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Exit Poll: केरल में टूटेगा 40 साल का रिकॉर्ड, फिर लहराया लाल

Kerala Exit Poll Results: केरल में एलडीएफ को 104 से 120 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. वहीं यूडीएफ को 20 से 36 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि बीजेपी को शून्य से दो सीटें मिल सकती हैं. अन्य को भी शून्य से दो सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है.

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केरल चुनाव का एग्जिट पोल
केरल चुनाव का एग्जिट पोल
स्टोरी हाइलाइट्स
  • केरल चुनाव के लिए एग्जिट पोल
  • केरल में LDF की वापसी
  • LDF को 104 सीटें मिलने का अनुमान

Kerala Exit Poll Results: पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के लिए एक्सिस-माय-इंडिया का एग्जिट पोल आना शुरू हो चुका है. आजतक के एग्जिट पोल के जरिए हम भांपने की कोशिश कर रहे हैं कि केरल में सियासी बयार किसके पक्ष में बही है. केरल विधानसभा चुनाव में लेफ्ट पार्टियों की अगुवाई वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (UDF) के बीच मुकाबला रहा. यहां हर पांच साल के बाद सत्ता परिवर्तन की परंपरा 1980 से चल आ रही है. लेकिन इस बार सियासत की नई इबारत लिखी जाएगी? 

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एग्जिट पोल के मुताबिक, एलडीएफ को 104 से 120 सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. वहीं यूडीएफ को 20 से 36 सीटें मिलने का अनुमान है, जबकि बीजेपी को शून्य से दो सीटें मिल सकती हैं. अन्य को भी शून्य से दो सीटें मिलने का अनुमान जताया गया है. 

वोट प्रतिशत की बात करें तो एलडीएफ को 47%, यूडीएफ को 38%, एनडीए को 12% और अन्य को 3 प्रतिशत वोट मिलने का अनुमान एग्जिट पोल में जताया गया है. 

यूडीएफ गठबंधन में कांग्रेस को सबसे अधिक 93 सीट, IUML को 25 सीट, KC को 10 सीट RSP को 5 सीट और अन्य गठबंधन साथियों को बची हुई सीटें मिलने का अनुमान है. जबकि एलडीएफ गठबंधन में सीपीआई (एम) को सर्वाधिक 75 सीट और सीपीआई को 23 सीटें मिलने का अनुमान है. जबकि बाकी की सीटें गठबंधन के अन्य साथियों को मिलने का अनुमान जताया गया है. 

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बात अगर मुख्यमंत्री के चेहरे की करें तो 45 फीसदी लोगों की पसंद पिनरई विजयन हैं, ओमान चांडी को 27 फीसदी, ई श्रीधरन को 5 फीसदी, रमेश चिनथाला को 4 फीसदी और के सुरेंद्रन को 2 फीसदी लोगों ने मुख्यमंत्री के तौर पर पसंद किया है. 

आपको बता दें कि केरल विधानसभा चुनाव 140 सीटों पर एक चरण में 6 अप्रैल को वोटिंग हुई. केरल में 1980 के बाद से सत्ता पर काबिज होने के बाद किसी भी राजनीतिक दल या गठबंधन को लगातार दोबारा जीत नहीं मिली है. एक तरह से यहां हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन हुआ है. सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली एलडीएफ और कांग्रेस नेतृत्व वाली यूडीएफ ने अलग-अलग कार्यकालों में राज्य में 3 दशक तक शासन किया है.

किस गठबंधन के साथ कौन पार्टी?

कांग्रेस की अगुवाई वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट में यूनियन मुस्लिम लीग, केरल कांग्रेस (जोसेफ) आरएसपी, केरला कांग्रेस (जैकब), सीएमपी (जे) भारतीय नेशनल जनता दल और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लाक शामिल हैं. लेफ्ट की अगुवाई वाले एलडीएफ में सीपीएम, सीपीआई, जेडीएस, एनसीपी, केरला कांग्रेस (एम), केरला कांग्रेस (सकारिया थामस), कांग्रेस (सेक्युलर), जेकेसी, इंडियन नेशनल लीग, केरला कांग्रेस (बी) जेएसएस और लोकतांत्रिक जनता दल हैं. वहीं, एनडीए में बीजेपी और भारतीय धर्म जनसेना पार्टी शामिल है.

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क्या केरल की सत्ता में वापसी कर पाएगी कांग्रेस?

केरल में असल लड़ाई सीपीआई की अगुवाई वाले एलडीएफ और कांग्रेस नेतृत्व वाले यूडीएफ के बीच है. दोनों ही गठबंधनों के बीच पांच-पांच साल के बाद सत्ता परिवर्तन होता रहता है. इसीलिए कांग्रेस यह मानकर चल रही है कि इस बार उनकी सत्ता में वापसी हो सकती है. कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी अकेले पार्टी के विश्वसनीय चेहरे के तौर पर मोर्चा संभाल रहे थे, लेकिन कहीं न कहीं कांग्रेस के चुनाव अभियान में उत्साह की कमी साफ दिख रही थी. इसी दौरान चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में एलडीएफ के सत्ता में लौटने के अनुमानों ने कांग्रेस में अंदरूनी मायूसी का माहौल बढ़ा दिया था. 

कांग्रेस की हालत को देखते हुए राहुल गांधी सहित पूरी कांग्रेस पार्टी ने अपनी पूरी सियासी ताकत केरल में लगा दी थी. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने पांच राज्यों के चुनाव में सबसे ज्यादा फोकस केरल में लगाया. 

अमेठी से हार के बाद राहुल गांधी केरल के वायनाड से सांसद हैं और वहां इस बार एलडीएफ सरकार के खिलाफ सत्ता परिवर्तन ना सिर्फ कांग्रेस के जीवन के लिए भी जरूरी है, बल्कि खुद राहुल के सियासी वजूद को बचाए रखने के लिए भी अहम है. राहुल अपने आक्रामक अभियानों के जरिए मछुआरा वर्ग को एलडीएफ के खिलाफ लामबंद करने में अपनी सियासी नैया पार लगाने के लिए मशक्कत की थी. 

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लेफ्ट के सामने 40 साल का रिकार्ड तोड़ने की चुनौती!

वहीं, लेफ्ट फ्रंट के सामने केरल की सियासत में चार दशक की परंपरा को तोड़ने की चुनौती है. वो एक बार फिर से सत्ता में वापसी की उम्मीद जता रही है. चुनाव पूर्व सर्वे में भी एलडीएफ की सत्ता में वापसी को दिखाया था. मुख्यमंत्री पिनराई विजयन अपने पांच साल के विकास कार्यों पर वोट मांग रहे थे, लेकिन सत्ताविरोधी लहर का भी उन्हें सामना करना पड़ा था. 2016 में एलडीएफ को 91 सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार विजयन सरकार क्या बहुमत हासिल कर पाएगी? 

केरल में बीजेपी क्या खोल पाएगी खाता?

केरल में बीजेपी भले ही बहुत बड़ा करिश्मा अभी तक न दिखा पाई हो, लेकिन पार्टी का वोट लगातार बढ़ा है. यही वजह है कि बीजेपी  इस बार पूरी दम खम के साथ केरल की चुनावी जंग फतह करने उतरी थी. देशभर में मेट्रोमैन के नाम से मशहूर ई श्रीधरन ने बीजेपी का दामन थामकर केरल के सियासी रण में उतरे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार केरल में चुनावी प्रचार अभियान की कमान संभाली थी. बीजेपी ने केरल में लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने का वादा किया है, जो हिंदुओं के साथ-साथ ईसाई समुदाय को भी साधने की रणनीति मानी जा रही है.

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