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नरेंद्र मोदी सरकार के 5 सालः जानिए क्या हैं 5 प्लस और 5 माइनस प्वॉइंट?

पांच साल के कार्यकाल के बाद मोदी सरकार अब 2019 के लोकसभा चुनाव मैदान में है. विपक्ष, जहां सरकार पर सभी मोर्चों पर असफल होने का आरोप लगा रहा है तो सरकार आंकड़ों के जरिए योजनाओं की सफलता गिनाने में जुटी है. लोकसभा चुनाव के बहाने जानते हैं मोदी सरकार किन 5 मुद्दों पर छाप छोड़ने में सफल रही और किन पांच मुद्दों पर अपेक्षित उपलब्धियां नहीं हासिल हुईं.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.

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2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजे आज ही के दिन 16 मई को आए थे. तब बहुमत से जीत के जश्न में बीजेपी और उसके समर्थक डूबे थे. अब फिर 5 साल बाद चुनाव की बेला आई है. लोकसभा चुनाव के मैदान में बीजेपी का विपक्ष से मुकाबला है. विपक्ष जहां पांच साल में कई नाकामियों का हवाला देकर मोदी सरकार पर निशाना साध रहा है तो आंकड़ों के हवाले से योजनाओं की सफलता और अपनी उपलब्धियां बताने में जुटी है.

बीजेपी की तरफ से 2014 में चुनाव प्रचार करते हुए नरेंद्र मोदी ने देश को भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने और विकास के रास्ते पर ले जाना का वादा किया था. पांच साल का कार्यकाल देखा जाए तो कई मोर्चों पर मोदी सरकार को सफलता मिली है और कुछ मोर्चों पर असफलता भी. खास बात है कि इस बार के चुनाव में कुछ मुद्दे नदारद भी हैं.

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2017 में यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने नोटबंदी पर भी वोट मांगे थे, इसे देश की अर्थव्यवस्था और गरीबों का हितकारी बताया था. बीजेपी के तमाम नेता नोटबंदी और जीएसटी को मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बताते थे, मगर अब  2019 के लोकसभा चुनाव में इन पर सत्तापक्ष चर्चा नहीं कर रहा. कानून व्यवस्था यूं तो राज्य का विषय है, मगर देश में गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग की घटनाओं के चलते मोदी सरकार विपक्ष के निशाने पर रही. वजह रही कि ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की ही सरकार है. गौरक्षकों की हिंसा पर विपक्ष मुखर होकर सरकार पर सांप्रदायिक सौहार्द का ताना-बाना बिगाड़ने का आरोप लगाता रहा. जानते हैं पिछले पांच साल में बीजेपी की 5 सफलताएं और पांच असफलताएं.

उपलब्धियां-

1. नहीं लगा कोई बड़ा 'दाग'

मोदी सरकार की यह सबसे बड़ी सफलता कही जा सकती है कि अब तक सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई बड़ा दाग नहीं लगा. राफेल में बड़े घोटाले का आरोप विपक्ष लगाता रहा, मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा, मगर इसमें करप्शन की बात फिलहाल प्रमाणित नहीं हो सकी है. मोदी कैबिनेट में शामिल कोई मंत्री भी भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में घिरता नजर नहीं आया. छिटपुट आरोप जरूर लगते रहे. वहीं यूपीए की मनमोहन सरकार में कोयला, स्पेक्ट्रम, टू जी, कॉमनवेल्थ, आदर्श स्कैम जैसे घोटाले सुर्खियों में रहे थे. जिसकी कीमत भी 2014 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सरकार को चुकानी पड़ी थी.

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2. जन-धन योजना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में देश की जनता को बैंकिंग से जोड़ने के लिए जन-धन योजना की घोषणा की थी. इस योजना के तहत 31.31 करोड़ लोगों के खाते खोले गए. एक सप्ताह में सबसे अधिक 1,80,96,130 बैंक खाते खोलने का गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बना.दरअसल, आजादी के 67 वर्ष बाद भी देश की बड़ी आबादी बैंकिंग सेवा से दूर थी. उनके पास बचत और संस्थागत कर्ज लेने के लिए कोई जरिया नहीं था. प्रधानमंत्री मोदी ने इसके लिए 28 अगस्त को प्रधानमंत्री जन धन योजना की शुरुआत की थी. देश में बैंकों ने कैंप लगाकर वंचित लोगों के खाते खोलकर उन्हें बैंकिंग सुविधा से जोड़ा.

मोदी सरकार ने पिछले पांच वर्षों में डिजिटाइजेशन पर जोर किया. मकसद लेन-देन और सरकारी कार्यों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने का रहा. कैश से लेन-देन की जगह ऑनलाइन पेमेंट पर जोर दिया गया. बैंकिंग क्षेत्र से लेकर अन्य सरकारी कार्यों में डिजिटाइजेशन को बढ़ावा मिला है.

3. गांवों में बिजलीकरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 अगस्त 2015 को लाल किले से 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाने की घोषणा की थी. इन गांवों में आजादी के सात दशक बाद भी बिजली नहीं पहुंच थी. इसके लिए एक हजार दिनों का टारगेट रखा गया था. अप्रैल 2018 में तय समयसीमा 10 मई से 12 दिन पहले ही यह लक्ष्य हासिल कर लिया गया . मणिपुर के सेनापति जिले का लीसांग वो आखिरी गांव बचा था, जिसे अप्रैल 2018 में नेशनल पावर ग्रिड से जोड़ दिया गया.

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4. उज्जवला योजना

गरीब भी गैस चूल्हे पर खाना बना सकें, इस मकसद से मोदी सरकार ने उज्ज्वला योजना लागू की. यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले उन परिवारों के लिए मददगार साबित हुई है, जिनके पास गैस कनेक्शन नहीं था और उन्हें खाना बनाने के लिए  परेशानी का सामना करना पड़ा था. योजना के तहत गरीब परिवारों को एलपीजी कनेक्शन दिया गया.  ग्रामीण इलाकों में रहने वाले बीपीएल राशन कार्ड धारकों को मुफ्त में सिलेंडर दिया जाता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 3 करोड़ परिवार इसके लाभार्थी हैं.

5. स्वच्छ भारत अभियान

मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत योजना के जरिए देश की जनता को स्वचछता के प्रति जागरूक करने में सफलता हासिल की. यह संदेश दिया गया कि सफाई सरकार की नहीं जनता की भी जिम्मेदारी है. पीएम मोदी ने अपने कार्यकाल के पहले साल से ही इसकी शुरुआत की थी.  स्वच्छ भारत मिशन के तहत देश भर में सवा सात करोड़ टॉयलेट बनाने का सरकार ने दावा किया. जिससे खुले में शौच रोकने की दिशा में सफलता मिली. 2 अक्टूबर 2014 को देश भर में एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत हुई थी.पीएम मोदी ने खुद  मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन के पास सफाई अभियान का शुभारंभ किया था.

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 इन मुद्दों पर विपक्ष रहा हमलावर-

1. बेरोजगारी

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी ने युवाओं को रोजगार देने का वादा किया था. मोदी सरकार को इन पांच वर्षों में सबसे ज्यादा हमला बढ़ती बेरोजगारी को लेकर झेलना पड़ा. विपक्ष हर साल दो करोड़ नौकरियां देने के वादे पर सरकार को फेल बताता है. एनएसएसओ की रिपोर्ट से इस बात का खुलासा हुआ है कि देश में बेरोजगारी की दर 1972-73 के बाद अब रिकॉर्ड 6.1 के स्तर पर पहुंच गई है. जबकि 2011-12 में यह आंकड़ा 2.2 प्रतिशत था.सीएनआइई की रिपोर्ट बताती है कि 2018 में 1.1 करोड़ नौकरियां छिन गईं. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय, बेंगलुरु की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 और 2018 के बीच 50 लाख लोगों ने नौकरियां गंवा दीं. जबकि क्रिसिल के अनुसार, वित्त वर्ष 12 और वित्त वर्ष 19 के बीच 3.8 करोड़ से कम गैर-कृषि रोजगार सृजित किए गए.हालांकि सरकार कई बार इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़ा करती नजर आती है.

2. कालाधन

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में कालाधन को बड़ा मुद्दा बनाया था. हर चुनावी रैली में वह स्विस बैंकों में जमा कालाधन देश में लाने की बात कहते थे.उनका कहना था कि इतना पैसा विदेशी बैंकों में जमा है कि वह भारत आए तो देश की हर जनता को 15-15 लाख दिया जा सकता है. मोदी सरकार ने कालेधन की जांच के लिए एसआइटी जरूर गठित की. मगर अब तक विदेशों में जमा कालेधन को भारत लाने के मोर्चे पर सफलता हासिल नहीं हुई है. पनामा पेपर्स से  यह खुलासा हो चुका है कि देश की कई हस्तियों ने टैक्स से बचने के लिए विदेशों में पैसा जमा किया है. हालांकि अब तक सरकार ने ऐसी किसी हस्ती के खिलाफ कोई एक्शन नहीं उठाया है.

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3. नोटबंदी

पीएम नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर 2016 को रात आठ बजे नोटबंदी की घोषणा की. पांच सौ और एक हजार रुपये के पुराने नोटों को चलन से बाहर कर दिया. शुरू में कहा गया कि नोटबंदी का उद्देश्य कालेधन और करप्शन पर अंकुश लगाने का है. मगर जब अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं हुए तो बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बयान भी उसी अनुरूप बदलते गए. सरकार ने यह कहना शुरू किया कि नोटबंदी का उद्देश्य सिर्फ पैसे को बैंकिंग सिस्टम में लाने का था. विपक्ष आरबीआई की उस रिपोर्ट के जरिए सरकार पर हमलावर हुआ, जिसमें कहा गया था कि बंद किए गए 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों में से लगभग 99 फ़ीसदी बैंकिंग सिस्टम में वापस लौट आए. विपक्ष का कहना है कि जब लगभग पैसा बैंक में आ गया तो फिर कालाधन कहां है? इसी तरह जल्दबाजी में लागू जीएसटी की जटिलता को लेकर भी सरकार को विपक्ष के हमलों का सामना करना पड़ा.सरकार ने 1 जुलाई, 2017 को आधी रात से जीएसटी लागू की थी.

4. कश्मीर मुद्दा

नरेंद्र मोदी सरकार में कश्मीर के लगातार अशांत होने की खबरें आईं. पत्थरबाजी की घटनाओं में भी बढ़ोत्तरी देखी गई. हालांकि, कश्मीर समस्या के हल को लेकर मोदी सरकार ने पूर्व के रुख में तब्दीली करते हुए सभी पक्षों से बातचीत की भी पहल की और इसके लिए खुफिया ब्यूरो के पूर्व निदेशक दिनेश्वर शर्मा को कमान सौंपी. मगर इस पहल के भी अभी अपेक्षित परिणाम नहीं दिखे हैं. वर्ष 2016 के दौरान कश्मीर में भारी अशांति देखने को मिली थी. जब जुलाई के शुरुआती दिनों में भारतीय सेना का जांबाजों ने हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान मुजफ्फर वानी को मुठभेड़ में मार गिराया था. इसके बाद घाटी में बड़े पैमाने पर हिंसक प्रदर्शन हुए थे. अलगाववादी और सेना का लगातार आमना-सामना होता गया.हिंसक घटनाओं में कई मौतों के साथ तमाम लोग घायल भी हुए. आखिरकार सरकार को कर्फ्यू लगाना पड़ा. इसके बाद से पत्थरबाजी की घटनाएं बढ़ती गईं.

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5. पड़ोसी देशों से रिश्ते

मोदी सरकार के पांच साल में कुछ पड़ोसी देशों से रिश्ते भी सामान्य नहीं रहे. डोकलाम को लेकर चीन से ठनी रही. पुलवामा में हुए आतंकी हमले के बाद जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने का मुद्दा उठाया तो चीन ने वीटो का इस्तेमाल कर रोक दिया. हालांकि अब जाकर काफी कोशिशों के बाद मसूद अजहर ग्लोबल टेररिस्ट घोषित हुआ है. मित्र राष्ट्र नेपाल से भी संबंधों मे जटिलता देखी गई. नेपाल में मधेसियों के आंदोलन के दौरान भारत ने  नाकेबंदी करते हुए पेट्रोल, दवा आदि सामानों की आपूर्ति रोक दी थी. जिससे नेपाल की जनता और सरकार में भारत को लेकर नाराजगी देखने को मिली. पांच साल में पाकिस्तान से भी संबंध सामान्य नहीं हुए. बल्कि पुलवामा में सीआरपीएफ के 40 जवानों के शहीद होने के बाद युद्ध की नौबत भी दिखी. मोदी सरकार पर यह आरोप लगते रहे कि उसकी वैश्विक नीति अमेरिका के समर्थन से आगे बढ़ रही है.

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