केरल की 140 सदस्यीय विधानसभा चुनाव के लिए 6 अप्रैल यानी मंगलवार को वोट डाले जाएंगे. राज्य में सिर्फ एक विधायक वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का इस बार अपनी संख्या बढ़ाने पर पूरा जोर है. हालांकि जानकार यह मानते हैं कि बीजेपी एक से ज्यादा जितनी भी सीटें जीत जाए उसके लिए एक उपलब्धि होगी. कुछ जानकार तो कहते हैं कि बीजेपी के सामने अपनी पिछली सीट भी बचा पाने की चुनौती है. आइए जानते हैं कि राज्य में बीजेपी के लिए कैसी है संभावना.
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोमवार को एक बयान में कहा, 'केरल में हम बड़ी ताकत बनकर उभरेंगे, क्योंकि सत्तारूढ़ एलडीएफ और यूडीएफ ने कुशासन दिया है. राज्य की जनता ने बीजेपी को समर्थन देना शुरू कर दिया है, इसलिए हम केरल में भी अच्छा प्रदर्शन करने वाले हैं.'
गौरतलब है कि पिछले चुनावों में बीजेपी का वोट शेयर लगातार बढ़ता गया है. केरल में बीजेपी इस बार कुल 115 सीटों पर चुनाव लड़ रही है और उसने 25 सीटें एनडीए के सहयोगी दलों को दे रखी हैं. बीजेपी जिन सीटों पर खास उम्मीद है उनमें पलक्कड़, नेमोम, कझाकुट्टम, कोन्नि, मंजेश्वरम आदि हैं.
बुनियाद होगी मजबूत?
केरल बीजेपी के कई नेता यह दावा करते रहे हैं कि वे कम से कम एक दर्जन सीटें जीतेंगे. कुछ बीजेपी नेताओं का कहना है कि अकेले तिरुअनंतुपरम जिले में पिछले साल हुए पंचायत चुनाव में करीब 11 विधानसभा सीटों पर बीजेपी को 30,000 से ज्यादा वोट मिले हैं. इसके आधार पर राज्य के बीजेपी नेताओं को उम्मीद है कि इस बार उन्हें अच्छी जीत मिलेगी.
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता टॉम वडक्कम कहते हैं, 'जिस राज्य में बीजेपी का कोई नामलेवा नहीं था, वहां अब बीजेपी-एनडीए तीसरी ताकत बन गई हैं. यह कम नहीं है. इस चुनाव में भी बीजेपी की बुनियाद और मजबूत होगी. हमारा वोट शेयर बढ़ेगा और प्रदेश भर में हमारी पहुंच बढ़ेगी.'
लेकिन राज्य की राजनीति के जानकार कहते हैं कि यह इतना आसान नहीं है. केरल की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले राज्य के वरिष्ठ पत्रकार हसनुल बन्ना कहते हैं कि पंचायत चुनाव और विधानसभा चुनाव के मसले बिल्कुल अलग होते हैं. यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि जिस तरह से पंचायत चुनाव में वोट पड़े हैं, उसी तरह से विधानसभा चुनाव में भी वोट पड़ेंगे.
बन्ना कहते हैं, 'राज्य में वैसे तो बहुत अच्छी स्थिति में बीजेपी 3 से 5 सीटें मिल सकती है, लेकिन निचले स्तर तक की बात की जाए तो बीजेपी इस बार शून्य पर भी सिमट सकती है, क्योंकि उसकी नेमोम सीट फंसी हुई दिख रही है, जहां से उसे पिछली बार केरल के इतिहास में पहली विजय मिली थी. इसकी वजह यह है कि इस बार वहां से कांग्रेस ने करुणाकरण के बेटे और सांसद के. मुरलीधरन को कैंडिडेट बनाया है, जो काफी लोकप्रिय हैं. '
इन सीटों पर बीजेपी को खास उम्मीद
नेमोम
ये बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा प्रतिष्ठा वाली सीट है. पिछले यानी 2016 के विधानसभा चुनाव में नेमोम सीट राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बनी, जब भारतीय जनता पार्टी को यहां पहली बार जीत हासिल हुई. उसके स्टार कैंडिडेट और पूर्व केंद्रीय मंत्री ओ. राजगोपाल ने माकपा नेता वी सिवनकुट्टी और यूडीएफ कैंडिडेट पूर्व मंत्री वी सुरेंद्रन पिल्लई को हराकर सबको चौंका दिया था. यह केरल विधानसभा में बीजेपी की पहली जीत थी. इस बार इस सीट को बचाए रखना बीजेपी के लिए काफी प्रतिष्ठा की बात होगी.
इसीलिए बीजेपी ने इस सीट से मेघालय के पूर्व गर्वनर के. राजशेखरन को कैंडिडेट बनाया है. कांग्रेस यानी यूडीएफ से उनके सामने हैं पूर्व मुख्यमंत्री के करुणाकरण के बेटे और सांसद के. मुरलीधरन. जानकारों का मानना है कि इस बार यह सीट बीजेपी आसानी से नहीं जीत पाएगी. इसकी वजह से राजगोपाल को टिकट नहीं मिला है और इस बार कांग्रेस ने के. मुरलीधरन जैसे मजबूत कैंडिडेट को यहां से उतारा है.
पलक्कड़
त्रिवेंद्रम जिले की इस सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई है. बीजेपी के 'सीएम फेस' ई. श्रीधरन यहां से उम्मीदवार हैं, इसलिए यह राज्य की वीआईपी सीटों में शामिल हो गई. बीजेपी को श्रीधरन की प्रतिष्ठा और चेहरे की बदौलत यह सीट जीतने की उम्मीद है. यहां गैर मलयाली लोगों की बड़ी संख्या है. बीजेपी को इस सीट पर खास उम्मीद इसलिए है, क्योंकि पिछली बार यहां से बीजेपी कैंडिडेट दूसरे स्थान पर थे.
हालांकि श्रीधरन के सामने मौजूदा विधायक 38 साल के शफी परमबिल काफी लोकप्रिय और फायरब्रांड नेता माने जाते हैं और सीपीएम के सीपी प्रमोद भी मजबूत कैंडिडेट हैं. इसलिए श्रीधरन के लिए लड़ाई आसान नहीं है.
कझाकुट्टम
बीजेपी की राज्य उपाध्यक्ष शोभा सुरेंद्रन को अंतिम समय में यहां से उम्मीदवार घोषित करने से तिरुअनंतपुरम जिले की यह सीट चर्चा में आ गई. शोभा सुरेंद्रन को फायरब्रांड नेता के रूप में जाना जाता है. वह अपने बयानों से चर्चा में रहती हैं. कांग्रेस ने यहां से प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. एस. एस लाल को यूडीएफ की तरफ से उम्मीदवार बनाया है.
यह भी बीजेपी के लिए राज्य की कुछ महत्वपूर्ण सीटों में से है, क्योंकि साल 2016 के चुनाव में यहां से पार्टी दूसरे स्थान पर थी. तब इस सीट से बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के सदस्य वी. मुरलीधरन कैंडिडेट थे. वह माकपा के जीते उम्मीदवार के. सुरेंद्रन से सिर्फ 8,000 वोट पीछे थे. इसलिए मुकाबला काफी कड़ा रहने के अनुमान हैं. बीजेपी को भरोसा है कि वह इस बार इन 8000 वोटों की आसानी से भरपाई कर लेगी. एलडीएफ ने एक बार फिर यहां से मौजूदा विधायक कडकमपल्ली सुरेंद्रम (देवस्थान मंत्री) को उम्मीदवार बनाया है. इसलिए लड़ाई कांटे की रहने की उम्मीद है.
कोन्नि
यह सबरीमाला आंदोलन के प्रमुख केंद्रों में से है. इस पहाड़ी इलाके से बीजेपी को काफी उम्मीद है, इसलिए उसने यहां से राज्य बीजेपी के अध्यक्ष के. सुरेंद्रन को उम्मीदवार बनाया है. उनको चुनौती मिल रही है मौजूदा विधायक और एलडीएफ कैंडिडेट केयू जेनिश तथा यूडीएफ कैंडिडेट रॉबिन पीटर से. यह सीट इस बार बीजेपी के लिए काफी प्रतिष्ठा की हो गई है, क्योंकि यह सबरीमाला आंदोलन का केंद्र रहा है.
मंजेश्वरम
मंजेश्वर केरल के सबसे उत्तरी छोर पर कर्नाटक की सीमा पर स्थित विधानसभा है. इसमें कोंकणी, कन्नण, टुलु और मलयालम बोलने वाली मिश्रित जनसंख्या रहती है. मंगलौर के करीब स्थित यह क्षेत्र पहले कर्नाटक में ही था, लेकिन अब केरल के कासरगोड़ जिले में स्थित है. यहां हिंदू, मुसलमान और ईसाई तीनों धर्मों के मतदाता हैं और सांस्कृतिक विविधता वाला इलाका है.
यहां मुख्य लड़ाई बीजेपी और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) में है. इस बार यहां से बीजेपी के लिए अच्छा चांस दिख रहा है, क्योंकि मुस्लिम लीग के मौजूदा विधायक एमसी कमरुद्दीन के खिलाफ 100 से ज्यादा चीटिंग के मामले दर्ज किए गए थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था. शिकायत करने वाले सभी लोग मुस्लिम लीग के ही थे. इसे देखते हुए मुस्लिम लीग ने इस बार उनकी जगह एकेएम अशरफ को टिकट दिया है.
बीजेपी ने यहां से एक बार फिर अपने राज्य अध्यक्ष के. सुरेंद्रन के रूप मे एक दमदार प्रत्याशी उतारा है. वह यहां से दो बार लड़ चुके हैं और साल 2016 में वह सिर्फ 89 वोट से हार गए थे. तब अब्दुल रजाक को जीत मिली थी. रजाक की मौत के बाद साल 2019 में हुए उपचुनाव में कमरुद्दीन करीब 8000 वोटों से ही जीत पाए.
इन सीटों पर भी नजर
इनके अलावा मलमपुझा, त्रिपुनिथुरा जैसी सीटों पर भी बीजेपी बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर सकती है. मलमपुझा में बीजेपी के कैंडिडेट कृष्णनकुमार काफी लोकप्रिय हैं और पिछली बार सीपीएम के बुजुर्ग नेता वी.एस अच्युतानंदन के सामने भी दूसरे स्थान पर थे.
इसी तरह त्रिपुनिथुरा में बीजेपी कैंडिडेट के.एस राधाकृष्णन अच्छे वक्ता, लेखक, शिक्षक हैं. वह पूर्व वाइस चांसलर और पीएससी के पूर्व चेयरमैन रह चुके हैं. यहां बड़ी संख्या धीवरा समुदाय के लोगों की है जिनमें बीजेपी की अच्छी लोकप्रियता है.