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चुनाव आयोग का ट्विटर को आदेश, एग्जिट पोल से जुड़े ट्वीट हटाएं

लोकसभा चुनाव 2019 से जुड़े हुए सभी एग्जिट पोल को चुनाव आयोग ने ट्विटर से हटाने का आदेश दिया है. इस आदेश के बाद सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से एग्जिट पोल हटाए जाएंगे.

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हटाए जाएंगे लोकसभा चुनाव 2019 से जुड़े सभी एग्जिट पोल्स
हटाए जाएंगे लोकसभा चुनाव 2019 से जुड़े सभी एग्जिट पोल्स

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चुनाव आयोग ने ट्विटर से 2019 लोकसभा चुनाव से संबंधित सभी एग्जिट पोल तत्काल हटाने को आदेश दिया है. चुनाव आयोग के आदेश के बाद अब सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से एग्जिट पोल हटाए जाएंगे. दरअसल चुनाव आयोग को शिकायत मिली थी, जिसके बाद चुनाव आयोग ने यह फैसला किया है. चुनाव के दौरान किसी भी तरह के एग्जिट पोल, जो चुनाव को प्रभावित कर सकते हों, या जिनमें किसी पार्टी के हारने या जिताने के आंकड़े पेश किए जाते हों उन पर रोक लगाई जाती है.

चुनाव से ठीक पहले एग्जिट पोल, आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के दायरे में आता है. इससे पहले चुनाव आयोग ने मीडिया आउटलेट को लोकसभा चुनावों के नतीजों के बारे में अनुमान जताने वाले सर्वेक्षणों को जारी करने पर कारण बताओ का नोटिस जारी किया गया था.

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पश्चिम बंगाल में थमा चुनाव प्रचार

इससे पहले चुनाव आयोग ने बुधवार को पश्चिम बंगाल में 19 मई को होने वाले अंतिम चरण के मतदान के लिए चुनाव प्रचार पर गुरुवार रात 10 बजे के बाद से रोक लगा दी है. देश में पहली बार अनुच्छेद 324 का उपयोग करते हुए चुनाव आयोग ने यह फैसला लिया. चुनाव प्रचार दरअसल शुक्रवार शाम पांच बजे खत्म होने वाला था लेकिन राज्य में समय से पहले ही इस पर रोक लगा दी गई है.

क्या है एग्जिट पोल?

एग्जिट पोल सभी चरणों की वोटिंग खत्म होने के बाद ही जारी किए जाते हैं. इस दौरान पर चरण की वोटिंग से संबंधित डाटा इकट्ठा किया जाता है. वोटिंग के दिन जब मतदाता वोट डालकर निकल रहा होता है, तब उससे पूछा जाता है कि उसने किसे वोट दिया. इस आधार पर किए गए सर्वेक्षण से व्यापक नतीजे निकाले जाते हैं. इसे ही एग्जिट पोल कहते हैं. आमतौर पर टीवी चैनल वोटिंग के आखिरी दिन एग्जिट पोल ही दिखाते हैं.

कब हुई शुरुआत?

एग्जिट पोल की शुरुआत नीदरलैंड के समाजशास्त्री और पूर्व राजनेता मार्सेल वॉन डैम ने की थी. पहली बार एग्जिट पोल 15 फरवरी, 1967 में अस्तित्व में आया था. नीदरलैंड में हुए चुनाव में यह एग्जिट पोल काफी ज्यादा सटीक था. वहीं भारत में इसकी शुरुआत इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन के मुखिया एरिक डी कोस्टा ने की थी.

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