आंध्र प्रदेश के एलुरु लोकसबा सीट पर मतदान के दौरान हिंसा की खबर आई. समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक टीडीपी कार्यकर्ताओं के कथित हमले में YSR कांग्रेस के के मंडल परिषद का एक सदस्य गंभीर रूप से घायल हो गया.इस लोकसभा सीट पर 82.90 फीसदी मतदान हुआ है.
आंध्र प्रदेश की एलुरु लोकसभा सीट पर मतदान को लेकर यहां की जनता में काफी उत्साह देखा गया. हालांकि कई बूथों पर EVM में खराबी होने से लोगों को निराशा हुई. TDP ने कहा है कि एलुरु के बूथ नंबर 7, 5 और 10 पर EVM में खराबी की वजह से सुबह 9.30 बजे तक मतदान शुरू नहीं हो पाया था. इसकी वजह से कई वोटर्स बिना वोट डाले ही वापस लौट गए. सीएम चंद्रबाबू नायडू ने इस बूथों पर फिर से मतदान की मांग की है.
मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने अपने परिवार के साथ अमरावती के उंदावल्ली गांव में वोट डाला. इस दौरान उनके बेटे नारा लोकेश और उनका पूरा परिवार मौजूद था. YSR कांग्रेस अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी ने कडपा जिले के पुलिवेंदुला गांव में वोट डाला. पुलिवेंदुला विधानसभा सीट से ही जगनमोहन चुनाव लड़ रहे हैं. राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी गोपाल कृष्ण द्विवेदी ने ताडेपल्ली इलाके में अपना वोट डाला.
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एलुरु लोकसभा सीट से टीडीपी के मंगती वेंकटेश्वर राव ने एक बार फिर ताल ठोंका है. वाईएसआर कांग्रेस ने कोटागिरी श्रीदरस को मैदान में उतारा है. इस सीट से जनसेना पार्टी ने पेंटापति पुल्ला राव को टिकट दिया है.
बीजेपी और कांग्रेस भी इस सीट से तगड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट से चिन्नम रामा कोटय्या को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस कैंडिडेट का नाम गुरुंधा राव जेट्टी है. इस सीट से रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के मेथे बॉबी चुनाव लड़ रहे हैं. इस सीट पर कुल 10 कैंडिडेट चुनाव मैदान में है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
1952 में पहले आम चुनाव में ये सीट कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के पास थी. जिसे 1957 में कांग्रेस ने छीन लिया. लेकिन कांग्रेस को अगले चुनाव (1962) में झटका लगा और दोबारा सीपीआई ने सीट पर कब्जा कर लिया. हालांकि, इसके बाद सीपाआई को एक बार भी जीत नहीं मिली और इस प्रकार सीपीआई की यह आखिरी जीत साबित हुई. वर्तमान में भी सीपीआई का प्रभाव इस सीट पर नजर नहीं आता. 1967 में सीपीआई को हराने वाली कांग्रेस ने जीत का सिलसिला जारी रखा और टीडीपी के गठन से पहले तक इस सीट कब्जा जमाए रखा.
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इस दौरान कांग्रेस ने 1967, 1971, 1977 और 1980 में जीत दर्ज की. हालांकि, एनटीआर द्वारा टीडीपी की स्थापना के बाद कांग्रेस के जीत का क्रम टूटा और 1984 के आम चुनाव में उसे टीडीपी उम्मीदवार के हाथों 1.11 लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा. 16 बार हुए आम चुनावों में 9 बार यह सीट कांग्रेस के पास रही. हालांकि, टीडीपी के अस्तित्व में आने के बाद हुए 9 आम चुनावों में कांग्रेस का ग्राफ नीचे गिरा, उसे महज 4 बार जीत मिल सकी. वहीं, 5 बार यह सीट टीडीपी के पाले में रही. 2014 में भी इस सीट पर टीडीपी का कब्जा रहा.
2014 का जनादेश
कभी कांग्रेस नेता रहे मगंती ने 2014 में टीडीपी के टिकट पर चुनाव जीतकर दूसरी बार लोकसभा पहुंचे. उन्होंने वाईएसआर उम्मीदवार थोटा चंद्र शेखर को 1,01,926 वोटों के अंतर से हराया. 2014 में इस सीट पर कुल 84.27 फीसदी वोटिंग हुई थी, जिसमें टीडीपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. टीडीपी को 51.82 फीसदी वोट प्राप्त हुए. दूसरे नंबर पर रही वाईएसआर कांग्रेस को 43.35 वोट मिले, वहीं कांग्रेस के हिस्से में एक फीसदी से भी कम वोट आया.
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