भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने आतंकवाद के मसले पर कांग्रेस पर जोरदार हमला बोला है. अमित शाह ने कहा कि ऐसे समय जब पूरी दुनिया आतंकवाद और आतंकी मसूद अजहर को लेकर भारत के साथ है तो कांग्रेस और कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं के बयान दुश्मन की मदद कर रहे हैं.अमित शाह ने कांग्रेस से ये भी सवाल किया कि 2010 में जब उनकी सरकार थी तब 25 आतंकियों को क्यों छोड़ा गया.
बीजेपी अध्यक्ष ने अपने ब्लॉग में लिखा कि आतंकी मसूद अजहर को लेकर पाकिस्तान पर जिस ढंग से वैश्विक स्तर पर दबाव बना है, वह अभूतपूर्व है. मसूद अजहर और उसके आतंकी संगठन को लेकर पाकिस्तान भारी दबाव की स्थिति में है. दुनिया के तमाम देश और वैश्विक संगठन भारत के साथ खड़े हैं. पाकिस्तान किसी भी तरह अपनी साख को बचाने की कवायदों में लगा है.
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जब पाकिस्तान दबाव की स्थिति में आया है, तब देश के अंदर कांग्रेस सहित कुछ राजनीतिक दलों द्वारा उठाए जा रहे सवालों से आतंकी सरपरस्तों को मदद मिल रही है.
अमित शाह ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कांग्रेस 1999 के उस कंधार विमान अपहरण की घटना को आज अपनी स्तरहीन राजनीति का हथियार बना रही है, जो अत्यंत संवेदनशील और 170 से अधिक लोगों की जोखिम में पड़ी जिंदगी से जुड़ी घटना थी. इन लोगों में कुछ लोग दूसरे देशों के भी थे, जिनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी थी. राहुल गांधी देश की जनता को गुमराह करके और उन लोगों की जिंदगी के प्रति असंवेदनशीलता दिखाते हुए मोदी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने मसूद अजहर को क्यों छोड़ था.
उन्होंने कहा कि क्या वाकई यह ऐसा सवाल है, जो अबतक अनुत्तरित है. क्या कांग्रेस को नहीं पता कि जब विमान अपहरण की वह आतंकी वारदात हुई तब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस विषय पर चर्चा के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी? उस बैठक में कांग्रेस की तरफ स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह मौजूद रहे थे. देश के मानस को स्वीकारते हुए तथा विमान में फंसे लोगों के जीवन की रक्षा को प्राथमिकता मानते हुए सभी राजनीतिक दलों की सहमति के बाद यह निर्णय लिया गया कि उन सभी लोगों की जिंदगी हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण है, जो विमान में फंसे हैं. अंत में सभी दलों ने सर्वसम्मति से मसूद अजहर को सौंपने तथा अपने लोगों को वापस लाने का प्रस्ताव स्वीकार किया.
अमित शाह ने कहा कि यह देश के लोगों की मांग थी. जोखिम में फंसे लोगों को निकलने की हमारी प्राथमिकता थी, हमने वही किया, जो तब एकमात्र संभव रास्ता था. यह कदम कोई ‘गुडविल जेस्चर’ में नहीं उठाया गया था. यहां तक कि उस समय के विदेश मंत्री जसवंत सिंह, जिनके पुत्र अब कांग्रेस में हैं, ने 2009 में दिए गए एक साक्षात्कार में कहा था कि सर्वदलीय बैठक में सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह की सहमति थी. आज कांग्रेस और राहुल गांधी उस घटना पर सवाल उठाकर न सिर्फ असंवेदनशीलता का परिचय दे रहे हैं बल्कि अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के विवेक पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं.
उन्होंने कहा कि इस गैर-जरूरी मुद्दे को उठाकार कांग्रेस ने इतिहास में हुई ऐसी रिहाइयों पर बहस छेड़ दी है, जो खुद कांग्रेस के ऊपर सवाल खड़े करने वाले हैं. यह बहस मसूद अजहर की रिहाई से न तो शुरू होती है और न ही समाप्त होती है. यह सूची बड़ी है, जिसपर चर्चा हो तो कांग्रेस का दामन दागदार नजर आएगा. कांधार विमान अपहरण की घटना से दस साल पहले देश के तत्कालीन गृहमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का कश्मीर के घाटी क्षेत्र में आतंकियों ने अपहरण कर लिया. इसके बदले उन्होंने 10 आतंकियों को छोड़ने की मांग की थी. सरकार ने उस मांग को स्वीकार किया और आतंकियों की रिहाई की गई. यह भी गुडविल जेस्चर नहीं था.
'25 आतंकियों को क्यों छोड़ी कांग्रेस'
अमित शाह ने कहा कि कांग्रेस को यह बताना चाहिए कि 2010 में जब कांग्रेस की सरकार थी, तब 28 मई को 25 आतंकियों को क्यों छोड़ा गया? उस समय न तो कोई ऐसी परिस्थिति थी और न ही ऐसा कोई दबाव, लेकिन पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने के नाम पर कांग्रेस की यूपीए-2 सरकार ने 25 आतंकियों को रिहा कर दिया. जानना जरूरी है कि इन 25 आतंकियों में एक आतंकी ऐसा भी था, जिसको 1999 में भी नहीं छोड़ा गया था. ये सभी 25 आतंकी जैश-ए-मोहम्मद और लश्करे-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों से जुड़े हैं. इन छोड़े गए आतंकवादियों में से एक शाहिद लतीफ़ आगे चल कर पठानकोट आतंकी हमले का मुख्य हैंडलर बना. आज अपनी राजनीति के लिए एक अत्यंत संवेदनशील स्थिति में लिए गए सर्वसम्मति के निर्णय पर सवाल उठाने वाली कांग्रेस क्या जवाब देगी कि इन आतंकियों की रिहाई क्यों की गई थी?
बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि दरअसल कांग्रेस की नीति हमेशा आतंकवाद, अलगाववाद और नक्सलवाद को लेकर ढुलमुल रही है. खुद कांग्रेस की वरिष्ठ नेता शीला दीक्षित ने यह स्वीकार किया है कि मनमोहन सिंह की आतंकवाद पर नीति मोदी सरकार की सख्त नीतियों की तुलना में ढीली थी. शीला दीक्षित ने एक स्वाभाविक बयान दिया है. इसमें कोई संदेह नहीं कि जब कांग्रेस की सरकार देश में दस साल तक थी, तब मुंबई, दिल्ली, जयपुर सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में आतंकी वारदातें आम थीं. लेकिन 2014 में मोदी सरकार आने के बाद पिछले पांच साल में आतंकियों को हमने सीमा के इर्दगिर्द ही समेट कर रखने में सफलता हासिल की है. देश की आंतरिक सुरक्षा में आतंकियों द्वारा सेंध लगा पाना अब असंभव जैसा हो गया है. देश की सीमा पर भी मोदी सरकार की नीति आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टोलरेंस’ की है. आज अगर कोई आतंकी आने की कोशिश करता है अथवा कोई आतंकी वारदात होती है, तो भारत के वीर जवान उसका मुंहतोड़ जवाब उनके मूल तक जा कर देते हैं.
अमित शाह ने कहा कि यह सच है कि सत्ता में रहते हुए आतंकवाद पर ढुलमुल नीति अपनाने वाली कांग्रेस विपक्ष में रहकर आतंकवाद, अलगाववाद और नक्सलवाद की पीठ सहलाने का कोई मौका नहीं छोड़ती. टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का खड़ा होना और उनका समर्थन करना, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. क्या कांग्रेस जवाब देगी कि 2008 में हुए बटला हाउस एनकाउंटर में आतंकवादियों के मारे जाने पर सोनिया गांधी फूट-फूट कर क्यों रोई थीं? मोदी सरकार में इन सब पर नकेल कसने की कवायदें हुईं तो इनका बौखलाना तो स्वाभाविक था, कांग्रेस की बौखलाहट भी खुलकर आने लगी.