कर्नाटक में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को मान लिया है. इस मुद्दे को इंडिया टुडे के कार्यक्रम कर्नाटक पंचायत में भी उठाया गया और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और वीरप्पा मोइली ने सीएम सिद्धारमैया के इस फैसले का बचाव किया है.
लिंगायत हिंदू या अल्पसंख्यक?
लिंगायत को अल्पसंख्यक दर्जा दिए जाने पर मोइली ने कहा कि बीजेपी के पास लिंगायत मुद्दे पर कोई नरेटिव नहीं है. यह कोई नई बात नहीं है कि लिंगायत को हिंदू धर्म से अलग देखा जाए. जैसे बुद्ध और महावीर को अलग से मान्यता है और किसी धर्म के साथ नहीं बांधा गया है. उसी तरह लिंगायत को अल्पसंख्यक दर्जा देना उचित है. यह सिर्फ इसलिए नहीं रोका जा सकता कि बीजेपी इस मुद्दे पर अलग रुख रखती है.
वीरप्पा मोइली ने कहा साल 2013 में यूपीए सरकार के दौरान भी जब लिंगायत को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग उठी थी, तब भी केंद्र सरकार ने उसे खारिज नहीं किया था, बल्कि हम इसपर सभी की सहमति चाहते थे. उन्होंने कहा कि कर्नाटक में किसी एक धर्म की एकाधिकार नहीं है यहां लोग अलग-अलग भगवान को पूजते हैं और धर्मों को मानते हैं.
मोइली ने कहा कि हम सिर्फ बसवेश्वर की विचारधारा का पालन कर रहे हैं और हम इस बात का गर्व है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने बहुत पहले ही यह प्रस्ताव रखा था कि लिंगायत को अलग समुदाय के रूप में पहचान दी जाएगी. उन्होंने कहा कि यह धर्म सिद्धारमैया के आने के बाद नहीं आया, जो लोग लिंगायत का विरोध कर रहे हैं दरअसल वो बसवेश्वर की खिलाफत कर रहे हैं.
कौन हैं लिंगायत और क्या परंपरा?
लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है.
लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं. इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ. इस आंदोलन का नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था. बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया. वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे. लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था लेकिन इसकी कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई है.