2019 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के तैयार होने के साथ ही ग्रैंड ओल्ड पार्टी में सबसे ज्यादा 'यात्रा मॉडल' को लेकर चर्चा हो रही है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की पहले गुजरात में 'नवसर्जन यात्रा' और अब कर्नाटक में 'जन आशीर्वाद यात्रे' को लेकर पार्टी में खासा उत्साह है.
पार्टीजनों का मानना है कि इन दोनों यात्राओं ने अपने नामों के मुताबिक ही कांग्रेस में 'नया जोश' लाने के साथ पार्टी को 'आशीर्वाद' दिया है. यही वजह है कि पार्टी 2019 लोकसभा चुनाव के लिए भी बड़े पैमाने पर इसी 'यात्रा मॉडल' को अपनाने जा रही है. सूत्रों के मुताबिक पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने इसके लिए हरी झंडी भी दिखा दी है.
बदलाव की चाह
राहुल कांग्रेस की संस्कृति (पहले से चली आ रही परिपाटी) में बदलाव लाना चाहते थे, उसी सोच से 'यात्रा मॉडल' का विचार पहली बार सामने आया. इस मॉडल से ना सिर्फ पार्टी को लोगों से संपर्क का जरिया मिला बल्कि इसने नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच अवरोधों को भी कुछ हद तक हटाने का काम किया.
गुजरात से कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, 'राहुल गांधी हमेशा पार्टी की संस्कृति में बदलाव की बात करते रहे हैं. वो चाहते थे कि दिल्ली में बैठे पार्टी के शीर्ष नेता देश के दूरदराज इलाकों में जाकर पार्टी कार्यकर्ताओं और आम लोगों से संपर्क बनाएं. राहुल की दोनों यात्राओं ने सफलता के साथ ये काम किया. इससे जहां पार्टी में सकारात्मक बदलाव आया, वहीं बाहर भी पार्टी की छवि को बेहतर बनाने में भी मदद मिली.'
पिछसे साल शुरू हुई यात्रा
गुजरात में राहुल की नवसर्जन यात्रा का सिलसिला सितंबर 2017 में शुरू हुआ था. यात्रा के लिए खासतौर पर तैयार की गई जिस इसुजु बस से गुजरात में नवसर्जन यात्रा करते दिखे, उसी बस से कर्नाटक में भी 'जन आशीर्वाद यात्रे' करते दिखे.
गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के राज्य नेतृत्व ने सुझाव दिया था कि राहुल चुनाव प्रचार के दौरान हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करें लेकिन राहुल ने लोगों तक पहुंचने के लिए बस से पूरे राज्य को नापने का फैसला किया.
गुजरात के लिए इन्चार्ज कांग्रेस नेता राजीव सातव कहते हैं, 'गुजरात प्रचार अभियान के दौरान पहले यही विचार किया गया था कि राहुल गांधी हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करते हुए रैलियों को संबोधित करें. लेकिन राहुल गांधी ने साफ तौर पर कहा कि वे बस का इस्तेमाल करना चाहते हैं जिससे पार्टी का पूरा नेतृत्व साथ यात्रा करे और लोगों तक पहुंचे.'
बीजेपी के खिलाफ 'धर्मयुद्ध'
दीर्घकालिक रणनीति के तहत 27 सितंबर 2017 को यात्रा की शुरुआत के लिए प्रसिद्ध तीर्थनगरी द्वारका को चुना गया. राहुल ने वहां द्वारकाधीश मंदिर से बीजेपी के खिलाफ 'धर्मयुद्ध' का एलान किया. बिहार के लिए कांग्रेस इंचार्ज शक्ति सिंह गोहिल के मुताबिक द्वारका से बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस ने जो धर्मयुद्ध शुरू किया था वो 2019 लोकसभा चुनाव की जंग के साथ खत्म होगा.
राहुल की 'नवसर्जन' और 'जन आशीर्वाद', दोनों यात्राओं के पीछे 'मिनिमम इंवेस्टमेंट, मैक्सिम कैम्पेन' विचार को आधार बनाया गया. राहुल की दोनों यात्राओं का रूट इस तरह रखा गया कि ग्रामीण इलाकों के लोगों तक ज्यादा से ज्यादा पहुंचा जा सके. बड़ी जनसभाओं की तुलना में नुक्कड़ सभाओं, मोहल्ला सभाओं और स्वागत स्थलों पर लोगों से संपर्क पर ज्यादा जोर दिया गया. जहां लोगों की राहुल के नेतृत्व में पार्टी नेताओं के साथ सीधे बात हो सके.
राहुल की यात्राओं को और भी पर्सनल टच दिया गया जब राहुल पार्टी के अन्य नेताओं के साथ सड़कों के किनारे स्थित ढाबों पर गुजरात में चाय के साथ ढोकला और कर्नाटक में इडली-डोसा खाते दिखे. राहुल ने इन यात्राओं के दौरान पार्टी कार्यकर्ताओं, युवाओं को अपने साथ सेल्फी खिंचवाने के भी मौके दिए.
बस में यात्रा के दौरान पार्टी नेताओं को आपस में विचार-विमर्श के लिए भी काफी वक्त मिला. राहुल गांधी की मौजूदगी में पार्टी के राज्य स्तर के नेताओं के बीच मतभेद मौके पर ही सुलझाए गए वहीं उम्मीदवारों को तय करने और योजनाओं को लागू करने जैसे फैसले भी हाथों-हाथ लिए गए.
एकजुटता के लिए अहम है यात्रा
कर्नाटक के लिए पार्टी के जनरल सेक्रेटरी इंचार्ज के सी वेणुगोपाल कहते हैं, 'कर्नाटक में 'जन आशीर्वाद यात्रे' के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक ये भी रहा कि हम दुनिया को ये दिखाने में कामयाब रहे, कर्नाटक कांग्रेस पूरी तरह एकजुट है. राहुल जहां भी जाते सभी नेताओं को साथ लेकर जाते है, इस एकजुटता को कार्यकर्ताओं और लोगों से भी सराहना मिली.'
ये देखना दिलचस्प है कि कांग्रेस के रणनीतिकार पहले गुजरात और अब कर्नाटक चुनाव को 2019 लोकसभा चुनाव की फाइनल जंग से पूर्व बड़े सेमीफाइनल के दो चरणों के तौर पर ही देख रहे हैं.
गोहिल कहते हैं, 'कई विचारों और रणनीतियों को परखा गया. जिन रणनीतियों को अच्छी प्रतिक्रिया मिली और लोगों में अच्छा संदेश गया, उन्हें 2019 लोकसभा चुनाव में भी इस्तेमाल किया जाएगा. अब हमें पता है कि कौन सा प्लान लोगों में क्लिक करेगा.'
एआईसीसी महासचिव मधु गौड़ यक्षी ने कर्नाटक में राहुल की 'जन आशीर्वाद यात्रे' के दौरान हुए एक वाकये का जिक्र किया. यक्षी ने बताया, कि राहुल पार्टी के डिस्ट्रिक्ट ऑफिस पहुंचे और वहां से ब्लॉक अध्यक्षों और बूथ कमेटी दफ्तरों के प्रभारियों को सीधे फोन करना शुरू कर दिया. पहले तो कार्यकर्ताओं ने सोचा कि कोई उनसे मजाक कर रहा है. लेकिन जब उन्हें अहसास हुआ कि सच में राहुल गांधी से ही उनकी बात हो रही है तो उन्हें सुखद आश्चर्य हुआ. ये अपने आप में .जन आशीर्वाद यात्रे. की कार्यकर्ताओं से जुड़ाव को लेकर बड़ी कामयाबी है.
राजीव सातव कहते हैं, .ऐसी यात्राओं से पार्टी नेतृत्व को भी ये समझने में आसानी हो रही है कि जमीनी हकीकत क्या है. पहले राज्यों के नेता दिल्ली जाकर जानकारी देते थे. लेकिन अब केंद्रीय नेतृत्व को तत्काल और सीधे फीडबैक मिल रहा है. यानि लोगों की नब्ज को सीधे जानने का मौका मिल रहा है..
बहरहाल, नए अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस यही मान रही है कि .यात्रा मॉडल. पार्टी के लिए बीजेपी के खिलाफ .ब्रह्मास्त्र. की तरह काम करेगा.