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...कांग्रेस उम्मीदवार के हाथों ही हुई थी सिद्धारमैया की पहली हार

12 अगस्त 1948 को पैदा हुए सिद्धारमैया ने पहली बार अपने गृहनगर मैसूर की चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. उन्होंने अपने पहले ही चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को मात दी.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

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देश की आजादी के एक साल बाद जन्में के. सिद्धारमैया आज कर्नाटक में देश की सबसे पुरानी पार्टी की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. किसान परिवार से आने वाले के. सिद्धारमैया मौजूदा वक्त में दक्षिण भारत की राजनीति का प्रमुख कांग्रेसी चेहरा बन गए हैं. लेकिन राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में जब उनका चुनावी ग्राफ तेजी से बढ़ रहा था, तब कांग्रेस ने ही उस पर ब्रेक लगाया था.

निर्दलीय जीता पहला चुनाव

12 अगस्त 1948 को पैदा हुए सिद्धारमैया ने पहली बार अपने गृहनगर मैसूर की चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. उन्होंने अपने पहले ही चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को मात दी. इस दौरान सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी और 1985 में मध्यावधि चुनाव कराए गए. सिद्धारमैया ने इस चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर बाजी खेली और फिर जीत का परचम लहराया. इस तरह एक बार फिर उन्होंने कांग्रेस के प्रत्याशी को शिकस्त दी.

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1989 में चुनाव हारे

लेकिन 1989 के चुनाव में राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया और कांग्रेस ने एकतरफा जीत हासिल की. कांग्रेस को 224 में से 178 सीटों पर जीत मिली और इस लहर में लगातार दो बार से जीतते आ रहे के. सिद्धारमैया को पहली बार हार का मुंह देखना पड़ा. उन्हें कांग्रेस के राजशेखर मूर्ति ने करीब 6 हजार मतों से हराया. कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई, जबकि बीजेपी को महज 4 सीटें ही मिलीं. वहीं, जनता दल को 24 और जनता पार्टी को 2 सीटों पर कामयाबी मिल सकी.

जनता दल में मिला अहम रोल

अपना पहला चुनाव हारने के बाद के. सिद्धारमैया को 1992 में जनता दल में अहम पद मिला और उन्हें महासचिव बनाया गया. एचडी देवेगौड़ा भी जनता दल का हिस्सा बन गए. इसके बाद 1994 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर दिया और पार्टी को 115 सीटों पर जीत मिली. सिद्धारमैया ने फिर चामुंडेश्वरी सीट पर वापसी की और कांग्रेस को हराया. एचडी देवेगौड़ा की सरकार में वे वित्त मंत्री बने.

राष्ट्रीय राजनीति में अचानक बदले सियासी समीकरण ने देवेगौड़ा को प्रधानमंत्री बनने का अवसर दिया और राज्य में 1996 के बाद जे. एच पटेल ने जनता दल की सरकार चलाई. लेकिन इसके बाद 1999 के विधानसभा चुनाव में जनता दल टूट गया और देवेगौड़ा के नेतृत्व में जनता दल (सेक्यूलर) का गठन हुआ. हालांकि, इस चुनाव में कांग्रेस को बहुमत मिला और उसने सरकार बनाई.

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सिद्धारमैया ने थामा कांग्रेस का हाथ

इसके बाद 2004 में जनता दल सेक्यूलर और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई. धर्म सिंह मुख्यमंत्री बने और के. सिद्धारमैया को उपमुख्यमंत्री की जिम्मेदारी मिली. लेकिन जल्द ही देवेगौड़ा से उनका मनमुटाव हो गया और 2005 में उन्हें जद(एस) से बाहर होना पड़ा. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस का हाथ थाम लिया और दिसंबर 2006 में अपनी परंपरागत चामुंडेश्वरी सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की.

हालांकि इसके बाद 2013 में जाकर कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई और सत्ता के सिंहासन पर सिद्धारमैया विराजमान हुए. अब पांच साल के कार्यकाल के बाद कांग्रेस एक बार फिर उन्हीं के नेतृत्व में मैदान में उतरी है. जहां सभी 224 सीटों पर 12 मई को मतदान होना है और मतगणना 15 मई को होगी. सिद्धारमैया के चेहरे के साथ उतरी कांग्रेस का सारा दारोमदार उन्हीं पर है. यहां सत्ता में कांग्रेस की वापसी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव से पहले कांग्रेस को संजीवनी दे सकती है. इसके अलावा 2019 की सियासी जंग के लिए भी काफी मायने रखती है.

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