पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, मशहूर गायक- संगीतकार भूपेन हजारिका और भारतीय जनसंघ के पूर्व नेता और प्रख्यात समाजसेवी नानाजी देशमुख को भारत रत्न दिया जाएगा. शनिवार शाम को सरकार की ओर से यह बड़ा ऐलान किया गया. इनमें से भूपेन हजारिका और नानाजी देशमुख को मरणोपरांत यह सम्मान दिया जाएगा. तीन हस्तियों में से दो शख्सियतें- प्रणब मुखर्जी और भूपेन हजारिका पूर्वी भारत से ताल्लुक रखते हैं. जैसे ही यह खबर सामने आई राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई. ऐसे में इस ऐलान के राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा रहे हैं.
राजनीतिक गलियारों में जानकार इसे बीजेपी सरकार का मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं. देखा जाए तो बीजेपी सरकार ने प्रणब मुखर्जी के सहारे पश्चिम बंगाल और भूपेन हजारिका के जरिए असम की राजनीति को साधने की कोशिश की है.
तमाम सर्वे वगैरह को देखते हुए जानकार यह कह रहे हैं कि बीजेपी को हिंदी पट्टी के राज्यों जैसे - उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस बार के लोकसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है. ऐसे में पार्टी की नजर पूर्वी भारत पर टिक सकती है, जहां उत्तर और मध्य भारत में होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई की जा सकती है. ऐसे में प्रणब मुखर्जी और भूपेन हजारिका को भारत रत्न सम्मान दिए जाने को लोग इस रणनीति से भी जोड़कर देख रहे हैं.
प्रणब मुखर्जी का नाम देश भर में सम्मान के साथ लिया जाता है. वे राष्ट्रपति बनने से पहले वित्त मंत्री, विदेश मंत्री जैसे अहम मंत्रालयों को संभाल चुके हैं. बता दें कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही है. कुछ समय पहले हुए पंचायत चुनाव में बीजेपी ने राज्य में अच्छा प्रदर्शन किया था. अब पार्टी के सामने 2019 की चुनौती है, जहां सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल कांग्रेस से उसका सीधा मुकाबला है.
प्रणब मुखर्जी जीवन भर कांग्रेस की विचारधारा के साथ रहे. कुछ वर्षों को छोड़ दिया जाए तो उनका पूरा राजनीतिक जीवन भी कांग्रेस पार्टी में गुजरा. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में प्रणब मुखर्जी और बीजेपी-संघ के रिश्ते चर्चा में रहे हैं. इस मुद्दे न तब तूल पकड़ा था जब जून, 2018 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने प्रणब मुखर्जी नागपुर गए थे. उस समय कांग्रेस पार्टी में एक तबका ऐसा भी था जो नहीं चाहता था कि मुखर्जी संघ के कार्यक्रम में हिस्सा लें. हालांकि, इन बातों के बावजूद मुखर्जी नागपुर गए थे.
जहां तक बात भूपेन हजारिका की है. वे पूर्वी भारत से आने वाले आधुनिक समय के सबसे असरदार सांस्कृतिक हस्तियों में से एक माने जाते रहे हैं. असम समेत पूरे पूर्वी भारत में उनका नाम बहुत सम्मान से लिया जाता है. जाहिर है असम के लोग इस फैसले से बहुत खुश होंगे. गौरतलब है कि असम में बीजेपी ने पहली बार अपने बूते सरकार बनाई है और उसके सामने 2019 की चुनौती है. नागरिकता संशोधन बिल को लेकर पार्टी को असम के एक तबके के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में भूपेन को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान देकर बीजेपी ने असम की क्षेत्रीय अस्मिता को एक तरह से सलाम किया है. जानकारों का मानना है कि इस फैसले का असम के जनमानस पर राजनीतिक तौर पर अच्छा असर पड़ेगा.
नानाजी देशमुख आरएसएस में बतौर प्रचारक लंबे समय तक काम किया. आजादी के बाद भारतीय जनसंघ बनने पर वे उत्तर प्रदेश में पार्टी के अहम पदों पर रहे. वे विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में भी सक्रिय रहे. 60 साल की उम्र में उन्होंने सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया और समाज सेवा के क्षेत्र में उतर गए. उत्तर प्रदेश के गोंडा, महाराष्ट्र के बीड और मध्य प्रदेश के चित्रकूट में नानाजी ने बड़े पैमाने पर समाजसेवा की. नानाजी को भारत रत्न देकर बीजेपी सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी की विचारधारा के प्रति समर्पित रहे लोगों को पार्टी भूलती नहीं है.