पार्टी ने 2014 का लोकसभा चुनाव गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़ा और प्रचंड बहुमत के साथ जीत दर्ज की. नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर जल्द ही उनके गुजरात के सबसे करीबी अमित शाह आसीन हुए.
मोदी के नाम पर बीजेपी की जीत का जो कारवां आम चुनाव में चला, वो महाराष्ट्र, हरियाणा होते हुए यूपी, उत्तराखंड, हिमाचल और गोवा से होते हुए अब उत्तर-पूर्व के त्रिपुरा तक पहुंच गया है. जिन राज्यों में बीजेपी को बहुमत मिला, वहीं तो उसकी सरकार बनी ही, इस दौरान कुछ राज्यों में बीजेपी ने सबसे बड़ी पार्टी न बनने के बावजूद भी सरकार बनाई. किसी राज्य में क्षेत्रीय दलों को समर्थन दिया तो कहीं उनके समर्थन से कांग्रेस मुक्त भारत के आह्वान को पूरा करते हुए आगे बढ़े.
अब इस कड़ी में कर्नाटक की बारी है. जहां आगामी 12 मई को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है. दक्षिण भारत में यह इकलौता राज्य है, जहां बीजेपी मजबूत स्थिति में रही है. एक बार यहां ऐसा मौका भी आया, जब भारतीय जनता पार्टी को सबसे ज्यादा सीटों पर जीत मिली, फिर भी वो सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सकी.
2004 में बीजेपी ने जीतीं सबसे ज्यादा सीट
2004 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पहली बार सूबे में अपनी ताकत का एहसास कराया. कुल 224 विधानसभा सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी ने 79 सीटों पर जीत दर्ज की. जबकि कांग्रेस को 65 और जनता दल सेक्यूलर को 58 सीटों पर संतोष करना पड़ा.
इस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर तो उभरी लेकिन सरकार बनाने के लिए जरूरी जादुई आंकड़े से काफी पीछे रह गई. जिसका नतीजा ये हुआ कि कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर ने गठबंधन कर सरकार बना ली.
हालांकि, मौजूदा राजनीति में इस बात को लेकर चर्चा की जाती है कि बीजेपी तोड़-जोड़ की रणनीति से उन राज्यों में भी सरकार बना लेती है, जहां कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिलती हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में गोवा में ऐसा ही देखने को मिला. जहां कांग्रेस ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं, लेकिन क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों के समर्थन से सरकार बनाई. इसके अलावा नगालैंड में बीजेपी ने एनडीपीपी को समर्थन देकर सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाली एनपीएफ को बाहर कर दिया.
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अब कर्नाटक में अमित शाह जीत के दावे कर रहे हैं. कांग्रेस और जनता दल सेक्यूलर भी मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं. ऐसे में इस बात की आशंका भी जताई जा रही है कि चुनावी नतीजे त्रिशंकु विधानसभा की तरफ न चले जाएं. अगर ऐसी स्थिति आती है तो एक बार फिर कर्नाटक में 2004 जैसे समीकरण देखने को मिल सकते हैं और जोड़-तोड़ की दिलचस्प रणनीतियां भी सामने आ सकती हैं.