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अमेठी: मोदी लहर में भी नहीं खिल सका कमल, 18 चुनाव में 16 बार जीती है कांग्रेस

अमेठी संसदीय सीट को कांग्रेस का दुर्ग कहा जाता है. इस सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है. वहीं, 1977 में लोकदल और 1998 में बीजेपी को जीत मिली है. जबकि बसपा और सपा अभी तक अपना खाता नहीं खोल सकी है.

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राहुल गांधी
राहुल गांधी

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उत्तर प्रदेश में अमेठी की सियासी मिट्टी ऐसी है, जो सिर्फ एक बीज को पहचानती है. इसलिए चुनाव के मौसम में जब गांधी परिवार का बीज डाल दिया जाता है तो आसपास विपक्षी दलों की सारी फसलें नष्ट हो जाती और कांग्रेस की फसल काटी जाती है. गांधी परिवार के सदस्य यहां रिकॉर्ड मतों से जीतकर संसद में पहुंचते रहे हैं.

देश में मोदी की लहर जितनी भी नजर आए, लेकिन यह लहर अमेठी सीमा पर आकर खत्म हो जाती है. यहां गांधी परिवार की जड़ें काफी मजबूत हैं, तभी तो 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर पर सवार बीजेपी कमल खिलाने से महरूम रह गई. हालांकि, राहुल गांधी के सामने बीजेपी ने स्मृति ईरानी और AAP ने कुमार विश्वास को मैदान में उतारा था, लेकिन कांग्रेस को मात नहीं दे सके. हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अमेठी में बीजेपी की स्मृति ईरानी घेरने की कवायद पिछले पांच साल से लगातार कर रही हैं.

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2014 की नतीजे

राहुल गांधी अमेठी से लगातार तीसरी बार सांसद हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को 408,651 वोट मिले थे. जबकि बीजेपी की उम्मीदवार स्मृति ईरानी को 300,74 वोट मिले थे. इस तरह जीत का अंतर 1,07,000 वोटों का ही रह गया. जबकि 2009 में कांग्रेस अध्यक्ष की जीत का अंतर 3,50,000 से भी ज्यादा का रहा था.

अमेठी से कांग्रेस का एक भी MLA नहीं

अमेठी लोकसभा सीट के तहत पांच विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें अमेठी जिले की तिलोई, जगदीशपुर, अमेठी और गौरीगंज सीटें शामिल हैं. जबिक रायबरेली जिले की सलोन विधानसभा सीट आती है. 2017 के विधानसभा चुनाव में 5 सीटों में से 4 सीटों पर बीजेपी और महज एक सीट पर एसपी को जीत मिली थी. हालांकि सपा-कांग्रेस गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरी थी, फिर भी जीत नहीं सकी थी. सपा ने तो गौरीगंज सीट जीत ली, लेकिन कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली.

कांग्रेस का दुर्ग

अमेठी संसदीय सीट को कांग्रेस का दुर्ग कहा जाता है. इस सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और 2 उपचुनाव हुए हैं. इनमें से कांग्रेस ने 16 बार जीत दर्ज की है. वहीं, 1977 में लोकदल और 1998 में बीजेपी को जीत मिली है. जबकि बसपा और सपा अभी तक अपना खाता नहीं खोल सकी है.

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अमेठी का जातीय समीकरण

अमेठी लोकसभा सीट पर दलित और मुस्लिम मतदाता किंगमेकर की भूमिका में हैं. इस सीट पर मुस्लिम मतदाता करीब 4 लाख के करीब हैं और तकरीबन साढ़े तीन लाख वोटर दलित हैं. इनमें पासी समुदाय के वोटर काफी अच्छे हैं. इसके अलावा यादव, राजपूत और ब्राह्मण भी इस सीट पर अच्छे खासे हैं.

अमेठी संसदीय सीट का इतिहास

आजादी के बार पहली बार लोकसभा चुनाव हुए तो अमेठी संसदीय सीट वजूद में ही नहीं थी. पहले ये इलाका सुल्तानपुर दक्षिण लोकसभा सीट में आता था और यहां से कांग्रेस के बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर जीते थे. इसके बाद 1957 में मुसाफिरखाना सीट अस्तित्व में आई, जो फिलहाल अमेठी जिले की तहसील है. केशकर यहां से जीतने में भी सफल रहे. 1962 के लोकसभा चुनाव में राजा रणंजय सिंह कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने. रणंजय सिंह वर्तमान राज्यसभा सांसद संजय सिंह के पिता थे.

अमेठी लोकसभा सीट 1967 में परिसीमन के बाद वजूद में आई. अमेठी से पहली बार कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी सासंद बने. इसके 1971 में भी उन्होंने जीत हासिल की, लेकिन 1977 में कांग्रेस ने संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह जीत नहीं सके. इसके बाद 1980 में इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी चुनावी मैदान में उतरे और इस तरह से इस सीट को गांधी परिवार की सीट में तब्दील कर दिया. हालांकि 1980 में ही उनका विमान दुर्घटना में निधन हो गया. इसके बाद 1981 में हुए उपचुनाव में इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी अमेठी से सांसद चुने गए.

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साल 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में राजीव गांधी एक बार फिर उतरे तो उनके सामने संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी निर्दलीय चुनाव लड़ीं लेकिन उन्हें महज 50 हजार ही वोट मिल सके. जबकि राजीव गांधी 3 लाख वोटों से जीते. इसके बाद राजीव गांधी ने 1989 और 1991 में चुनाव जीते. लेकिन 1991 के नतीजे आने से पहले उनकी हत्या कर दी गई, जिसके बाद कांग्रेस के कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव लड़े और जीतकर लोकसभा पहुंचे. इसके बाद 1996 में शर्मा ने जीत हासिल की, लेकिन 1998 में बीजेपी के संजय सिंह हाथों हार गए.

सोनिया गांधी ने राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने 1999 में अमेठी को अपनी कर्मभूमि बनाया. वह इस सीट से जीतकर पहली बार सांसद चुनी गईं, लेकिन 2004 के चुनाव में उन्होंने अपने बेटे राहुल गांधी के लिए ये सीट छोड़ दी. इसके बाद से राहुल ने लगातार तीन बार यहां से जीत हासिल की.

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