कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस की साख का सवाल है तो बीजेपी के लिए भी जीत कांग्रेस के ताबूत में आखिरी कील ठोंकने जैसा काम करेगी. मगर, सूबे की सियासी पिक्चर में एक तीसरा नायक भी है, जो न सिर्फ अनुभवी है, बल्कि राज्य की सत्ता में भारी दखल भी रखता है.
दिल्ली से दूर कर्नाटक की स्थानीय राजनीति की बात करें तो फिलहाल यह तीन नामों की परिधि में घूमती नजर आती है. जहां एक कोण पर मौजूदा मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता के. सिद्धारमैया आसीन हैं. दूसरे एंगल पर बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बी.एस येदियुरप्पा कमान संभाले हुए हैं और तीसरे छोर पर जनता दल सेक्यूलर के एच.डी देवेगौड़ा खड़े हैं.
कर्नाटक की राजनीति में मठों का बड़ा असर माना जाता है. जातीय समीकरण के लिहाज से मठों का अपना प्रभुत्व है. राज्य में प्रमुख रूप से तीन मठों का वर्चस्व है, जो तीन अलग-अलग समुदायों का प्रतिनिधित्व करते हैं. ये तीन मठ लिंगायत समुदाय, वोक्कालिग्गा समुदाय और कुरबा समुदाय से जुड़े हैं. दिलचस्प बात ये है कि राज्य की मौजूदा राजनीति इन तीन समुदाय से आने वाले तीन नेताओं पर ही टिकी है.
कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री के. सिद्धारमैया कुरबा समुदाय से आते हैं. बीजेपी के मुख्यमंत्री उम्मीदवार बी.एस येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं. जबकि जनता दल सेक्यूलर के एच.डी देवेगौड़ा वोक्कालिग्गा समुदाय से हैं.
लिंगायत समुदाय
राज्य में लिंगायत समुदाय की करीब 17 फीसदी आबादी है. राज्य विधानसभा की 224 सीटों में से 100 पर इस समुदाय का प्रभाव माना जाता है. यही वजह है कि बीजेपी ने एक बार फिर लिंगायत समुदाय से आने वाले बी.एस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है. जबकि उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं. इस समुदाय को बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक भी माना जाता है.
वोक्कालिग्गा समुदाय
पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा वोक्कालिग्गा समुदाय (ओबीसी) के बड़े नेता माने जाते हैं. जनसंख्या के लिहाज से वोक्कालिग्गा कर्नाटक की दूसरी प्रभावी जाति है. इसकी आबादी 12 फीसदी है. इस समुदाय का प्रमुख मठ आदि चुनचनगिरी है, जिसे जनता दल (एस) का समर्थक मठ माना जाता है.
कर्नाटक में वोक्कालिग्गा समुदाय के 150 मठ हैं, जिनमें से ज्यादातर दक्षिण कर्नाटक में हैं. मठ के दर्जनों शिक्षण संस्थान भी हैं. मठ का प्रभाव दक्षिण कर्नाटक में अपेक्षाकृत अधिक है.
-कुरबा समुदाय
राज्य में तीसरा प्रमुख मठ कुरबा समुदाय से जुड़ा हुआ है. इस समुदाय से 80 से ज्यादा मठ जुड़े हैं. इसका मुख्य मठ दावणगेरे में श्रीगैरे मठ है और सूबे में कुरबा आबादी करीब 8 फीसदी है. मौजूदा मुख्यमंत्री सिद्धरामैया इसी समुदाय से आते हैं.
मठों के समर्थन से राजनीतिक लाभ मिलने पर गौर किया जाए तो बीजेपी यहां सबसे आगे खड़ी नजर आती है. क्योंकि सूबे में उसके समर्थक समुदाय के न सिर्फ सबसे ज्यादा मठ हैं, बल्कि तीनों प्रमुख समुदायों में सबसे ज्यादा आबादी भी इसी समुदाय की है. लेकिन इस बार हालात जुदा हैं.
ನಿನ್ನೆ ಜನಾಶೀರ್ವಾದ ಯಾತ್ರೆಯ ಸಂದರ್ಭದಲ್ಲಿ ಕಾಂಗ್ರೆಸ್ ಅಧ್ಯಕ್ಷರಾದ ಶ್ರೀ ರಾಹುಲ್ ಗಾಂಧಿಯವರ ಜೊತೆಯಲ್ಲಿ ಹಾವೇರಿಯ ಕನಕ ಗುರುಪೀಠದ ಸ್ವಾಮಿಗಳಾದ ಶ್ರೀ ಶ್ರೀ ನಿರಂಜನಾನಂದ ಪುರಿ ಸ್ವಾಮಿಜಿಯವರನ್ನು ಭೇಟಿಯಾಗಿ ಅವರ ಆಶೀರ್ವಾದಗಳನ್ನು ಪಡೆದೆನು. pic.twitter.com/TkbFTACJ6R
— Dr. G Parameshwara (@DrParameshwara) April 4, 2018
हाल ही में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म बनाने की लंबे समय से की जा रही मांग मान ली है. अब इस पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार को लेना है. कांग्रेस के इस कदम को लिंगायत समुदाय में सेंध लगाने वाला मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है और अब गेंद मोदी सरकार के पाले में है. हालांकि, अमित शाह इस मांग को मानने से साफ इनकार कर चुके हैं, जो बीजेपी के लिए संकट का सबब भी बन सकता है.
अपने-अपने समुदाय के मठ तो इन तीनों दलों के चुनाव प्रचार के केंद्र में हैं ही, साथ ही बीजेपी-कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता दूसरे समुदायों के मठों का भी आशीर्वाद ले रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का आज का दौरा टिमकुर के सिद्धगंगा मठ का है, जो लिंगायत समुदाय से जुड़ा है. अमित शाह भी अपने दौरों में मठों पर खास ध्यान दे रहे हैं और दलितों से जुड़े मठों का भी दौरा कर चुके हैं.
Took blessings of Dr. Sri Shivamurthy Murugha Sharanaru swamiji on my visit to Sri Murugha Mutt in Chitradurga. The Swamiji's contribution towards removal of inequality, poverty and helping the farmers & workers in implementing developmental projects is unparalleled. pic.twitter.com/lv7jf8jQg6
— Amit Shah (@AmitShah) March 27, 2018
बीजेपी और अमित शाह भी इस बार वोक्कालिग्गा समुदाय में पैठ बनाने का प्रयास कर रहे हैं. अमित शाह के अलावा अनंत कुमार, सदानंद गौड़ा जैसे केंद्रीय मंत्री भी चुनचुनगिरी मठ का दौरा कर चुके हैं.
यानी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कर्नाटक में नेताओं का काफिला मठों से होकर गुजर रहा है. ऐसे में अब देखना होगा कि 12 मई को सूबे की 224 विधानसभा सीटों पर वोटिंग के बाद जब 15 मई को नतीजे घोषित होंगे, तो क्या उन पर मठों का असर नजर आएगा या राज्य के मुद्दे काम करेंगे.