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अनंतनाग सीट: यहां चुनाव कराना है चुनौती, दो साल से नहीं हो पाया उपचुनाव

जम्मू और कश्मीर की अनंतनाग लोकसभा सीट से 2014 के आमचुनाव में महबूबा मुफ्ती जीती थीं. मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने सीट छोड़ दी थी. इसके बाद से चुनाव आयोग अभी तक उपचुनाव नहीं करा पाया है. इसके पीछे घाटी में अशांति का माहौल जिम्मेदार है.

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अनंतनाग लोकसभा सीट के अन्तर्गत 16 विधानसभा सीटें आती हैं
अनंतनाग लोकसभा सीट के अन्तर्गत 16 विधानसभा सीटें आती हैं

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जम्मू और कश्मीर का अनंतनाग लोकसभा सीट कई मायनों में अहम है. 2014 में इस सीट पर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने जीत दर्ज की थी, लेकिन उनके इस्तीफे के दो साल तक इस सीट पर उपचुनाव नहीं हो पाया है. इसके पीछे घाटी में अशांति का माहौल जिम्मेदार है. चुनाव आयोग के अगर आंकड़ों को देखे तो 1996 में छह महीने के भीतर उपचुनाव कराने के कानून के बाद यह सबसे ज्यादा समय तक रिक्त रहने वाली सीट है.

अब 17वीं लोकसभा गठन के लिए होने वाले आम चुनाव में इस सीट पर चुनाव होने की संभावना है. इस सीट से महबूबा के अलावा पीडीपी अध्यक्ष रहे मुफ्ती मोहम्मद सईद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे मोहम्मद शफी कुरैशी भी सांसद बन चुके हैं. यह सीट पीडीपी का गढ़ है. 2014 में हुए विधानसभा चुनावों में अनंतनाग की 16 विधानसभा सीटों में से 11 सीटों पर पीडीपी जीती थी.

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राजनीतिक पृष्ठभूमि

1967 में वजूद में आई अनंतनाग सीट से कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में शुमार मोहम्मद शफी कुरैशी जीते थे. वह तीन बार (1967, 71 और 77) लगातार सांसद रहे. इसके बाद यह सीट जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस के हिस्से में चली गई. 1980 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के गुलाम रसूल कोचक, 1984 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के बेगम अकबर जहां अब्दुल्ला और 1989 में नेशनल कॉन्फ्रेंस के ही पीएल हंडू सांसद बने. 1996 में हुए चुनाव में इस सीट से जनता दल के टिकट पर मोहम्मद मकबूल सांसद चुने गए. इसके बाद 1998 में कांग्रेस के टिकट पर मुफ्ती मोहम्मद सईद जीतने में कामयाब हुए. 1999 में यह सीट फिर नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास आ गई और अली मोहम्मद नाइक सांसद बने. 2004 में इस सीट से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की महबूबा मुफ्ती जीतीं. 2009 में इस सीट से नेशनल कॉन्फ्रेंस के मिर्जा महबूब बेग जीते. 2014 के आम चुनाव में इस सीट से पीडीपी के टिकट पर महबूबा मुफ्ती दोबारा सांसद चुनी गई थीं.

सामाजिक तानाबाना

अनंतनाग लोकसभा सीट में 16 विधानसभा क्षेत्र (त्राल, शोपियां, देवसर, पंपोर, नूराबाद, डोरु, पहलगाम, वाची, पुलवामा, कुलगाम, कोकरनाग, बिजबेहारा, राजपोरा, होमशालीबुग, शानगुस, अनंतनाग) आते हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव के दौरान इनमें से पीडीपी 11 सीटों (त्राल, शोपियां, पंपोर, नूराबाद, डोरु, कोकरनाग, बिजबेहारा, राजपोरा, अनंतनाग, वाची, कोकरनाग), नेशनल कॉन्फ्रेंस दो सीटों (पहलगाम, होमशालीबुग), कांग्रेस भी दो सीटों (देवसर, शानगुस) और सीपीई एक सीट (कुलगाम) पर जीतने में कामयाब हुई थी. इस सीट पर मतदाताओं की संख्या करीब 13 लाख है, जिनमें करीब 6.85 लाख पुरुष और 6.15 लाख महिला मतदाता शामिल हैं. पिछले तीन चुनावों से नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ गठबंधन के कारण कांग्रेस इस सीट पर अपना प्रत्याशी नहीं उतार रही है. इस सीट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के बीच कड़ी टक्कर होती है. खास बात है कि पिछले तीन चुनावों के दौरान इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी अपना जमानत तक नहीं बचा पाता है.

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2014 का जनादेश

2014 के आम चुनाव में इस सीट से पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती दूसरी बार सांसद चुनी गई थीं. उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस के मिर्जा महबूब बेग को करीब 65 हजार वोटों से पटखनी दी थी. महबूबा को करीब 2 लाख वोट मिले थे, जबकि मिर्जा महबूब को 1.35 लाख वोट मिले थे. इस सीट पर तीसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी तनवीर हुसैन खान 7340 वोट पाकर रहे थे. चौथे स्थान पर बीजेपी के मुश्ताक अहमद मलिक थे. उन्हें 4720 वोट मिले थे. वहीं, 2009 के चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस के मिर्जा महबूब बेग ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने पीडीपी के पीर मोहम्मद हुसैन को मामूली अंतर से हराया था. मिर्जा महबूब बेग को 1.48 लाख और पीर मोहम्मद हुसैन को 1.43 लाख वोट मिले थे. इस चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी मोहम्मद सिदीक खान को 3918 वोट मिले थे.

अनंतनाग लोकसभा सीट का चुनाव हमेशा से सुरक्षाबलों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है. 2014 के चुनाव में यहां 28 फीसदी मतदान हुआ था. इस दौरान अनंतनाग के अलग-अलग हिस्सों में सुरक्षाबलों और स्थानीय लोगों के संघर्ष में करीब 25 जवान घायल थे. इस चुनाव से पहले त्राल और अवंतीपोरा में कई राजनीतिक हत्याएं भी हुई थी. 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी यहां छिटपुट हिंसाएं हुई थी. इस दौरान 27 फीसदी लोगों ने मतदान किया था. महबूबा मुफ्ती के इस्तीफे के बाद हिंसाओं को देखते हुए इस सीट पर अभी तक उपचुनाव नहीं कराया जा सका है. चुनाव आयोग ने 2017 के अप्रैल में यहां उपचुनाव कराने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में इसे निरस्त कर दिया गया था.

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सांसद का रिपोर्ट कार्ड

महबूबा मुफ्ती, मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी है. पिता की मौत के बाद वह 2016 में राज्य की मुख्यमंत्री बनी थी. वह जम्मू कश्मीर की पहली और देश की दूसरी मुस्लिम महिला मुख्यमंत्री थी. बीजेपी के समर्थन वापस खींचने के बाद उन्होंने 2018 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. महबूबा अनंतनाग सीट से दो बार (2004 और 2014) सांसद बनी थीं. फिलहाल वह पीडीपी की अध्यक्ष हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, महबूबा मुफ्ती के पास 52 लाख रुपये की संपत्ति है. इसमें 30 लाख की चल संपत्ति और 22 लाख रुपये की अचल संपत्ति है.

जनवरी, 2019 तक mplads.gov.in पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बनने के बाद महबूबा मुफ्ती ने जुलाई, 2016 में इस्तीफा दे दिया था. अपने करीब दो साल के संसदीय कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने सांसद निधि का करीब 90 फीसदी हिस्सा विकास कार्यों में खर्च किया था. उन्हें निधि से करीब 10.83 करोड़ मिला था. इसमें से उन्होंने 8.99 करोड़ खर्च किया था.

महबूबा मुफ्ती का ट्विटर हैंडल @MehboobaMufti  और फेसबुक पेज @muftimehbooba यह है.

ये हैं इस सीट पर जीतने वाली महत्वपूर्ण शख्सियत

मोहम्मद शफी कुरैशी - कुरैशी कश्मीर के बड़े राजनेता और जम्मू कश्मीर में कांग्रेस पार्टी के संस्थापक थे. वे 1965 में जम्मू और कश्मीर से राज्यसभा के लिए चुने गए.  बाद में 1967, 1971 और 1977 के चुनावों में अनंतनाग से लोकसभा के लिए चुने गए. अपने संसदीय कार्यकाल के दौरान कुरैशी केंद्र की सरकार में वाणिज्य, इस्पात और भारी इंजीनियरिंग, रेल, पर्यटन और नागरिक उड्डयन विभाग में मंत्री भी थे. बाद में कांग्रेस ने उन्हें बिहार, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश का राज्यपाल भी बनाया था.

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मुफ्ती मोहम्मद सईद - मुफ्ती सईद जम्मू-कश्मीर के दो बार मुख्यमंत्री (2002 और 2015 में) रहे. इसके अलावा वह 1989 से 1990 तक भारत के गृह मंत्री भी रहे थे. उन्होंने 1999 में कांग्रेस से अलग होकर जम्मू और कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की स्थापना की थी.

मिर्जा महबूब बेग - मिर्जा महबूब बेग की गिनती अनंतनाग के बड़े नेताओं में होती है. बेग दो बार (1983-87 और 2002-08) जम्मू कश्मीर विधानसभा के सदस्य भी रहे हैं. 2009 के चुनाव में वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के टिकट पर सांसद भी बने थे. लेकिन, 2014 के आम चुनाव में हार के बाद बेग ने पीडीपी ज्वॉइन कर ली.  फिलहाल, वह पीडीपी के मुख्य प्रवक्ता हैं.

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