ओडिशा के कोरापुट लोकसभा सीट पर पहले चरण में 11 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे. इस सीट पर मुख्य रूप से बीजू जनता दल (बीजद) के कौशल हिकाका, बीजेपी के जयराम पांगी, कांग्रेस के सप्तगिरी संकर उल्का, बसपा के भास्कर मुटुका चुनाव मैदान में हैं. इनके अलावा कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेलिनवादी) (लिबरेशन) के दामोदर साबर, अंबेडकराइट पार्टी ऑफ इंडिया के बनमाली माझी भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी-लेलिनवादी) रेड स्टार ने भी राजेंद्र केंद्रुका को अपना उम्मीदवार बनाया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ओडिशा में कोरापुट जिले के जयपुर इलाके में एक रैली के साथ ही पूर्वी भारत में चुनाव प्रचार मुहिम शुरू की. इसलिए माना जा रहा है कि इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प होने वाला है. राज्य में लोकसभा की 21 और विधानसभा की 147 विधानसभा सीटों के लिए चार चरणों में 11, 18, 23 और 29 अप्रैल को चुनाव होंगे.
बहरहाल, कोरापुट कांग्रेस का वह दुर्ग रहा है जिसे लोकतंत्र के जंग में दो बार ही भेदा जा सका है. 2009 और 2014 छोड़ दें तो ये सीट कांग्रेस के कब्जे में रही है. 1999 में मुख्यमंत्री रहते हुए वाजपेयी सरकार के खिलाफ वोट कर एक मत से उनकी सरकार गिराने वाले गिरधर गमांग 40 साल से यहां का प्रतिनिधित्व संसद में करते आए हैं. लेकिन पिछले 10 सालों में बीजू जनता दल उनकी और कांग्रेस की बादशाहत को सफल चुनौती दी है. 2019 में कांग्रेस के सामने एक बार फिर से इस किले पर अपना झंडा बुलंद करने का दबाव है वहीं बीजद इस जमीन को कतई खोना नहीं चाहती है.
कोरापुट संसदीय सीट देशभर में कांग्रेस के सबसे मजबूत किलो में से एक रहा है. आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस यहां से 13 बार जीतकर रिकॉर्ड कायम की है. इस सीट पर पहली बार 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए. यहां से कांग्रेस के टिकट पर जगन्नाथ राव इलेक्शन जीते. 57 में ही यहां पर उपचुनाव की नौबत आ गई, इस बार कांग्रेस के ही टी सागन्ना को जीत मिली. 1962 के आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर रामचंद्र उल्का ने बाजी मारी. 67 के चुनाव में रामचंद्र उल्का एक बार फिर विजयी बनकर निकले.
वर्ष 1971 में इस सीट से कांग्रेस के भागीरथी गमांग ने जीत हासिल की. 1972 में कोरापुट सीट से कांग्रेस ने गिरधर गमांग को टिकट दिया. गिरधर गमांग ने ये सीट तो जीती ही, उन्होंने यहां से इतिहास कायम कर दिया. 1972 के बाद वह इस सीट से लगातार 7 बार जीतते रहे. 1977, 80, 84, 89, 91, 96, 98 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट शानदार कामयाबी हासिल की.
1999 में कांग्रेस ने इस सीट से गिरधर गमांग की पत्नी हेमा गमांग को मैदान में उतारा, क्योंकि गिरधर गमांग खुद इस वक्त ओडिशा के सीएम थे. हेमा गमांग चुनाव जीत गई. 2004 के लोकसभा चुनाव में गमांग कांग्रेस के टिकट पर फिर सांसद बने. ओडिशा में बीजद के गठन के बाद इस सीट से गिरधर गमांग को तगड़ी चुनौती मिली. साल 2009 में जब वह कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में इस सीट से ताल ठोंकने उतरे तो वह चुनाव हार गए. बीजद प्रत्याशी जयराम पांगी से उन्हें हार मिली. 2014 में भी इस सीट से गिरधर गमांग चुनाव हार गए, हालांकि उनकी हार कम वोटों से हुई. बीजद के झीना हिक्का को यहां से जीत मिली.
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजद के झीना हिक्का को 3 लाख 95 हजार 109 वोट मिले, जबकि गिरधर गमांग को 3,75,781 वोट पाकर दूसरे नंबर से संतोष करना पड़ा. गिरधर गमांग ये चुनाव मात्र 1,93,38 वोटों से हारे. बीजेपी के शिवशंकर उल्का 89,788 वोट लेकर तीसरे नंबर पर रहे.
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