सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक में येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनाने के लिए शपथग्रहण की इजाजत तो दे दी है, लेकिन साथ ही शुक्रवार दोपहर तक समर्थक विधायकों की सूची सौंपने की शर्त भी लगा दी है. इसकी वजह से सरकार गठन को लेकर काफी संशय की स्थिति हो गई है.
यह संशय किस हद तक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पीएम मोदी और अमित शाह येदियुरप्पा के शपथग्रहण समारोह में नहीं जा गए. संभवत: सरकार गठन को लेकर किसी तरह की असहज स्थिति से बचने के लिए दोनों नेता कर्नाटक नहीं गए.
बीजेपी को यह आभास हो गया है कि कर्नाटक में सत्ता की राह में राजनीतिक और कानूनी अड़चन आ सकती है. इसलिए अभी तक के परंपरा को तोड़ते हुए पीएम मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह शपथग्रहण में नहीं गए. यह काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभी तक बीजेपी के मुख्यमंत्रियों के शपथग्रहण समारोह एक मेगा इवेंट की तरह होते रहे हैं और पीएम मोदी तथा अमित शाह खुद उत्साह बढ़ाने के लिए वहां मौजूद रहते थे.
येदियुरप्पा को राज्यपाल से मिली चिट्ठी
इसके पहले बुधवार को बीजेपी नेता बी.एस. येदियुरप्पा को कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला से शपथग्रहण के लिए चिट्ठी मिल गई, जिसके बाद शपथग्रहण की तैयारियां की जाने लगीं. राज्यपाल ने परंपराओं के मुताबिक सबसे आसान तरीका अपनाते हुए उस पार्टी को शपथग्रहण के लिए निमंत्रित किया, जो सबसे बड़ा दल है. हालांकि बीजेपी के पास बहुमत से 8 विधायक कम हैं.
जाति संतुलन के लिए हो सकते हैं दो डिप्टी सीएम
बीजेपी सूत्रों का कहना है कि मंत्रिमंडल समावेशी बनाने की कोशिश की जाएगी और दो डिप्टी सीएम दलित या अन्य किसी जाति से बनाए जा सकते हैं. सीएम बनने वाले येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से आते हैं.
मंत्रियों के नाम पर मंथन राज्यपाल का लेटर मिलने के बाद ही शुरू हो गया. बेंगलुरु में मौजूद तीन केंद्रीय मंत्रियों और येदियुरप्पा ने मिलकर इस सूची पर काम किया.
गौरतलब है कि कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन ने भी सरकार बनाने का दावा किया था और उनके खेमे में साफ तौर से 116 विधायक दिख रहे हैं, जो स्पष्ट बहुमत है. लेकिन राज्यपाल ने 'सबसे बड़े दल' को न्योता दिया, क्योंकि बीजेपी ने यह आश्वासन दिया है कि वह सदन में बहुमत साबित कर लेगी.
सदन में और कोई धड़ा नहीं है और महज दो अन्य विधायक हैं, ऐसे में यह तय लगता है कि सरकार बनाने के लिए विरोधी खेमे में तोड़फोड़ की जाएगी.