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केरल चुनाव: क्या BJP की हिंदुत्व से लगेगी नैया पार या राहुल बनेंगे नए पोस्टर बॉय?

केरल में 6 अप्रैल से विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं जिसके परिणाम 2 मई को आएंगे, ऐसे में जानना जरूरी है कि कांग्रेस, सीपीआई(एम) और भाजपा के पास कौन-कौन से मुद्दे हो सकते हैं जो उन्हें वोट दिला सकते हैं.

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केरल चुनाव का बिगुल बज चुका है (फाइल फोटो)
केरल चुनाव का बिगुल बज चुका है (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • केरल में विधानसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है
  • BJP सबरीमाला, लव जिहाद पर कर सकती है फोकस
  • कांग्रेस के पास संभावनाएं हैं लेकिन लेफ्ट बड़ी चुनौती
  • राहुल गांधी के बयान से मिल सकता है फायदा

केरल के कोल्लम तट पर जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने समंदर में मछुआरों के साथ छलांग लगाई तो सवाल उठे कि इस चुनाव में कांग्रेस के हाथ केरल में वोटों वाले मोती लगेंगे या नहीं. कांग्रेस केरल में चुनावी जीत को लेकर बहुत उम्मीद पाले हुए है. दूसरी बात ये है कि राहुल गांधी वायनाड से सांसद भी हैं. खुद राहुल गांधी भी इस चुनाव में बहुत जोर लगा रहे हैं.

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लेकिन सवाल ये है कि क्या कांग्रेस की उम्मीदों पर मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन फिर से पानी फेर देंगे. क्योंकि LDF (लेफ्ट गठबंधन) को पंचायत, नगरपालिका और नगर निगमों तीनों चुनावों में बहुमत मिला है. ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पताका लहराने का रास्ता बहुत आसान नजर नहीं आता. दिसंबर में हुए स्थानीय निकाय चुनावों में एलडीएफ ने 40.2 फीसदी वोट हासिल किए थे जबकि कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन ने 37.9 फीसदी वोट हासिल किए थे. जबकि बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को 15 फीसद वोट मिले हैं. देखा जाए तो भले ही कांग्रेस को निकाय चुनावों में बहुमत न मिला हो लेकिन वोट प्रतिशत ठीक-ठाक मिला है.

अब बड़ा सवाल यही है कि क्या केरल का पुराना वोटिंग ट्रेंड कांग्रेस की मदद करेगा? क्या राहुल गांधी के केरल से सांसद होने का कोई असर होगा? क्या कोरोना काल में मुख्यमंत्री पिनरई विजयन की लोकप्रियता लेफ्ट के लिए फायदेमंद होगी? क्या बीजेपी का कोई बड़ा असर रहेगा? अगर हां तो वो नुकसान किसे पहुंचाएगी?

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शुक्रवार की शाम को नेताओं के एग्जाम की डेटशीट आ चुकी है यानी चुनाव आयोग ने केरल समेत पांच विधानसभाओं के चुनावों की तारीख का ऐलान कर दिया है. केरल में 6 अप्रैल के दिन वोटिंग होने जा रही है और 2 मई के दिन मतगणना होगी, जिसमें पता चलेगा कि केरल में किस पार्टी को बहुमत मिला. इसलिए अब वोटों वाले नंबर हासिल करने की लड़ाई बहुत तेज होने वाली है. किसकी डिस्टिंक्शन आएगी. किसकी कंपार्टमेंट. कौन फेल होगा. कौन पास? सब सवालों के जवाब जनता देगी.

लेकिन इससे पहले केरल के कुछ मुद्दों और वहां के धार्मिक गणित को देख लेते हैं. केरल में हिन्दू मतदाताओं की जनसंख्या 55 प्रतिशत करीब है, जबकि अल्पसंख्यकों जैसे मुस्लिम और ईसाइयों की जनसंख्या करीब 45 प्रतिशत है. लेकिन केरल के हिन्दू और उत्तर भारत के हिन्दू में अंतर है. केरल में हिंदुत्व कार्ड उस तरह काम नहीं करता जैसे देश के बाकी हिस्सों में कर गया है. केरल के हिन्दू मतदाता सीपीआई, सीपीआई(एम) और कांग्रेस को वोट करते हैं, अगर भाजपा ध्रुवीकरण करने में सफल भी हुई, तब भी भाजपा को इन 55 प्रतिशत वोटों में से कितने ही प्रतिशत वोट मिल सकेंगे ये बड़ा सवाल है.

इसलिए भाजपा को केरल विधानसभा चुनाव जीतने के लिए मुस्लिम और ईसाई वोटरों की तरफ भी देखना पड़ेगा जोकि भाजपा को लेकर आमतौर पर अधिक सकारात्मक नहीं हैं. इसलिए भाजपा के लिए केरल चुनाव में जीत की डगर काफी अधिक मुश्किल है. पिछली बार साल 2016 में हुए चुनावों में भाजपा को 140 सीटों में से मात्र एक सीट हाथ लगी थी.

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ऐसे में भाजपा का केरल में बहुमत लाना, या सरकार में एक बड़ा योगदान देने लायक सीटें लाना भी मुश्किल लग रहा है. हालांकि इस बार कुछ ईसाई समूहों में केरल में मुसलमानों की बढ़ती जनसंख्या से चिंता देखी गई है. इसलिए वे भाजपा की तरफ कुछ सकारात्मक भी हैं. इसके अलावा केरल के एक कैथलिक चर्च ने तो लव जिहाद का मुद्दा उठाते हुए ये भी कहा था कि साजिशन ईसाई लड़कियों को इस्लामिक स्टेट के हाथों बेचा जा रहा है, उन्हें मुसलमान बनाया जा रहा है. इसके अलावा बीते जनवरी महीने में ही केरल के कुछ पादरी प्रधानमंत्री मोदी से भी मिले थे. इन कुछ कारणों से लग रहा है कि केरल में भाजपा ईसाई मतदाताओं का सहारा ले सकती है.

केरल में सबरीमाला का मुद्दा भी वोटरों को प्रभावित कर सकता है. इसी को देखते हुए केरल की सीपीआई (एम) सरकार ने CAA कानून के साथ-साथ सबरीमाला से जुड़े मुकदमों को भी वापस ले लिया है. साल 2018 में सबरीमाला के मुद्दे पर पांच बार केरल बंद किया गया था, कई जगहों पर हिंसा भी हुई थी. इस मामले में करीब 50 हजार लोगों पर मुकदमे ठोके गए थे. विपक्ष इस मुद्दे को लगातार उठाता रहा है. भाजपा ने इस मुद्दे पर जबर्दस्त आंदोलन भी किया था. देखना ये है कि सबरीमाला मसले का फायदा किसको मिलेगा. 

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इसके अलावा एक और तात्कालिक मुद्दा है जिसका फायदा कांग्रेस को मिल सकता है वह ये है कि राहुल गांधी ने तिरुवनंतपुरम की एक रैली के दौरान केरल की जनता को प्रबुद्ध और राजनीतिक रूप से समझदार कहा था, जिसे भाजपा ने उत्तर भारतीयों का अपमान मानते हुए एक बड़ा मुद्दा बना लिया. अब इस बयान से राहुल गांधी को उत्तर भारत में कोई नुकसान हो न हो, लेकिन उन्हें केरल में इसका फायदा जरूर मिल सकता है. केरल में राहुल गांधी के इस बयान को राजनीतिक तौर एक ध्रुवीकरण की तरह देखा जा सकता है, जिससे राहुल गांधी केरल में एक पोस्टर बॉय की तरह उभर सकते हैं. 

राहुल गांधी को एक उत्साहित नेता के रूप में पेश करके, कांग्रेस की जमीनी मतदाताओं और परिवर्तन की केरल वासियों की चाह को मिला दिया जाए तो कांग्रेस को केरल चुनाव में ठीक-ठाक जगह मिल सकती है. लेकिन उसका मुकाबला लेफ्ट गठबंधन से है, इसलिए लड़ाई आसान नहीं लगती.

 

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