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कर्नाटक में सरकार किसी की भी हो दबदबा जारकीहोली फैमिली का ही होता है... रेड्डी ब्रदर्स से कम नहीं है ताकत

कर्नाटक की सियासत में जितनी ताकत रेड्डी ब्रदर्स की है, उससे कम जारकीहोली फैमिली की नहीं है. बेलगावी का यह राजनीतिक कुनबा कांग्रेस और बीजेपी के बीच दो धड़ों में बटा हुआ है. जारकीहोली परिवार के दो भाई बीजेपी में तो दो भाई कांग्रेस में है. ऐसे में राज्य में किसी की भी सरकार बने, लेकिन जारकीहोली वर्चस्व कायम रहता है?

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जारकीहोली ब्रदर्स: रमेश, सतीष, बालचंद्र, लखन जारकीहोली
जारकीहोली ब्रदर्स: रमेश, सतीष, बालचंद्र, लखन जारकीहोली

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी की ही नहीं बल्कि कई सियासी घरानों की साख भी दांव पर है. कर्नाटक की सियासत में राजनीतिक परिवारों का भी अपना-अपना दबदबा है. रेड्डी बंधुओं का जिस तरह से सियासी दबदबा बेल्लारी क्षेत्र में उसी तरह से जारकीहोली परिवार की राजनीतिक तूती बेलगावी इलाके में बोलती है. जारकीहोली कुनबा कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में बराबर की धमक रखता है और पिछले दो दशक से राज करते आ रहे हैं. जारकीहोली फैमिली के सियासी ताकत की कहानी...   

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कांग्रेस-बीजेपी में जारकीहोली परिवार
जारकीहोली परिवार कर्नाटक की सियासत में अपना एक मुकाम रखते हैं. जारकीहोली पांच सगे भाइयों में से एक है, जिनमें से चार सक्रिय राजनीति में हैं. उनमें से दो भाई रमेश और बालचंद्र जारकीहोली बीजेपी में हैं तो दो भाई लखन और सतीश जारकीहोली कांग्रेस में है. पांचवे भाई बिमाशी है, जिन्हें सियासी दबंगई के लिए जाना जाता है. बेलगावी की सियासत इन्हीं पांचों भाइयों के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है, जिसके चलते कोई दूसरा नेता अपनी राजनीतिक पैर नहीं जमा पा रहा है. शराब की ठेकेदार से नेता बनने की कहानी
जारकीहोली परिवार के पांच भाई के पिता का नाम आर लक्ष्मणराव जारकीहोली है. जारकीहोली राज्य के प्रभावशाली जाति वाल्मीकि समाज से आते हैं, जो आदिवासी समुदाय में आता है. जारकीहोली परिवार को बेलगावी जिले में 'साहूकार' कहा जाता है. जारकीहोली भाइयों का उत्तरी कर्नाटक और पड़ोसी महाराष्ट्र के इलाके में चीनी और शराब के क्षेत्र में बड़ा निवेश बताया जाता है. 

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लक्ष्मणराव एक स्थानीय स्तर के शराब ठेकेदारी करते थे. ऐसे में पांचों भाइयों ने पिता के साथ मिलकर पहले शराब के काम को आगे बढ़ाया और बेलगावी जिले में कई पेट्रोल पंपों के मालिक बन गए. इसके बाद जारकीहोली परिवार ने चीन उद्योग के कारोबार में कदम रखा और अब कई चीनी मील के मालिक है और साथ ही कई स्कूल और अन्य प्रतिष्ठान चलाता है. 

जरकीहोली परिवार कर्नाटक में काफी संपन्न होने के साथ ठीक उसी तरह से सियासी शक्ति रखता है जैसे रेड्डी बंधुओं की है. बेल्लारी बंधुओं ने खनन के जरिए अपनी संपत्ति अर्जित की तो जाकीहोली परिवार जमीन कारोबार और चीनी मील व्यापारी हैं. बालचंद्र कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के अध्यक्ष हैं, जो सियासी तौर पर शक्तिशाली पद पर बने हुए हैं. रेड्डी बंधुओं में से एक, सोमशेखर रेड्डी मिल्क फेडरेशन के पूर्व अध्यक्ष भी हैं. 

जारकीहोली ब्रदर्स कर्नाटक के प्रभावशाली और कारोबारी फैमिली से आते हैं और बेलगावी की सियासत पर अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें आमने-सामने भी चुनावी मैदान में उतरना पड़ता है तो पीछे नहीं हटते हैं. इतना ही नहीं जारकीहोली भाइयों को  एक पार्टी से दूसरी पार्टी में अपनी निष्ठा बदलने के लिए जाना जाता है, लेकिन इस बदलाव ने उत्तरी कर्नाटक के बेलगावी पर उनकी पकड़ को प्रभावित नहीं किया है. तमाम मतभेदों के बावजूद जारकीहोली भाइयों के लिए परिवार ही सब कुछ है. 

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सियासत में ऐसे आए जारकीहोली परिवार

जारकीहोली परिवार में सबसे पहले भाई रमेश जारकीहोली ने राजनीति में कदम रखा है. रमेश कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर 1999 में पहली बार विधायक बने. सतीश और बालचंद्र जारकीहोल ने जेडीएस के साथ राजनीतिक पारी को आगे बढ़ाया. दोनों भाइ जेडीएस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे. साल 2008 में सतीश जारकीहोली जेडीएस से कांग्रेस में शामिल हो गए और बालचंद्र जारकीहोली 2008 में जेडीएस से बीजेपी में आ गए. रमेश जारकीहोली ने 2019 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में एंट्री कर गए. इस तरह से जारकीहोली परिवार दो सियासी दलों के बीच बट हुआ है. 

माना जाता है कि जारकीहोली ब्रदर्स और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच हुए सियासी वर्चस्व के चलते ही एचडी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कर्नाटक गठबंधन सरकार के मुश्किलों की शुरुआत हुई, जिसका 2019 में आखिरकार पतन का कारण बनी. रमेश जारकीहोली ने बगावत का बिगुल फूंका था और अपने साथ साथ विधायकों को लेकर बीजेपी के खेमे में खड़े हो गए हैं. 

जरकीहोली फैमिली में सबसे बड़े भाई रमेश गोकाका सीट और बालचंद्र अराभावी सीट से बीजेपी के विधायक हैं, जबकि सतीश और लखन कांग्रेस के साथ हैं. सतीश यमकानमर्दी सीट से  कांग्रेस विधायक हैं तो लखन एमएलसी हैं. अलग-अलग राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करने, पार्टियों के बदलने और एक-दूसरे से टकराने के बावजूद जारकीहोली भाइयों ने सत्ता संभाली है और बेलगावी में अपनी पकड़ को कमजोर नहीं होने दिया. 

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बेलगावी में सियासी तूती बोलती है

जारकीहोली फैमिली के प्रभाव वाले बेलगावी क्षेत्र की बात करें तो इस जिले को सरकार बनाने या तोड़ने वाले जिले के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह बड़े राजनीतिक घराने का नेतृत्व करने के साथ बड़ी संख्या में विधानसभा सीटों का भी नेतृत्व करता है. बेलगावी विधानसभा सीटों की संख्या के मामले में बेंगलुरु के बाद यह दूसरा सबसे अधिक इलाका है. बेलगावी में 

कुल 18 विधानसभा सीटें आती हैं. इन 18 सीटों में से 5 निर्वाचन क्षेत्रों में मराठों का वर्चस्व है, जबकि बचे हुए 13 निर्वाचन क्षेत्रों में से ज्यादातर पर लिंगायत समाज का दबदबा है. इसके अलावा ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय भी अच्छी खासी संख्या में है. 

बेलगावी क्षेत्र में अच्छी तरह से  जारकीहोली भाइयों का प्रभाव है. बेलगावी की अधिकांश विधानसभा सीटों पर पार्टी निश्चित रूप से उन पर निर्भर है, क्योंकि उन्होंने कोई वैकल्पिक नेतृत्व नहीं पनपने दिया. ऐसे में बेलगावी की सियासत जारकीहोली परिवार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है और ये पांच भाई जैसे चाहते हैं, उसी तरह से राजनीतिक दशा और दिशा तय करते हैं? 

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