आंध्र प्रदेश की अराकु लोकसभा सीट पर रोमांचक मुकाबला होने जा रहा है. इस सीट पर इस बार टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुकाबला है. अराकु लोकसभा सीट पर 11 अप्रैल को मतदान है. इस बार इस सीट तेलुगु देशम के किशोर चंद्र सूर्यनारायण देव, कांग्रेस की श्रूति देवी बीजेपी के डॉ काशी विश्वनंद और वाईएसआर की माधवी चुनावी रेस में हैं. इस अलावा इस सीट से जनसेना और जन जागृति पार्टी जैसे क्षेत्रीय दल भी चुनाव मैदान में हैं.
अराकु लोकसभा सीट पर अभी तक महज 2 बार ही लोकसभा चुनाव हुए हैं. यह सीट 2008 में अस्तित्व में आई, जिसके बाद 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सांसद व पूर्व केंद्रीय मंत्री वी किशोर चंद्र देव ने जीत दर्ज की थी. लेकिन 2009 के बाद कांग्रेस से अगल होकर एक नया राजनीतिक दल बना जिसका नाम पड़ा वाईएसआर कांग्रेस. 2014 में हुए आम चुनावों में वाईएसआर कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर कोथापल्ली ने यहां से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के उम्मीदवार को करारी शिकस्त दी. यह हार कांग्रेस के चंद्र देव के लिए बड़ी हार थी क्योंकि वो तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गए.
2014 में वाईएसआर कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर लोकसभा पहुंची सांसद कोथापल्ली को सर्वाधिक 45 फीसदी वोट मिले थे. टीडीपी उम्मीदवार को 35 फीसदी वोट और 2009 में जीत हासिल करने वाले कांग्रेस उम्मीदवार चंद्र देव को महज 5.8 फीसदी वोट ही मिल पाए. आदिवासी क्षेत्र होने के कारण अराकु लोकसभा में सीपीआईएम भी एक्टिव है. 2009 में इस सीट पर हुए पहले आम चुनाव में सीपीआईएम दूसर नंबर पर रही थी.
कहा जाता है कि आदिवासी इलाके पूर्वी गोदावरी जिले से आने वाली सांसद कोथापल्ली अपने क्षेत्र की पहली पहली ऐसी शख्स हैं जिन्होंने ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की है. कोथापल्ली ने आंध्र विश्वविद्यालय से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में एमए की डिग्री प्राप्त की है.
आदिवासी क्षेत्र है अराकु
अराकु पूर्ण रूप से आदिवासी क्षेत्र है. 2007 में इस क्षेत्र के आदिवासियों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए गीता ने ‘गीताज सोसाइटी’ की स्थापना की. गीता के मुताबिक अराकु आंध्र में एक मात्र आदिवासी इलाका है. उन्होंने अपनी संस्था के माध्यम से हर साल 500 से 600 बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में मदद करना शुरू किया. इसी बीच उन्हें लगा कि संस्था के माध्यम से ज्यादा मदद नहीं हो पाएगी और फिर उन्होंने राजनीति में कदम रखा.
अराकु में 90 हजार हैबिटेशन्स हैं, जिसमें 3000 तो ऐसे हैं जहां एक समय में बोरवेल तक की सुविधा नहीं थी. यह क्षेत्र बहुत ही पिछड़े इलाकों में आता है क्योंकि यहां आजादी के बाद से ज्यादा कुछ काम नहीं हुआ. यहां सिर्फ तीन छोटी-छोटी नगरपालिकाएं हैं. इसके अलावा बाकी के इलाके जंगली हैं. हालात ऐसे थे कि यहां अस्पताल में डॉक्टर न होने की वजह से मरीज को विशाखापटन्नम ले जाना पड़ता था और ऐसे में कई बार रास्ते में ही मरीजों की मौत हो जाती थी.
मानव संसाधन विकास (एचआरडी) स्टैंडिंग कमेटी की सदस्य और सांसद कोथापल्ली सदन में सबसे एक्टिव महिलाओं में से एक हैं. सदन में उनकी मौजूदगी 95 फीसदी रही है, जो कि राष्ट्रीय औसत से 15 फीसदी और आंध्र के औसत से 19 फीसदी ज्यादा है. उन्होंने कुल 92 बहसों में हिस्सा लिया और सदन में 601 सवाल दागे. इस दौरान उन्होंने मानव तस्करी, महिलाओं और आदिवासियों के हित संबंधित समस्याओं को देश के सामने रखा.
20 साल की उम्र में बनीं बैंक मैनेजर, समाज के लिए छोड़ी डिप्टी कलेक्टर की नौकरी
गीता राजनीति में आने से पहले एक डिप्टी कलेक्टर के पद पर कार्यरत थीं, क्योंकि उनके पिता की चाहत थी कि उनकी बेटी एक अधिकारी बने और समाज को आगे बढने में मदद करे. उनके पिता भी डिप्टी कलेक्टर थे. कोथापल्ली अपने परिवार से राजनीति में कदम रखने वाली पहली सदस्य हैं. कोथापल्ली ने अपने करियर की शुरुआत 20 साल की उम्र में बैंक मैनेजर के तौर पर की और ग्रामिण बैंक में चार साल काम किया. हालांकि, इसके बाद उनकी पिता की चाहत ने उन्हें इस नौकरी को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया क्योंकि वो बैंक मैनेजर की नौकरी के साथ-साथ समाज सेवा का काम नहीं कर पा रही थीं. इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़कर सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी.
इसी दौरान उनका सलेक्शन एपीपीएससी ग्रुप वन सर्विसेस में हुआ. उन्हें अपने ही क्षेत्र का डिप्टी कलेक्टर बनाया गया. लेकिन यहां भी वो टिक नहीं सकीं और 2009 में उन्होंने इस नौकरी से भी त्यागपत्र दे दिया. इसके बाद उन्होंने राजनीति में कदम रखा और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी से संसद तक पहुंचीं. उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास कार्यों पर 19.80 करोड़ रुपये की राशि खर्च की.
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