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सियासी पारी खेलने को तैयार 'मेट्रो मैन' ई श्रीधरन, कोंकण रेलवे से मिली थी पहचान

श्रीधरन का दिल्ली मेट्रो के अलावा कोलकाता, कोच्चि समेत देश के कई बड़े मेट्रो प्रोजेक्ट में अहम योगदान रहा है. भारत सरकार की ओर से श्रीधरन के योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म विभूषण, पद्म श्री जैसे सम्मान से नवाजा जा चुका है.

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मेट्रो मैन ई श्रीधरन (फाइल फोटोः इंडिया टुडे)
मेट्रो मैन ई श्रीधरन (फाइल फोटोः इंडिया टुडे)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 21 फरवरी को बीजेपी में शामिल होंगे श्रीधरन
  • सात साल में पूरी हुई थी कोंकण रेल परियोजना

ई श्रीधरन फिर चर्चा में हैं. भारत के मेट्रो मैन कहे जाने वाले 88 साल के ई श्रीधरन के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ज्वाइन करने की चर्चा है. चर्चा यह भी है कि श्रीधरन बीजेपी ज्वाइन करने के बाद केरल में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी किस्मत आजमाएंगे. बीजेपी के मुताबिक श्रीधरन 21 फरवरी को पार्टी में शामिल होंगे.

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केरल बीजेपी के अध्यक्ष के सुरेंद्रण की ओर से श्रीधरन के पार्टी की सदस्यता लिए जाने की जानकारी दी गई थी. श्रीधरन का दिल्ली मेट्रो के अलावा कोलकाता, कोच्चि समेत देश के कई बड़े मेट्रो प्रोजेक्ट में अहम योगदान रहा है. भारत सरकार की ओर से श्रीधरन के योगदान को देखते हुए उन्हें पद्म विभूषण, पद्म श्री जैसे सम्मान से नवाजा जा चुका है. श्रीधरन को पहचान मिली थी कोंकण रेलवे से.

गौरतलब है कि साल 1990 में तत्कालीन रेल मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस ने मुंबई से मंगलोर तक रेल लाइन बिछाने की इच्छा जताई थी. इसे फर्नांडीस ने अपना ड्रीम प्रोजेक्ट बताया था जिससे रेल से अछूते इस हिस्से को भी रेल नेटवर्क से जोड़ा जा सके. भारत के दुर्गम इलाकों में से एक पश्चिमी घाट से गुजरने वाली रेल लाइन के निर्माण में कई परेशानियां थी. इन परेशानियों को देखते हुए भारतीय रेल ने कभी इस मार्ग पर सर्वेक्षण तक नहीं किया था.

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माना जाता था असंभव परियोजना

कुल 738 किलोमीटर लंबी इस रेलवे लाइन को लगभग असंभव परियोजना माना जाता था. इस रुट पर 93 सुरंग की जरूरत थी. इस रेलवे लाइन को न केवल घाटों की कठोर ज्वालामुखीय चट्टानों से होकर गुजरना था, बल्कि नरम मिट्टी और यहां तक कि रेतीले हिस्सों से भी गुजरना था. इस रेलवे लाइन बनाने के लिए 157 बड़े और 6000 छोटे पुल के निर्माण की जरूरत थी. इस परियोजना पर अनुमानित लागत करीब 3000 करोड़ रुपये थी जो तब के लिहाज से बहुत बड़ी रकम थी.

श्रीधरन ने इंडिया टुडे को बताया था कि तब नई रेलवे लाइन के लिए सालाना बजट बमुश्किल 600 करोड़ रुपये का था और करीब 20 रेल लाइनें पहले से ही निर्माणाधीन थीं. इतने कम वित्तीय संसाधनों के साथ पारंपरिक तरीके से कोंकण परियोजना के पूरा होने में कम से कम 30 साल लगते. उन्होंने इस रेल लाइन के चार लाभार्थी राज्यों महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक और केरल को हिस्सेदार बनाते हुए स्पेशल पर्पज वेहिकल (एसपीवी) के गठन का सुझाव दिया था. इसके मुताबिक परियोजना की एक तिहाई लागत राज्यों को वहन करना था.

फर्नांडीस ने दी थी परियोजना की जिम्मेदारी

श्रीधरन के सुझाव के मुताबिक परियोजना की एक तिहाई लागत राज्यों और शेष बाजार से हासिल की जानी थी. श्रीधरन ने तब रेल मंत्री फर्नांडीस को यह बताया था कि इससे परियोजना पर कार्य 7 साल में पूरा किया जा सकता है. फर्नांडीस को सुझाव पसंद आया और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया. श्रीधरन जब जून 1990 में रिटायर हुए तो फर्नांडीस ने उन्हें परियोजना की जिम्मेदारी दे दी. उन्हें कोंकण रेलवे कॉर्पोरेशन का अध्यक्ष-सह-प्रबंध निदेशक बना दिया गया. परियोजना श्रीधरन के अनुमान के अनुसार सात साल में पूरी हो गई और इस सफलता ने श्रीधरन को नई पहचान दे दी.

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दिल्ली मेट्रो की सफलता ने मेट्रो क्रांति को दिया जन्म

मेट्रो मैन श्रीधरन को कोंकण रेल परियोजना की सफलता ने दिल्ली मेट्रो तक पहुंचाया और दिल्ली मेट्रो की सफलता ने भारत में मेट्रो क्रांति जन्म दिया. साल 1995 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (डीएमआरसी) की स्थापना हुई और इसमें भी कोंकण रेलवे की तर्ज पर एसपीवी के सिद्धांत को अपनाया गया. भारत सरकार और दिल्ली सरकार ने एसपीवी डीएमआरसी की स्थापना की.

पम्बन पुल की मरम्मत से मिली थी प्रसिद्धि

मेट्रो मैन ई श्रीधरन को प्रसिद्धि तब मिली थी, जब साल 1963 के चक्रवात में बह गए पम्बन पुल की मरम्मत हुई थी. तब रेलवे को यह अनुमान था कि रामेश्वरम से देश के अन्य इलाकों को जोड़ने वाले इस एकमात्र संपर्क मार्ग की मरम्मत में करीब छह महीने का समय लगेगा. श्रीधरन ने इस काम को 46 दिन में ही पूरा करवा दिया था. पम्बन पुल के रिकॉर्ड समय में मरम्मत से श्रीधरन को प्रसिद्धि मिली थी, फिर भी वे खुद ऐसा मानते हैं कि दिसंबर 1954 से जून 1990 यानी रिटायर होने तक रेलवे में उनका करियर सामान्य था.

 

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