लद्दाख लोकसभा सीट, जम्मू और कश्मीर की 6 लोकसभा सीटों में से एक है. यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित है. क्षेत्रफल के लिहाज से यह भारत का सबसे बड़ा लोकसभा क्षेत्र है. इसका क्षेत्रफल 1.74 लाख वर्ग किलोमीटर है. एलओसी पर स्थित यह लोकसभा क्षेत्र कारगिल युद्ध के बाद राजनीतिक रूप से कमजोर और अस्थिर हो गया था. हिमालय की गोद में बसा यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण विश्व विख्यात है. यहां देश-दुनिया से पर्यटक घूमने आते हैं. यही कारण है कि इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर्यटन है.
सूबे के दो जिलों कारगिल और लेह में यह लोकसभा सीट फैला हुआ है. यह दोनों जिले, सूबे के सबसे कम आबादी वाले जिले हैं. इस सीट के अन्तर्गत चार विधानसभा सीट आती है. 2014 के चुनाव में पहली बार इस सीट पर कमल खिला था और बीजेपी के थुपस्तान छेवांग जीते थे. इससे पहले छेवांग, निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में 2004 का चुनाव जीते चुके हैं. हालांकि, 15 नवंबर, 2018 को उन्होंने सांसद पद और बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
1967 और 1971 का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर केजी बकुला जीते थे. कांग्रेस के ही टिकट पर 1977 में पार्वती देवी और 1980 व 1984 में पी. नामग्याल संसद पहुंचे. 1989 का चुनाव निर्दलीय मोहम्मद हसन कमांडर जीतने में कामयाब हुए. 1991 में यहां चुनाव नहीं हुआ. 1996 में तीसरी बार कांग्रेस के टिकट पर पी. नामग्याल चुनाव जीते. इसके बाद इस सीट पर पहली बार नेशनल कांफ्रेंस जीती. 1998 में नेशनल कांफ्रेंस के टिकट पर सैयद हुसैन और 1999 में हसन खान संसद पहुंचे.
2004 में इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी थुपस्तान छेवांग जीते. 2009 में यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हो गई और इस सीट से निर्दलीय प्रत्याशी हसन खान जीतकर दूसरी बार संसद पहुंचे. 2014 में इस सीट से थुपस्तान छेवांग ने वापसी की और बीजेपी के टिकट पर जीतकर वह भी दूसरी बार संसद पहुंच गए.
सामाजिक तानाबाना
लद्दाख लोकसभा सीट सूबे के दो जिलों कारगिल और लेह में फैला हुआ है. इसके अन्तर्गत चार विधानसभा सीटें (कारगिल, लेह, नोबरा और जानस्कार) आती हैं. 2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 3 सीटों (कारगिल, लेह, नोबरा) और निर्दलीय ने एक सीट (जानस्कार) पर जीत दर्ज की थी.
इस लोकसभा सीट पर वोटरों की संख्या 1.66 लाख है. इनमें 86 हजार पुरुष और 80 हजार महिला वोटर हैं. पहाड़ी इलाका होने के कारण यहां की अधिकांश आबादी आदिवासी और बौद्धिस्ट है. यही कारण है कि 2009 में इस सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया था. 2014 में यहां 70 फीसदी मतदान हुआ था.
2014 का जनादेश
लोकसभा चुनाव 2014 में इस सीट पर बीजेपी और निर्दलीय प्रत्याशी में कड़ी टक्कर हुई थी. बीजेपी के थुपस्तान छेवांग ने निर्दलीय प्रत्याशी गुलाम रजा को महज 36 वोटों से हराया था. छेवांग को 31,111 और गुलाम रजा को 31, 075 वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी सैयद मोहम्मद काजिम (28, 234 वोट) और चौथे नंबर पर कांग्रेस के सेरिंग सेम्फेल (26, 402 वोट) थे. छेवांग ने नवंबर 2018 में लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी नेतृत्व से असहमति का हवाला देते हुए भारतीय जनता पार्टी छोड़ दी थी.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
थुपस्तान छेवांग ने लद्दाख के शाही परिवार में शादी की है. उनकी पत्नी, राजकुमारी सरला चेवान्ग, राजा छोस्ज़्याल कुंज्ज़ नामग्याल की सबसे बड़ी बेटी और वर्तमान राजा जिग्मेट नामग्याल की बहन हैं. छेवांग का एक बेटा और एक बेटी है. छेवांग बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं. छेवांग ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत साल 1972 में की. इस दौरान उन्होंने कुछ अन्य युवाओं के साथ मिलकर एक विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया, जब सैयद मीर कासिम लद्दाख गए और उन्हें बीस दिनों तक जेल में रखा गया. उन्होंने लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश घोषित करने की मांग की थी.
साल 2000 में छेवांग ने लद्दाख यूनियन टेरिटरी फ्रंट का गठन किया और संगठन के बैनर तले 2004 का चुनाव लड़ा और जीता था. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके पास 1.98 करोड़ की संपत्ति है. इनमें 13.74 लाख चल संपत्ति और 1.84 करोड़ की अचल संपत्ति है. उनके ऊपर 80 हजार रुपए की देनदारी है.
जनवरी, 2019 तक mplads.gov.in पर मौजूद आंकड़ों के अनुसार, थुपस्तान छेवांग ने अपने सांसद निधि से क्षेत्र के विकास के लिए 18.55 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. उन्हें सांसद निधि से अभी तक 22.99 करोड़ मिले हैं. इनमें से 4.44 करोड़ रुपए अभी खर्च नहीं किए गए हैं. उन्होंने 91 फीसदी अपने निधि को खर्च किया है.
छेवांग सोशल मीडिया में एक्टिव नहीं है. उनका ट्विटर हैंडल नहीं है और फेसबुक पर जो पेज है, वह 2015 के बाद से एक्टिव नहीं है.