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काउंटिंग से पहले ही राहुल ने बना लिया था प्लान-बी, ऐसे मिली शाह-नीति को शिकस्त

कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने और बहुमत से महज 7 सीटें कम होने के बावजूद बीजेपी अगर विश्वास मत हासिल नहीं कर सकी तो उसके पीछे कांग्रेस की सटीक रणनीति और उसपर बेहद सतर्कता से अमल बड़ा कारण रहा.

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी

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कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होने और बहुमत से महज 7 सीटें कम होने के बावजूद बीजेपी अगर विश्वास मत हासिल नहीं कर सकी तो उसके पीछे कांग्रेस की सटीक रणनीति और उसपर बेहद सतर्कता से अमल बड़ा कारण रहा. कांग्रेस में इसे लेकर उत्साह है कि रणनीति के मामले में वो इस खेल के माहिर खिलाड़ी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को शिकस्त देने में कामयाब रही. पार्टी में इसका पूरा श्रेय राहुल गांधी को दिया जा रहा है क्योंकि उन्हीं की पहल और नेतृत्व में पहले ऑपरेशन लोटस पार्ट-2 को फेल करने की रणनीति बनी और फिर उस रणनीति को पूरी सफलता के साथ अमलीजामा पहनाया गया.

   

बताया जाता है कि राहुल गांधी ने मतदान के बाद और काउंटिंग से पहले गुलाम नबी आजाद, के सी वेणुगोपाल, अशोक गहलोत, सिद्धारमैया और डी के शिवकुमार से दिल्ली में लंबी मीटिंग की. राहुल ने वहीं प्लान बी तैयार किया था और सिद्धारमैया के साथ उनकी विस्तार से बात हुई जिसमें त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में एच डी कुमारस्वामी को समर्थन देने के लिए उन्हें तैयार किया गया.

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राहुल ने सिद्धारमैया को इस बात के लिए मनाया कि वे मौका आने पर जेडीएस को समर्थन दें और कुमारस्वामी को सीएम बनाने के लिए तैयार रहें. राहुल ने देवगौड़ा और सिद्धारमैया के बीच रिश्तों की तल्खी को भी खत्म किया ताकि कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन हकीकत की शक्ल ले सके.

जेडीएस से संपर्क करने की जिम्मेदारी डी के शिवकुमार को दी गई. शिवकुमार वोक्कालिंगा नेता हैं, उन्हें काउंटिंग के बाद विधायकों को संभालने की जिम्मेदारी भी दी गई. सिद्धारमैया, गुलाम नबी आजाद और अशोक गहलोत को सामने रहना था जबकि पर्दे के पीछे की जिम्मेदारी डी के शिवकुमार और उनके भाई को संभालनी थी. मजेदार बात ये है कि कांग्रेस-जेडीएस 10 बीजेपी नेताओं के संपर्क में भी थी.

इसी बीच यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी और अहमद पटेल विपक्ष के अन्य नेताओं के संपर्क में थे. प्रियंका गांधी आजाद-गहलोत और सोनिया-राहुल के बीच समन्वयक की भूमिका में थीं जबकि अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल को जरूरत होने पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए तैयार रहने को कहा गया. सिब्बल जेडीएस की ओर से तो सिंघवी कांग्रेस की ओर से कोर्ट जाने के लिए पहले से तैयार रहे.

कांग्रेस की इस रणनीति का नतीजा सामने है. येदियुरप्पा शपथ ग्रहण के बाद महज 55 घंटे तक कुर्सी पर रह सके. कुमारस्वामी सीएम पद की शपथ लेने जा रहे हैं. कांग्रेस और जेडीएस के बीच सत्ता का फॉर्मूला भी तय हो गया है. कांग्रेस ही नहीं, बाकि विपक्षी दलों के भी तमाम दिग्गज इस जीत से गदगद हैं.

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