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वामपंथ के गढ़ कूच बिहार में तृणमूल कांग्रेस कामय रख पाएगी अपना कब्जा?

Cooch Behar Constituency कूच बिहार लोकसभा सीट पर लंबे समय तक वामपंथी दल फारवर्ड ब्लॉक का कब्जा रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट की तस्वीर बदली और तृणमूल कांग्रेस की रेणुका सिन्हा विजयी रहीं. रेणुका सिन्हा के निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस के प्रथा प्रतिमा राय जीतने में कामयाब रहे.

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Cooch Behar Constituency
Cooch Behar Constituency

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जैसे ही कोई पश्चिम बंगाल के कूच बिहार में दाखिल होता है, इतिहास के पन्ने उसके बनने बिगड़ने की कई कहानियां सुनाते दिखाते हैं. कूच बिहार बंगाल के उन लोकसभा सीटों में से एक है, जो ऐतिहासिक होने के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों और अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती हैं. इतिहास के पन्ने बताते हैं कि यह आज महज शहर या एक संसदीय क्षेत्र होने से पहले क्षेत्र विशेष का राजनीतिक केंद्र हुआ करता था. उन्हीं पन्नों की एक उतार-चढ़ाव वाली कहानी बताती है कि कूच बिहार की स्थापना असम के कामरूप राज परिवार ने चौथी से 12वीं सदी के बीच की थी. बाद में यह कामता साम्राज्य का हिस्सा बन गया. कामता साम्राज्य पर सबसे पहले खेन राजवंस का राज रहा जिनकी राजधानी कामतापुर हुआ करती थी.

कूच बिहार पर खेन आदिवासियों का 1498 सदी तक वर्चस्व रहा, लेकिन बाद में इस पर पठान सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह ने कब्जा कर लिया. लेकिन अलाउद्दीन हुसैन शाह के पैर भी कभी यहां स्थायी रूप से जम नहीं पाए और स्थानीय भुइयां सरदारों और अहोम आदिवासी राजा सुहुनग्मुंग के हमलों में इस क्षेत्र पर वह अपना अधिकार खो बैठा. यह वह दौर था, जब कोच आदिवासी काफी मजबूत स्थिति में आ गए थे और खुद को कामतेश्वर घोषित कर दिया जिन्होंने कोच राजवंश की स्थापना की.

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सबसे महत्वपूर्ण कोच सम्राट बिस्वासिंघा थे, जो 1510 से 1530 सदी तक सत्ता में रहे. उनके बेटे, नारा नारायण की देखरेख में कामता साम्राज्य अपने चरम पर पहुंच गया. नारा नारायण के छोटे भाई शुक्लाध्वज (चिलाराई) एक प्रसिद्ध सैन्य जनरल थे, जिन्होंने राज्य के विस्तार के लिए अभियान चलाया. वह इसके पूर्वी भाग के गवर्नर बने. चिलाराई की मृत्यु के बाद उनके बेटे रघुदेव गवर्नर बने. चूंकि नारा नारायण का कोई बेटा नहीं था, इसलिए रघुदेव को उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था.

हालांकि, इस इतिहास का एक सिरा यह भी बताता है कि नारा नारायण के बहुत देर से पैदा हुए एक बच्चे ने रघुदेव को सिंहासन के दावे से बेदखल कर दिया. बाद में नारायण ने रघुदेव को संखोष नदी के पूर्व में राज्य के एक हिस्से का प्रमुख बना दिया. इस क्षेत्र को कोच हाजो के नाम से जाना जाता है. 1584 में नारा नारायण की मृत्यु के बाद, रघुदेव ने स्वतंत्रता की घोषणा की. नारा नारायण के पुत्र लक्ष्मी नारायण द्वारा शासित राज्य कूच बिहार के नाम से जाना जाता है. कूच बिहार और कोच हाजो में कामता साम्राज्य का विभाजन स्थायी था.

कूच बिहार ने खुद को मुगल साम्राज्य के साथ जोड़ लिया और अंत में पश्चिम बंगाल के एक हिस्से के रूप में भारत में शामिल हो गया, जबकि कोच हाजो शासकों ने खुद को अहोम साम्राज्य में समाहित कर लिया और यह क्षेत्र असम का हिस्सा बन गया. शुरुआती दिनों में कोच राज्य की राजधानी स्थायी नहीं थी, लेकिन स्थानांतरण के बाद कूच बिहार स्थायी राजधानी बनी.

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राजनीतिक पृष्ठभूमिः लंबे समय तक फारवर्ड ब्लॉक का रहा कब्जा

वही कूच बिहार नई संसदीय प्रणाली में लोकसभा क्षेत्र बन चुका है, जिस पर लंबे समय तक वामपंथी दल फारवर्ड ब्लॉक का कब्जा रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट की तस्वीर बदली और तृणमूल कांग्रेस की रेणुका सिन्हा विजय रहीं. रेणुका सिन्हा के निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस के प्रथा प्रतिमा राय जीतने में कामयाब रहे.

देश में 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार उपेंद्रनाथ बर्मन चुने गए. 1957 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस कांग्रेस के उपेंद्र नाथ बर्मन चुने गए. 1962 में आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के दिबेंद्र नाक कर्जी चुनाव जीते जबकि 1963 में हुए उपचुनाव में आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के ही पीसी बर्मन चुने गए. 1967 में बिनॉय कृष्णदास चौधरी आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर जीते जबकि 1971 के चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर लड़े और सासंद चुने गए. इसके बाद 1980,1984,1989,1991,1996,1998 और 1999 के लोकसभा चुनावों में आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर अमरेंद्रनाथ प्रधान चुनाव जीतते रहे. इसी पार्टी के हितेन बर्मन 2004 में चुनाव जीते जबकि 2009 में नृपेंद्रनाथ राय चुनाव जीते. 2014 में तृणमूल कांग्रेस की रेणुका सिन्हा और उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव टीएमसी के ही प्रता प्रतिम राय सांसद चुने गए.

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सामाजिक ताना-बानाः आदिवासी वर्चस्व का इतिहास

जनगणना 2011 के मुताबिक कूच बिहार की कुल आबादी 22,65,726 है जिनमें 89.87 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है और 10 फीसदी शहरी आबादी है. यह दिलचस्प बात है कि इस क्षेत्र का इतिहास आदिवासी वर्चस्व का रहा जबकि आबादी में उनकी हिस्सेदारी बेहद कम है. कुल आबादी में अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्या क्रमशः 48.59 और 0.59 फीसदी है.

कूच बिहार लोकसभा सीट अभी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इसके तहत सात विधानसभा सीटें मसलन मठाबगान, सीतालकुची, सिताई, अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं जबकि कूच बिहार उत्तर, कूच बिहार दक्षिण, दिनहाटा और नाटाबाड़ी सामान्य सीटें हैं.

मतदाता सूची 2017 के मुताबिक इस सीट पर 17,52,569 मतदाता और 1992 मतदाता केंद्र हैं. 2014 के आम चुनावों में 82.62 फीसदी मतदान हूए जबकि 2009 में यहां 84.35 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. 2014 के संसदीय चुनाव में तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी, फारवर्ड ब्लॉक और कांग्रेस को क्रमशः 39.51%, 16.34%, 32.98% और 5.59% वोट मिले. वहीं 2009 में फारवर्ड ब्लॉक को 44.66, तृणमूल कांग्रेस को 41.65 फीसदी और बीजेपी को 5.83 फीसदी मत मिले.

2014 के जनादेश का संदेश

तृणमूल कांग्रेस की प्रत्याशी रेणुका सिन्हा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की थी. उन्हें कुल वोटिंग का 39.5 फीसदी यानी 526,499  मत मिले थे. ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के दीपक कुमार रॉय 439,392 (33.0%) मत के साथ दूसरे स्थान पर रहे. जबकि बीजेपी के हेमचंद्र बर्मन को 217,653  (16.3%) मतों से संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी उसके प्रत्याशी केशब चंद्र राय को 74,540 (5.6%) मत मिले थे.

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सांसद का रिपोर्ट कार्ड

कूच बिहार के सांसद प्रथा प्रतिम राय संसद में 73 फीसदी उपस्थित रहे और सदन की डिबेट में 4 बार हिस्सेदारी की. उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर 27 सवाल किए हैं. हालांकि प्रतिम राय कोई प्राइवेट मेंबर नहीं लाए. सांसद निधि के तहत प्रतिम राय के लिए 15 करोड़ रुपये निर्धारित हैं जिनमें से वह अभी तक 6.04 करोड़ रुपये विकास संबंधित तमाम कार्यों पर खर्च कर पाए हैं. यानी सांसद ने अपने फंड का 78 फीसदी खर्च किए हैं.

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