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बीजेपी की कमजोरी, JDS की ताकत और कांग्रेस के लिए अवसर... ओल्ड मैसूर बदल देगा कर्नाटक का चुनावी गेम!

कर्नाटक का ओल्ड मैसूर इलाका चुनावी लिहाज से अहम रहता है. जेडीएस के इस गढ़ पर दोनों कांग्रेस और बीजेपी की नजर है. बीजेपी ने कुछ स्थानीय नेताओं को साथ अपनी उम्मीद को बढ़ाया है तो कांग्रेस भी लगातार इसे किले में सेंधमारी करने की कोशिश कर रही है.

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कर्नाटक चुनाव में कड़ा मुकाबला
कर्नाटक चुनाव में कड़ा मुकाबला

कर्नाटक चुनाव में 38 साल का ट्रेंड तोड़ते हुए बीजेपी एक बार फिर सत्ता में वापसी करना चाहती है. उसका एक ही उदेश्य है कि किसी भी कीमत पर बहुमत के आंकड़े तक पहुंचना है. दो बार बीजेपी ने राज्य में अपनी सरकार जरूर बनाई है, लेकिन 113 के जादुई आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई है. ऐसे में अब पार्टी अपनी रणनीति में एक बदलाव कर रही है. उस बदलाव के तहत ओल्ड मैसूर क्षेत्र में बीजेपी अपने पिछले प्रदर्शन को सुधारना चाहती है. 

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89 सीटों पर बीजेपी की नजर

कर्नाटक के ओल्ड मैसूर और बेंगलुरू अर्बन क्षेत्र से अकेले 89 सीटें निकलती हैं. यहां भी ओल्ड मैसूर का इलाका परंपरागत रूप से जेडीएस के साथ खड़ा रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री देव गौड़ा की छवि और उनका वोक्कालिगा समुदाय से आना यहां जेडीएस को दूसरी पार्टियों की तुलना में ज्यादा फायदा दे गया है. वहीं दूसरी तरफ बात जब बीजेपी की आती है, इसी वोक्कालिगा समाज का क्योंकि कोई बड़ा नेता साथ नहीं है, ऐसे में उसकी सीटें भी ज्यादा नहीं रहती हैं. 2018 में कुछ बेहतर प्रदर्शन करते हुए बीजेपी ने अपनी सीटों का आंकड़ा 8 से बढ़ाकर 15 तो कर लिया, लेकिन जेडीएस-कांग्रेस से वो पीछे ही रही. अब इस बार इसी इलाके में जेडीएस के वोट में सेंधमारी करने के लिए बीजेपी ने कई स्थानीय नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया है.

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इसी कड़ी में पिछले कुछ समय के अंदर ही बीजेपी के साथ डी सुधारकर, केसी नारायण, एचटी सोमेश्कर, बायरथी बसवराज, वी गोपालिया जैसे नेता जुड़ गए हैं. बड़ी बात ये है कि ओल्ड मैसूर क्षेत्र में जो दो उपचुनाव हुए हैं, उनमें बीजेपी के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है. उस जीत का क्रेडिट पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के बेटे बी वाई येदियुरप्पा को दिया गया है. इस बार भी ओल्ड मैसूर की बागडोर पार्टी ने उन्हें दे रखी है. उन्हीं की रणनीति के दम पर पार्टी 89 सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करने की उम्मीद कर रही है.

जेडीएस का कैसे गढ़ बना ओल्ड मैसूर?

अब बीजेपी तो अपनी रणनीति पर काम कर ही रही है, कांग्रेस भी इस बार अपने के लिए यहां पर अवसर तलाश रही है. ये नहीं भूलना चाहिए ओल्ड मैसूर पर एक समय कांग्रेस का ही दबदबा रहता था. जब तक एचडी देव गौड़ा ने अलग पार्टी बना वोक्कालिगा का इमोशनल कार्ड नहीं खेला था, कांग्रेस को इस क्षेत्र में अच्छी खासी सीटें मिल जाती थीं. कर्नाटक का इतिहास बताता है कि 1983 से पहले तक ओल्ड मैसूर में कांग्रेस का प्रदर्शन शानदार रहता था. लेकिन जब 1983 में राज्य में पहली गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी, ओल्ड मैसूर का मिजाज भी बदलना शुरू हो गया. उसके बाद तो जनता पार्टी के कई गुट बने, उन्हीं में से एक रहा जनता दल सेकुलर यानी कि जेडीएस. 

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एचडी देव गौड़ा को अच्छे से पता था कि कर्नाटक में लिंगायत के बाद अगर कोई निर्णायक वोटबैंक है तो वोक्कालिगा समाज का है, ऐसे में उन्होंने उसी समीकरण को भुनाया और कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी बने और बाद में देश के प्रधानमंत्री भी. कर्नाटक की राजनीति में जेडीएस को दोनों कांग्रेस और बीजेपी ने बड़े भाई की भूमिका में देखा है. इसका कारण ये रहा है कि जेडीएस अपने दम पर कभी भी सरकार नहीं बना पाई है. लेकिन किंगमेकर बनने का अवसर उसे कई मौकों पर मिला है, ऐसे में छोटी पार्टी होने के बावजूद जेडीएस ने सत्ता का सुख ज्यादातर भोगा है. 2004 में तो उसने अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए 56 सीटें जीती थीं. उस चुनाव में बीजेपी के खाते में 79 और कांग्रेस को 65 सीटे मिली थीं. देव गौड़ा के लिए बड़ी बात ये भी रही कि उन्होंने खुद तो सत्ता का भोग लिया ही, अपने बेटे कुमारस्वामी को भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया, वो भी दो बार.

कांग्रेस के लिए क्या अवसर?

अब इस बार कर्नाटक में एक्सपर्ट मान रहे हैं कि जेडीएस को सिर्फ 25 से 35 सीटें मिल सकती हैं, यानी कि उसका प्रदर्शन औसत से भी कम रह सकता है. दूसरी तरफ कांग्रेस और बीजेपी भी जेडीएस को सियासी रूप से निष्क्रिय करना चाहती है, ऐसे में इस पार्टी के सामने चुनौतियां अनेक हैं. लेकिन इसी चुनाव को देव गौड़ा का आखिरी भी माना जा रहा है, ऐसे में एक इमोशनल कार्ड के जरिए भी लोगों के बीच माहौल बनाने की कोशिश हो रही है.

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वैसे अगर कांग्रेस ओल्ड मैसूर में बेहतर प्रदर्शन करती है तो उसकी सत्ता में वापसी की प्रबल संभावना बन जाएगी. पार्टी कुछ क्षेत्रों में पहले से ही मजबूत है, ऐसे में अगर जेडीएस के गढ़ में भी वो अतिरिक्त सीटें निकाल लेती है तो बहुमत तक पहुंचना उसके लिए कुछ आसान हो जाएगा. पिछले चुनाव की बात करें तो ओल्ड मैसूर में कांग्रेस को 20 सीटें मिली थीं, ये 2013 के मुकाबले 6 सीटों का नुकसान था. लेकिन इस बार कांग्रेस को यहां बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है, खुद डीके शिवकुमार क्योंकि वोक्कालिगा समाज से आते हैं, ऐसे में पार्टी इसका पूरा लाभ उठाना चाहेगी.

रामकृष्ण उपाध्याय की रिपोर्ट

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