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जब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा- क्या आप हॉर्स ट्रेडिंग को खुला न्योता दे रहे?

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद लगातार नाटकीय तरीके से कई सियासी घटनाक्रम हुए. आधी रात को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद भले ही कोर्ट ने येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया हो लेकिन बीजेपी की तरफ से दिए हुए तर्क को भी सिरे से खारिज कर दिया.

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कोर्ट ने केंद्र से पूछे सवाल
कोर्ट ने केंद्र से पूछे सवाल

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद लगातार नाटकीय तरीके से कई सियासी घटनाक्रम हुए. बुधवार आधी रात को कांग्रेस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद भले ही कोर्ट ने येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया हो लेकिन बीजेपी की तरफ से दिए तर्कों से कोर्ट संतुष्ट नजर नहीं आया.

बुधवार की शाम कर्नाटक के राज्‍यपाल वजुभाई वाला ने बीजेपी को सरकार बनाने का न्‍योता भेजा तो कांग्रेस इस मामले को लेकर बुधवार रात में ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. कांग्रेस के वकील और सरकार के वकीलों के बीच पूरी रात बहस हुई. तीन जजों की बेंच ने रातभर दोनों पक्षों को सुना और फिर दिन का सूरज निकलने के पहले आदेश दिया कि फिलहाल येदियुरप्पा का शपथ समारोह होगा.

इस मामले की सुनवाई जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी और जस्टिस शरद अरविंद बोबडे की बेंच ने की. अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने केंद्र सरकार का पक्ष रखा. पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने बीजेपी का पक्ष रखा और कांग्रेस की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी पेश हुए. जानिए, इस दौरान क्या तर्क-वितर्क हुए-

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दल-बदल कानून पर हुई बहस

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार के वकील ने तर्क दिया कि दल-बदल विरोधी कानून (एंटी डिफेक्शन लॉ) कर्नाटक के नवनिर्वाचित विधायकों के ऊपर लागू नहीं होता है क्योंकि अभी तक उन्होंने शपथ नहीं ली है.

सरकार के इस तर्क को 'बकवास' करार देते हुए कोर्ट ने कहा, 'इसका मतलब विधायकों की खरीद-फरोख्त (हॉर्स ट्रेडिंग) का खुला न्योता देना है.'

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कांग्रेस-जेडीएस की तरफ से पैरवी कर रहे अभिषेक मनु सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के सामने यह तर्क रखा कि बीजेपी तब तक बहुमत का दावा नहीं कर सकती है जब तक कि यह विधायकों को दल-बदल के लिए प्रोत्साहित ना करें. इस पर कोर्ट ने कहा कि इस पहलू को एंटी डिफेक्शन लॉ (दल-बदल कानून) के तहत देखा जाएगा.

केंद्र सरकार के वरिष्ठ कानून अधिकारी केके वेणुगोपाल ने कहा कि जरूरी नहीं कि ऐसा ही मामला बने. दल-बदल तब होगा जब एक सदस्य दूसरी पार्टी में चला जाए. जब तक निर्वाचित सदस्य विधायक पद की शपथ नहीं ले लेते हैं, तब तक उन पर दल-बदल कानून लागू नहीं होता है.

'क्या शपथ ग्रहण से पहले विधायक दल-बदल कर सकते हैं?'

सुप्रीम कोर्ट ने येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया लेकिन इस तर्क से वह पूरी तरह संतुष्ट नजर नहीं आई. कोर्ट ने केंद्र की दलील सुनने के बाद सवाल किया, 'तो क्या आपका मतलब है कि शपथ ग्रहण से पहले विधायक दल-बदल कर सकते हैं?'  कोर्ट ने बीजेपी के 112 के बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के तरीके पर हैरानी जताई.

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अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी, 'राज्यपाल लोकतंत्र को नहीं नकार सकते हैं.... एक तरफ 104 सदस्य हैं और दूसरी तरफ 116... यह बहुत ही कॉमन सेंस की बात है कि कौन सी संख्या बड़ी है.'

कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि अगर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास 116 का संख्याबल है तो बीएस येदियुरप्पा कैसे आधे से ज्यादा विधायकों के समर्थन मिलने का दावा कर रहे हैं? कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को सौंपा गया विधायकों के समर्थन वाला पत्र उन्होंने नहीं देखा है लेकिन येदियुरप्पा को बुलाने का आधार मौजूदा गणित के हिसाब से सही नहीं बैठता है.

मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि अगर किसी को शपथ दिला दी गई तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा. पिछली बार जब आधी रात को कोर्ट में सुनवाई की थी तो मामला याकूब मेमन को फांसी पर लटकाने से संबंधित था. वेणुगोपाल और मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से कांग्रेस की याचिका को खारिज करने की अपील के साथ कहा कि कोर्ट को राज्यपाल के फैसले पर रोक नहीं लगानी चाहिए.

'गोवा से अलग है कर्नाटक का मामला'

रोहतगी ने यह भी कहा कि कर्नाटक का मामला गोवा से बिल्कुल अलग है. गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी लेकिन बीजेपी और इसके सहयोगियों को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया गया था.

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रोहतगी ने कहा कि गोवा राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने बीजेपी को मनोहर पर्रिकर को आमंत्रित किया था क्योंकि कांग्रेस ने दावा पेश नहीं किया था.

आपको बता दें कि जेडीएस और कांग्रेस ने राज्यपाल को 117 विधायकों के समर्थन का पत्र सौंपा था. इसमें 78 कांग्रेस, 37 जेडीएस, एक बसपा और एक निर्दलीय विधायक के हस्ताक्षर हैं. आपको बता दें कि कर्नाटक में 222 सीटों पर मतदान हुआ था, इस हिसाब से बहुमत के लिए 112 विधायकों का समर्थन ही चाहिए. जबकि बीजेपी के पास सिर्फ 104 विधायक हैं. हालांकि बीजेपी कांग्रेस-जेडीएस (जिसके पास 116 विधायक हैं) से पहला राउंड तो जीत चुकी है.

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