झारखंड की धनबाद लोकसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के पशुपति नाथ सिंह ने शानदार जीत हासिल की है. उन्होंने बीजेपी छोड़कर कांग्रेस ज्वाइन करने वाले कीर्ति आजाद को 486194 लाख वोटों के भारी अंतर से हराया. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के पशुपति नाथ सिंह को 827234 वोट मिले, जबकि कांग्रेस के कीर्ति आजाद को 341040 वोटों से संतोष करना पड़ा.
आपको बता दें कि झारखंड की धनबाद लोकसभा सीट पर 12 मई को छठे चरण में वोट डाले गए थे और 59.60 फीसदी मतदान रिकॉर्ड किया गया था.इससे पहले साल 2014 में धनबाद लोकसभा सीट पर 60.17 फीसदी मतदान दर्ज किया गया था. धनबाद को कोयले की राजधानी कहा जाता है.
कौन-कौन थे उम्मीदवार
धनबाद लोकसभा सीट पर इस बार 20 प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे. कांग्रेस पार्टी ने कीर्ति आजाद पर दांव खेला था, तो बीजेपी ने पशुपति नाथ सिंह को चुनाव मैदान में उतारा था. माधवी सिंह तृणमूल कांग्रेस, मेघनाथ बीएसपी, दीपक कुमार दास पीपुल्स पार्टी ऑफ इंडिया डेमोक्रेटिक के टिकट से चुनावी रण में थे.
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साल 2014 का चुनाव नतीजा
फिलहाल धनबाद सीट से बीजेपी के पशुपति नाथ सिंह सांसद हैं. वो पिछले दो बार से लगातार जीत दर्ज कर रहे हैं. बीजेपी ने इस बार भी उन पर विश्वास जताया है और उनको चुनाव मैदान में उतारा है. साल 2014 में पशुपति ने कांग्रेस के अजय कुमार दुबे को करीब 2.92 लाख वोटों से हराया. पशुपति को 5.43 लाख वोट मिले थे, जबकि अजय कुमार दूबे को 2.50 लाख वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर मार्कसिस्ट को-ऑर्डिनेशन के आनंद महतो (1.10 लाख) और चौथे नंबर पर झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के समरेस सिंह (90 हजार) रहे. इस सीट पर कांग्रेस-बीजेपी में टक्कर होती है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
धनबाद लोकसभा सीट से साल 1951 और 1957 का चुनाव कांग्रेस के पीसी बोस ने जीता था. साल 1962 में इस सीट से कांग्रेस पीआर चक्रवर्ती जीतने में कामयाब हुए थे. साल 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी रानी ललिता राज्य लक्ष्मी ने चुनाव जीता था. साल 1971 में फिर इस सीट पर कांग्रेस ने वापसी की थी और उसके टिकट पर राम नारायण शर्मा जीते थे.
साल 1977 में इस सीट पर कम्यूनिस्ट पार्टी का कब्जा हो गया था और उसके टिकट पर एके रॉय ने चुनाव जीता था. साल 1980 के चुनाव में भी एके रॉय जीतने में कामयाब हुए थे. साल 1984 में कांग्रेस ने फिर वापसी की थी और उसके टिकट पर शंकर दयाल सिंह जीते थे. साल 1989 का चुनाव कम्युनिस्ट पार्टी के ही एके रॉय जीते थे और तीसरी बार सांसद बने थे.
साल 1991 में इस सीट पर पर पहली बार बीजेपी का खाता खुला था और उसके टिकट पर रीता वर्मा जीती थीं. इसके बाद उन्होंने लगातार चार बार (1991, 1996, 1998 और 1999) चुना जीता था. अटल बिहारी सरकार में कई मंत्रालयों की मंत्री भी रहीं. साल 2004 में इस सीट से कांग्रेस के चंद्र शेखर दूबे जीते थे. साल 2009 में बीजेपी ने फिर वापसी की थी और उसके टिकट पर पशुपति नाथ सिंह जीते थे. साल 2014 में मोदी लहर में वो अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए.
सामाजिक तानाबाना
धनबाद लोकसभा सीट पर शहरी मतदाताओं का दबदबा है. इस सीट पर करीब 62 फीसदी शहरी मतदाता और 38 फीसदी ग्रामीण मतदाता है. इस सीट पर अनुसूचित जाति की तादात 16 फीसदी और अनुसूचित जनजाति की तादाद 8 फीसदी है. इसके अलावा सीट पर उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों की अच्छी तादात है. इस संसदीय क्षेत्र के तहत 6 विधानसभा सीटें आती हैं, जिनमें बोकारो, सिन्दरी, निरसा, धनबाद, झरिया, चन्दनकियारी विधानसभा सीटें शामिल हैं. इसमें चंदनकियारी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
धनबाद संसदीय क्षेत्र दो जिलों धनबाद और बोकारो में फैला हुआ. इस संसदीय क्षेत्र में सूबे की 6 विधानसभा सीटें आती हैं. धनबाद संसदीय क्षेत्र भले आर्थिक रूप से पिछड़ा हो, लेकिन यह अपने औद्योगिक क्षेत्रों के लिए जाना जाता है. झारखंड के अधिकांश औद्योगिक प्लांट (जैसे-बोकारो स्टील प्लांट, भारत कूकिंग कोल लिमिटेड, बीईएमएल लिमिटेड, बोकारो पॉवर सप्लाई कॉरपोरेशन प्राइवेट लिमिटेड) यही हैं. यहां मुंबई के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा रेलवे सब डिवीजन है, जो राजस्व का दूसरा बड़ा जरिया है.
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