केरल के कासरगोड लोकसभा सीट पर तीसरे चरण में 23 अप्रैल को मतदान होगा. संसदीय चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सभी राजनीतिक दल कमर कस चुके हैं. केरल में राजनीतिक दंगल का केंद्र यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के बीच रहता है. कासरगोड सीट पर भी यही स्थिति देखने को मिल रही है. एलडीएफ की तरफ से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के उम्मीदवार केपी सतीशचंद्रन मैदान में हैं. जबकि कांग्रेस ने राजमोहन उन्नीथन को टिकट दिया है जिन्हें यूडीएफ का समर्थन हासिल है. सबरीमाला मंदिर आंदोलन से उत्साहित बीजेपी ने भी रवीश थंथरी कुंटर को कासरगोड से अपना उम्मीदवार बनाया है.
कासरगोड क्षेत्र माकपा का गढ़ है, लेकिन यहां कांग्रेस, बीजेपी और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसे राजनीतिक दल प्रभावी हैं. यह राजधानी तिरुवनंतपुरम से करीब 580 किमी दूर है. फिलहाल यहां से माकपा नेता पी. करुणाकरण सांसद हैं. पहले कासरगोड़ जिले के मानजेस्वर, कासरगोड, उदमा और कनहनगड विधानसभा क्षेत्र मद्रास स्टेट के दक्षिण कनारा लोकसभा क्षेत्र के तहत आते थे. 1956 में साउथ कनारा जिले के मैसूर स्टेट में विलय के बाद साउथ कनारा संसदीय क्षेत्र का अस्तित्व खत्म हो गया और इसकी जगह मंगलौर लोकसभा क्षेत्र ने ले ली. इस क्षेत्र के कासरगोड और होदुर्ग विधानसभा क्षेत्रों को केरल में मिला दिया गया और वे कासरगोड लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हो गए.
1952 में जब यह क्षेत्र साउथ कनारा नाम से मद्रास स्टेट में था और पहली बार चुनाव हुआ था, तब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के बी. शिवराव सांसद बने थे. उसके बाद 1957 में कासरगोड संसदीय क्षेत्र के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी भाकपा के ए.के. गोपालन विजयी हुए. यह सीट वामपंथियों का गढ़ है. इस सीट से दस बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) यानी माकपा कैंडिडेट जीते हैं. कांग्रेस कैंडिडेट भी चार बार जीत चुके हैं.
बीजेपी उत्साहित
साल 2014 में माकपा कैंडिडेट पी. करुणाकरण को जीत मिली जो तीसरी बार यहां से सांसद हैं. वह लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट यानी एलडीएफ की तरफ से कैंडिडेट थे. पी. करुणाकरण को कुल 3,84,964 वोट हासिल हुए थे. दूसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार टी सिद्दीकी को 3,78,043 वोट मिले. बीजेपी कैंडिडेट के सुरेंद्रन तीसरे स्थान पर थे जिन्हें 1,72,826 वोट मिले थे. इस तरह करुणाकरण करीब 7 हजार वोटों से ही विजयी हुए. यह आंकड़ा इस लिहाज से मायने रखता है, कि नोटा (NOTA) पर 6,103 लोगों ने बटन दबाया. कुल 9,74,215 हजार लोगों ने वोट डाले थे. आम आदमी पार्टी के अम्बालतारा कुनहीकृष्णन को 4,996 वोट और बहुजन समाज पार्टी कैंडिडेट एडवोकेट बशीर अलादी को 3,104 वोट मिले. तृणमूल कांग्रेस के अब्बास मोथलाप्परा को महज 632 वोट मिले.
कासरगोड में कुल मतदाता 12,43,730 थे, जिनमें से पुरुष मतदाता 5,95,047 और महिला मतदाता 6,48,683 थे. यहां करीब 78 फीसदी वोटर्स ने मतदान किया था.
कासरगोड संसदीय क्षेत्र के तहत केरल के कन्नूर और कासरगोड जिले के इलाके आते हैं. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक इस संसदीय क्षेत्र की कुल जनसंख्या 17,67,968 थी. इसमें से 56.21 फीसदी ग्रामीण और 43.79 फीसदी शहरी जनसंख्या है. इसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का अनुपात क्रमशः 4.35 और 2.93 फीसदी थी.
बीजेपी इस बार पूरे जोरशोर से उतरने की तैयारी कर रही है. ऐसी चर्चा है कि यहां से फिल्म एक्टर सुरेश गोपी को उतारा जा सकता है. कान्हरगड़ में सबरीमाला पर आयोजित एक विशाल जनसभा में मुख्य अतिथि के रूप में सुरेश गोपी की उपस्थिति से इस चर्चा को बल मिला. बीजेपी का वोट यहां लगातार बढ़ रहा है. 2009 के मुकाबले 2014 में उसे 35 फीसदी ज्यादा वोट मिले थे.
कासरगोड सबरीमाला आंदोलन का केंद्र रहा है. बीजेपी के कर्नाटक के नेता बीएस येदियुरप्पा और केरल अध्यक्ष पीएस श्रीधरन पिल्लई, भारत धर्म जन सेना के अध्यक्ष तुषार वेलापल्ली ने कासरगोड के मधुर सिद्ध विनायक मंदिर से सबरीमाला बचाओ रथ यात्रा को हरी झंडी दिखाई थी, जो 13 नवंबर को सबरीमाला के निकट इरुमली जाकर खत्म हुई. इसी के तर्ज पर केरल कांग्रेस कमेटी के कार्यवाहक अध्यक्ष के सुधाकरण ने 8 नवंबर से कासरगोड़ से ‘विश्वास रक्षा यात्रा‘ की शुरुआत की जो 14 नवंबर को मलप्पुरम में जाकर खत्म हुई.
ट्रेड यूनियन आंदोलन से जुड़े सांसद-नेता
73 वर्षीय सांसद करुणाकरण के परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी है. संसद में उनकी उपस्थिति करीब 78 फीसदी रही है. उन्होंने 307 सवाल पूछे हैं और 187 बार बहस और अन्य विधायी कार्यों में हिस्सा लिया है. उन्होंने 13 प्राइवेट मेंबर बिल पेश किए हैं. कासरगोड के सांसद करुणाकरण को सांसद निधि के तहत ब्याज सहित कुल 20.77 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें से उन्होंने 18.83 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. उन्होंने एम.ए. तक शिक्षा हासिल की है. वे एक समाजसेवी, लेखक, ट्रेड यूनियन आंदोलनकारी और खिलाड़ी रहे हैं.