अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद 1950 से अदालत में चल रहा है. इन दिनों राम मंदिर निर्माण को लेकर देश में अलग-अलग संगठन कई मंचों से कई तरह की आवाजें उठा रहे हैं. आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की चाहत है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में राम मंदिर एक बड़ा मुद्दा बने तो वहीं वीएचपी के सुर बदल गए हैं. राम मंदिर चुनावी मुद्दा न बने इसके लिए उन्होंने 4 महीने तक इस मामले पर खामोशी अख्तियार रखने का फैसला किया है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई जल्दबाजी में नहीं है, लेकिन मोदी सरकार ने भी अपना नजरिया साफ कर दिया. इस तरह राम मंदिर पर जितने मुंह उतनी बातें की जा रही हैं.
2019 में राम मंदिर का मुद्दा अहम : मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत 4 दिन के दौरे पर मंगलवार को उत्तराखंड के देहरादून पहुंचे. इस दौरान उन्होंने कहा कि 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए राम मंदिर काफी अहम मुद्दा है. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में NDA के पास राम मंदिर मुद्दा नहीं भी होता, तो भी बीजेपी की सरकार बनती. क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पक्ष में लहर थी, लोग राम मंदिर की परवाह नहीं कर रहे थे. उन्हें उस समय विकल्प की तलाश थी, लेकिन अब राम मंदिर के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. ऐसे में 2019 के लोकसभा चुनाव में राम मंदिर मुख्य मुद्दा रहेगा.
लोकसभा चुनाव तक राम मंदिर पर वीएचपी खामोश
वहीं, विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने मंगलवार को ही राम मंदिर पर आरएसएस से उलट फैसला लिया. वीएचपी ने राम मंदिर निर्माण अभियान को चार महीने तक के लिए रोक दिया है. वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन ने कहा कि लोकसभा चुनाव 2019 के संपन्न होने तक संगठन राम मंदिर मुद्दे पर किसी तरह का कोई अभियान नहीं चलाने का निर्णय किया है, क्योंकि वह नहीं चाहता है कि राम मंदिर मामला चुनावी मुद्दा बने.
उन्होंने कहा कि अक्सर हमारे ऊपर आरोप लगते हैं किसी विशेष दल को राजनीतिक फायदा के लिए राम मंदिर निर्माण का अभियान चला रहे हैं. ऐसे में हम इसें किसी राजनीतिक दल में इस मुद्दे को नहीं फंसाना चाहते हैं. यह एक पवित्र मुद्दा है इसे हम राजनीति से परे रखना चाहते हैं.
सरकार का नजरिया
राम मंदिर के निर्माण के लिए मोदी सरकार ने भी अपना नजरिया सामने रख दिया है. सरकार राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने की दिशा में कोई कदम नहीं बढ़ाना चाहती है. इसके बदले सरकार ने अयोध्या विवाद मामले में विवादित जमीन छोड़कर बाकी जमीन को लौटने और इस पर जारी यथास्थिति हटाने की मांग कर बड़ा कदम उठाया है.
सरकार ने जिस 67 एकड़ जमीन को वापस लौटाने की बात कही उसमें 2.67 एकड़ विवादित जमीन के चारों ओर स्थित है. 1993 में केंद्र सरकार ने अयोध्या अधिग्रहण ऐक्ट के तहत विवादित स्थल और आसपास की जमीन का अधिग्रहण कर लिया था. इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ANI को नए साल पर दिए इंटरव्यू में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसला का हमें इंतेजार करना चाहिए. हालांकि बीजेपी नेता ये बात लगातार कह रहे हैं कि राम मंदिर की मार्ग में कांग्रेस बाधा बन रही है.
कांग्रेस अदालत के फैसले के साथ
राम मंदिर मामले पर कांग्रेस शुरू से एक बात करती रही है कि सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला होगा वो उसे मानेगी. कांग्रेस पार्टी के कई नेता कह चुके हैं कि कांग्रेस शुरू से कहती आ रही है कि विवादित स्थल का अदालत से जरिए ही इसका समाधान होना चाहिए. रणदीप सिंह सुरजेवाला ने हाल ही में कहा कि पार्टी का पक्ष हमेशा से स्पष्ट रहा है कि अयोध्या का मामला सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगी.
शंकराचार्य ने तय की राम मंदिर की तारीख
द्वारका-शारदा पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती अयोध्या में राम मंदिर निर्माण 21 फरवरी से शुरू करने की तारीख तय कर दी है. प्रयागराज में चल कुंभ में संतों की धर्म सभा में पिछले सप्ताह कहा गया था कि राम मंदिर निर्माण के लिए संत अयोध्या कूच करेंगे. शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा था, 'हम अयोध्या में 21 फरवरी 2019 को राम मंदिर की नींव रखेंगे. हम कोर्ट के किसी भी आदेश का उल्लंघन नहीं कर रहे हैं. जब तक सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के आदेश को खारिज नहीं कर देता, तब तक यह लागू है. वहां राम लला विराजमान हैं, वह जन्मभूमि है.' इस संबंध में स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य अविमुक्तेश्वरानंद मंगलवार को अयोध्या पहुंचे और उन्होंने जानकी महल बड़ा स्थान मंदिर में समर्थकों के साथ बैठक की.
सुप्रीम कोर्ट जल्दबाजी में नहीं
अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद मामले सुप्रीम कोर्ट जल्द सुनवाई करने के मूड में नजर नहीं आ रहा है. वो इस मामले को भी आम भूमि केस की तरह ही देख रहा है. हालांकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच गठित कर दी गई है. लेकिन अभी तक इस मामले की नियमित सुनवाई शुरू नहीं हो सकी हैं. जबकि अभी अयोध्या से जुड़े हुए दस्तावेज के पेपर के अनुवाद को दोबारा से कराने की बात कही है.