निर्वाचन आयोग के साथ वित्तीय प्रबंधन एजेंसियों के प्रमुखों की बैठक में देशभर में कम से कम 150 ऐसे लोकसभा क्षेत्र चिन्हित किए गए, जिनमें चुनाव के दौरान सबसे ज्यादा अवैध धन की बरामदगी होती है. जाहिर है जितना पकड़ा जाता है उससे कहीं ज्यादा तो चुनाव में खप जाता होगा. इस बार पहली बार निर्वाचन आयोग की खुफिया निगाह इन लोकसभा हलकों में चप्पे-चप्पे पर लगी रहेगी. आयोग इसके लिए स्पेशल ऑब्जर्वर की टीम भी इन इलाकों में तैनात करेगा.
आयोग के चुनावी खर्च निगरानी विभाग के निदेशक के मुताबिक शुक्रवार को हुई बैठक में सीबीडीटी, आयकर विभाग, आर्थिक खुफिया विभाग, अर्धसैनिक बलों के प्रमुख सहित आर्थिक अपराध शाखा जैसे कई वित्तीय प्रबंधन संस्थानों के प्रमुखों ने हिस्सा लिया. बैठक में चर्चा इस बात पर भी हुई कि आपस में खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान समय रहते हो और उस पर मिलजुल कर फौरन और सटीक कार्रवाई हो तो चुनाव में काले धन के इस्तेमाल को न केवल रोका जा सकता है, बल्कि ऐसा करने वालों में मन में कानून का डर भी बैठेगा. ये तय किया गया कि सभी विभाग चुनावी प्रक्रिया खत्म होने तक सातों दिन चौबीसों घंटे इस अभियान में जुटे रहेंगे.
इस बाबत एक्शन का रोडमैप भी तैयार किया गया है. पिछले चुनावों में मिले अनुभव के मुताबिक काले धन के ट्रांसपोर्टेशन की पारंपरिक विधियों के अलावा आधुनिक तकनीकी के जरिए किए जा रहे धन के लेन-देन पर नजर रखने के अत्याधुनिक तरीकों पर भी चर्चा हुई. चुनावी हलचल के दौरान सिर्फ धन ही नहीं बल्कि शराब, नकली नोट, ड्रग्स आदि की भी तस्करी इन दिनों बढ़ जाती है उन पर निगाह रखी जाएगी. इस निगहबानी के लिए अंतरराज्यीय सीमाओं के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और सामुद्रिक सीमाओं पर भी चौकसी बढ़ाई जा रही है.
आयोग में हुई बैठक में इस बात पर भी चर्चा हुई कि तमिलनाडु की सभी सीटें इन वित्तीय संवेदनशील दायरे में हैं. इसके अलावा आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, बिहार, झारखंड और गुजरात में भी पिछले चुनावों में बड़ी तादाद में अवैध धन, शराब और ड्रग्स की खेप पकड़ी गई थी. आंध्रप्रदेश में तो 175 में से 110 विधान सभा हलके अवैध धन के मामले में न केवल संवेदनशील हैं बल्कि बदनाम भी. लिहाजा इन राज्यों में आयोग सिटीजन विजिल यानी सी विजिल मोबाइल एप के जरिए भी लोगों को जागरूक रखने का अभियान चला रहा है, ताकि लोग भी इस बारे में सजग और सतर्क रहें. आयोग का कहना है कि एप के जरिए जानकारी देने वाले नागरिकों के नाम और पहचान गुप्त रखी जाएगी. अपराधियों की जानकारी सार्वजनिक जरूर होगी.
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला के मुताबिक अब तक तो निर्वाचन आयोग को चुनाव में काले धन के इस्तेमाल को रोकने में ज्यादा सफलता हाथ नहीं लगी है लेकिन ऐसे उपायों से कुछ कमी तो जरूर आएगी.