लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही अपनी व्यूहरचना बनाने में लगी हैं. गुजरात इस व्यूहरचना का पहला पड़ाव पूरा हो चुका है. यहां बीजेपी ओर कांग्रेस ने अपने 26 उम्मीदवार के नामों को ऐलान कर दिया है. इस बीच नामांकन भरने की प्रकिया खत्म हो चुकी है. ऐसे में अगर बीजेपी और कांग्रेस उम्मीदवारों की चुनावी प्रकिया पर गौर करें तो काफी दिलचस्प तथ्य निकलकर सामने आते हैं.
बीजेपी ने 2014 में जहां गुजरात की 26 में से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी, वहीं पांच साल के अंदर बीजेपी ने अपने 10 उम्मीदवारों को बदल दिया है. यही नहीं, बीजेपी ने 6 नए चेहरों को भी इस बार चुनावी मैदान में उतारा है. जबकि चार विधायकों को टिकट दिया है. वहीं, कांग्रेस ने 8 मौजूदा विधायकों को चुनावी मैदान में उतारा है.
महिला उम्मीदवारों की बात करें तो बीजेपी ने 6 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा तो वहीं कांग्रेस ने एक ही महिला को टिकट दिया है.
दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों की घोषणा में जातिवादी राजनीति भी दिखाई देती है. बीजेपी ने 9 ओबीसी, 5 आदिवासी, 6 पाटीदार, 2 दलित और एक बनिया को टिकट दिया है. वहीं कांग्रेस ने 9 ओबीसी, 8 पाटीदार, 5 आदिवासी, 2 दलित, एक बनिया और एक मुस्लिम को टिकट दिया है.
दिलचस्प बात तो ये है कि 1984 के बाद पहली बार कांग्रेस ने मुस्लिम को टिकट दिया गया है. जबकि बीजेपी ने किसी मुस्लिम को सासंद के चुनाव के लिए कभी टिकट नहीं दिया.
वहीं पाटीदार आंदोलन से कई नए चेहरे भी उभरकर आए हैं. जिसे कांग्रेस ने इस बार अपने चेहरे बनाकर टिकट दिया हैं. पोरबंदर के ललित वसोया, राजकोट से ललित कथगरा, अहमदाबाद पूर्व की सीट से हार्दिक पटेल की साथी गीता पटेल को कांग्रेस ने टिकट दिया है. इस बात में कोई दो राय नहीं है कि दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों ने जातिवादी समीकरण के मद्देनजर ही टिकटों का बंटवारा किया है.