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देश के कई राज्यों में मुस्लिम वोटों की परवाह न करने वाली भारतीय जनता पार्टी केरल में मुसलमानों सहित सभी अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही. उसके एक नेता ने तो यहां तक कह दिया है कि उन्हें मुस्लिम लीग से भी गठबंधन करने से परहेज नहीं है. बीजेपी की इस राजनीतिक मजबूरी को समझने के लिए केरल के जनसंख्या घटक और वहां की राजनीति को समझना होगा.
मुसलमान भी जुड़ रहे बीजेपी से
केरल के बहुत से साधन संपन्न मुसलमान युवा अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए बीजेपी से जुड़ रहे हैं. दिसंबर 2020 में राज्य में हुए लोकल बॉडी इलेक्शन में बीजेपी ने 600 से ज्यादा मुस्लिम और ईसाई उम्मीदवार उतारे थे. इनमें 112 मुस्लिम और 500 ईसाई उम्मीदवार थे. इस तरह पार्टी ने अल्पसंख्यक समुदाय में अपना आधार मजबूत किया.
इन चुनावों में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एपी अब्दुलकुट्टी ने काफी मेहनत की. यही नहीं, बीजेपी ने मुस्लिम लीग के गढ़ मलप्पुरम जिले में भी दो मुस्लिम महिला कैंडिडेट खड़ी कीं. वंडूर पंचायत से टीपी सुलफत और पॉनमुडम पंचायत से आयशा हुसैन को उम्मीदवार बनाया गया.
पंचायत चुनावों को बानगी माना जाए तो कहा जा सकता है कि आगामी विधानसभा में केरल में बीजेपी कुछ मुस्लिम कैंडिडेट उतार सकती है. ये इसलिए खास बात है क्योंकि गुजरात, यूपी जैसे कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने एक भी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था.
'मुस्लिम लीग से भी नहीं परहेज'
हाल में केरल बीजेपी की बड़ी नेता शोभा सुरेंद्रन के इस बयान पर काफी बवाल हुआ था कि 'बीजेपी को मुस्लिम लीग से भी गठबंधन करने से परहेज नहीं है.' बाद में पार्टी ने सफाई दी कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है और उनके कहने का मतलब यह है कि मुस्लिम लीग यदि अपनी सांप्रदायिक नीतियां छोड़ दे तो बीजेपी को उसके साथ जुड़ने से परहेज नहीं है.
यह बयान तब और महत्वपूर्ण हो जाता है, जब केरल के पड़ोस के ही कर्नाटक में बीजेपी सरकार के के.एस. ईश्वरप्पा जैसे मंत्री यह बयान देते रहे हों कि 'मुसलमानों को टिकट' नहीं दिया जाएगा और केरल में योगी आदित्यनाथ जैसे हिंदुत्ववादी छवि के नेता प्रचार के लिए जाते रहे हों.
क्या कहा बीजेपी प्रवक्ता ने
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और केरल के नेता टॉम वडक्कम ने aajtak.in से कहा, शोभा सुरेंद्रन की निजी राय पार्टी की आधिकारिक नीति नहीं है. हमारी पार्टी में लोकतंत्र है. यहां सबको अपनी राय रखने का हक है. किस पार्टी के साथ गठबंधन करना है और किसके साथ नहीं, यह पार्टी का नेतृत्व काफी मंथन के बाद तय करता है, कोई एक नेता यह तय नहीं कर सकता.'
विधानसभा चुनाव में मुसलमानों को टिकट देने के सवाल पर वडक्कम ने कहा, 'हमारी पार्टी ने कभी यह नहीं कहा है कि हम मुस्लिमों या किसी समुदाय को टिकट नहीं देंगे. हमारे लिए टिकट देने का एक ही आधार होता है किसी कैंडिडेट की जीत की क्षमता.'
क्या है बीजेपी की मजबूरी
केरल में संघ परिवार की दशकों की मेहनत के बाद भी बीजेपी को खास सफलता नहीं मिली है. इसकी वजह यह है कि राज्य में 45 फीसदी जनसंख्या ईसाई और मुसलमानों की है. यहां कितना भी ध्रुवीकरण हो जाए, बीजेपी को सिर्फ हिंदुओं के बल पर सफलता मिलनी मुश्किल है, क्योंकि हिंदू वोटों में लेफ्ट और कांग्रेस का भी दशकों का मजबूत आधार है. इसलिए बीजेपी ईसाइयों और मुसलमानों में अपना आधार बढ़ाने की कोशिश कर रही है और उसे कम से कम केरल में इससे कोई समस्या नहीं है.
140 सीटों वाली केरल विधानसभा का कार्यकाल एक जून को खत्म हो रहा है. यहां 6 अप्रैल को सिर्फ एक चरण में चुनाव होंगे. राज्य में 2016 में हुए विधानसभा चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई वाले गठबंधन लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट ने 91 सीटों पर जीत हासिल की थी. पिनाराई विजयन राज्य के 12वें मुख्यमंत्री बने. कांग्रेस की अगुवाई वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट दूसरे नंबर पर रहा था.