भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने दिल्ली की छह सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. लेकिन उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट पर अभी प्रत्याशी की घोषणा नहीं की गई है, और इस सीट से मौजूदा बीजेपी सांसद उदित राज के टिकट को लेकर संशय बरकरार है.
अपना टिकट कटने की आशंका के चलते उदित राज ने अपनी पार्टी से उम्मीदवारी को लेकर संशय समाप्त करने को कहा. हालांकि, उदित ने साफ कर दिया है कि वह आज नामांकन करेंगे. अगर पार्टी उन्हें टिकट नहीं देती है तो वह बीजेपी को अलविदा कह देंगे.
I am waiting for ticket if not given to me I will do good bye to party
— Chowkidar Dr. Udit Raj, MP (@Dr_Uditraj) April 23, 2019
अधिकारी से सांसद तक
अपनी इंडियन जस्टिस पार्टी का बीजेपी में विलय करने वाले उदित राज का राजनीतिक जीवन काफी दिलचस्प रहा है. उत्तर प्रदेश के रामनगर में जन्मे उदित राज ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी और दिल्ली स्थिति जवाहरलाल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी की है. अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के अधिकारों को लेकर सक्रिय रहने वाले उदित राज कॉलेज के समय से ही मुखर रहे हैं. खटीक जाति से ताल्लुक रखने वाले उदित राज 1988 में भारतीय राजस्व सेवा के लिए चुने गए और दिल्ली में आयकर विभाग में उपायुक्त, संयुक्त और अतिरिक्त उपायुक्त के पदों पर अपनी सेवाएं दीं. हिंदू धर्म की जाति व्यवस्था के आलोचक उदित राज ने 2001 में बौद्ध धर्म स्वीकार किया था. अपनी राजनीतिक सोच को मूर्त रूप देने के लिए 24 नवंबर 2003 को सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर उन्होंने इंडियन जस्टिस पार्टी का गठन किया था.
अब क्या करेंगे
यह भी कहा जाता है कि वह बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से जुड़ना चाहते थे, लेकिन यह मुमकिन नहीं हो सका, जिसके बाद वह इंडियन जस्टिस पार्टी को लेकर ही सक्रिय रहे. वह एससी/एसटी संगठनों के अखिल भारतीय परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं. जब वह बीजेपी में शामिल हो रहे थे तब भी ये सवाल उठे थे कि आरएसएस के विरोधी उदित राज वहां कब तक टिक पाएंगे?
अब सवाल है कि अपनी पार्टी का बीजेपी में विलय कर सांसद बने उदित राज अब क्या करेंगे, क्योंकि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे दल अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर चुके हैं. नामांकन की आज अंतिम तारीख है. क्या वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेंगे? दलित दस्तक पत्रिका के संपादक अशोक दास कहते हैं कि उदित राज ने बेहतर काम किया है. वह अच्छे सांसद के तौर पर जाने भी जाते हैं. उम्मीद है कि उन्हें दोबारा टिकट मिल जाए. अगर उन्हें टिकट नहीं मिलता है तो वह संभवतः परिसंघ की तरफ लौट जाएं और अपने समाज के लिए काम करें.
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