2019 के लोकसभा चुनाव को भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे अहम चुनाव माना जा रहा है और इस महामुकाबले के नतीजों से पहले आए एग्जिट पोल ने मोदी विरोधी विचारधारा को बड़ा झटका दिया है. भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से उखाड़ फेंकने के जिस मकसद से मायावती ने पुरानी अदावत भुलाते हुए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया, उसमें वो फेल नजर आ रही हैं. इस लिहाज से 2014 में एक भी लोकसभा सीट न जीतने वाली बसपा के लिए नतीजे अगर एग्जिट पोल से मेल खाते हैं तो यह मायावती के लिए उनके राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा झटका माना जाएगा.
आजतक- एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल में यूपी की कुल 80 सीटें हैं जिनमें 62-68 सीटें बीजेपी को, एसपी-बीएसपी-आरएलडी गठबंधन को 10-16 और यूपीए को 1-2 सीटें मिलती दिख रही हैं.
यानी यह एग्जिट पोल बता रहा है कि अखिलेश यादव और मायावती का गठजोड़ काम नहीं कर पाया है और कांग्रेस की स्थिति में भी कोई फर्क नहीं आया है. एग्जिट पोल के मुताबिक, यूपी में बीजेपी को 48 फीसदी, कांग्रेस को 8 फीसदी और महागठबंधन को 39 फीसदी वोट मिलता दिख रहा है.
यूपी में जब सपा-बसपा गठबंधन हुआ तो यह माना गया कि राज्य की राजनीति में बड़ा दखल रखने वाले दोनों ने साथ आकर बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर दी है. दोनों दलों के अपने-अपने वोटबैंक भी हैं. मायावती जहां दलित वोटबैंक की राजनीति पर आधारित है तो सपा यादव-मुस्लिम समीकरण पर राजनीति करती आई है. ऐसे में यूपी के सामाजिक ताने-बाने में दलित-मुस्लिम और यादव वोटबैंक की पार्टियों का गठजोड़ देख हर कोई महागठबंधन के लिए एकतरफा नतीजों की उम्मीद लगा रहा था. हालांकि, बीजेपी महागठबंधन को महामिलावट कहते हुए 2014 से ज्यादा सीटें मिलने का दावा बीजेपी करती रही है.
एग्जिट पोल के अनुसार मायावती मुश्किल में हैं. 2014 में जब मोदी लहर चली तो बसपा 19.8% वोट पाकर एक भी सीट नहीं जीत पाई. जबकि उससे पहले बसपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा. 2009 में बसपा को 27.4% वोट के साथ 20 सीट और 2004 में 24.7% वोट के साथ 19 लोकसभा सीटों पर जीत मिली थी. यही नहीं, 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा ने सोशल इंजीनियरिंग के दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. लेकिन पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में शिकस्त पाने के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में जीरो पर रहने वाली बसपा को 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कुछ हाथ नहीं आया और उनकी पार्टी महज 19 सीटों पर सिमट गई.
इन नतीजों को देखते हुए ही शायद मायावती ने लखनऊ गेस्ट हाउस कांड तक भुला दिया और मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव से गठजोड़ कर लिया. बावजूद इसके एग्जिट पोल के जो नतीजे सामने आ रहे हैं, उसमें मायावती का यह समाजवादी फॉर्मूला भी पूरी तरह ध्वस्त होता दिखाई दे रहा है. ऐसे में जहां चर्चा ये चल रही थी कि मायावती अपनी राजनीतिक विरासत भतीजे को सुपुर्द कर खुद को केंद्र की राजनीति में ले जाने का ख्वाब देख रही हैं, वहां चुनाव-दर चुनाव पिछड़ती जा रही मायावती के लिए एग्जिट पोल के अनुमानों ने पानी फेरने जैसा काम किया है.