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आंध्रप्रदेश की नरसापुरम लोकसभा सीट पर वोटिंग खत्म, कई बूथों पर EVM में दिक्कत

2014 में इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. हालांकि पार्टी ने इस बार कैंडिडेट बदल दिया है. बीजेपी ने इस बार नरसापुरम की जंग जीतने के लिए मणिकायला राव को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने कानूमुरु बापीराजू को टिकट दिया है. जबकि वाईएसआर ने रघु राम कृष्णा राजू को मैदान में उतारा है. टीडीपी ने नरसापुरम लोकसभा सीट से वेंकट शिवा राम राजू को मैदान में उतारा है. वेंकट शिवा राम राजू उंडी विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं.

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सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

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आंध्र प्रदेश में गुरुवार को लोकसभा की 25 और विधानसभा की 175 सीटों के लिए वोट डाले गए. नरसापुरम लोकसभा सीट पर मतदान खत्म हो गया है. आंध्र प्रदेश में औसतन 81.16 प्रतिशत मतदान हुआ है. नरसापुरम लोकसभा सीट पर सुबह 7 बजे से मतदाताओं की लंबी-लंबी कतारें देखने को मिली. EVM में खराबी की वजह से मतदाताओं को परेशानी झेलनी पड़ी, लेकिन उनके उत्साह में कोई कमी नहीं देखी गई. मतदाता तबतक मतदान केंद्रों पर डटे रहे, जबतक उन्होंने अपना वोट नहीं डाल लिया.

2014 में इस सीट पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी. हालांकि पार्टी ने इस बार कैंडिडेट बदल दिया है. बीजेपी ने इस बार नरसापुरम की जंग जीतने के लिए मणिकायला राव को मैदान में उतारा है. कांग्रेस ने कानूमुरु बापीराजू को टिकट दिया है. जबकि वाईएसआर ने रघु राम कृष्णा राजू को मैदान में उतारा है. टीडीपी ने नरसापुरम लोकसभा सीट से वेंकट शिवा राम राजू को मैदान में उतारा है. वेंकट शिवा राम राजू उंडी विधानसभा सीट से दो बार विधायक रह चुके हैं. इसके अलावा वे उद्योगपति भी हैं. मतदान को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं. संवेदनशील और अतिसंवेदनशील बूथों पर अर्द्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है.

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नरसापुरम लोकसभा सीट की राजनीतिक पृष्ठभूमि

शुरुआत में नरसापुरम लोकसभा सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया का दबदबा रहा, 1952 और 1957 में हुए आम चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने जीत दर्ज की, हालांकि उसके बाद से अभी तक हुए आम चुनाव में सीपीआई को जीत नहीं मिल सकी है. सीपीआई के बाद इस सीट पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. 1957 के बाद कांग्रेस ने लगातार 5 बार (1962, 1967, 1971, 1977, 1980) इस सीट पर कब्जा करने में कामयाबी हासिल की. 1982 में तेलुगू देशम पार्टी की स्थापना के बाद कांग्रेस का प्रभाव इस सीट पर तेजी से कम हुआ, इसी का नतीजा था कि 1984, 1989, 1991 और 1996 में तेलुगू देशम पार्टी ने लगातार 4 बार जीत दर्ज की.

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हालांकि, जीत के इस सिलसिले को कांग्रेस ने 1998 के आम चुनाव में तोड़ा और कनुमुरी बापीराजु ने कांग्रेस की तरफ से जीत दर्ज की. इसके बाद 1999 में इस सीट पर हुए आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार वेंकटा कृष्णम राजू ने कांग्रेस के उस समय के सांसद और लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार कनुमुरी बापीराजू को 1 लाख 65 हजार से ज्यादा के अंतर से हराया, लेकिन 2004 के आम चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा वापसी की और बीजेपी के उम्मीदवार को करीब 64 हजार वोटों से हराया. कांग्रेस ने जीत का सिलसिला जारी रखते हुए 2009 में भी जीत हासिल की और कनुमुरी बापीराजु कांग्रेस की तरफ से संसद पहुंचे. इस सीट पर सबसे ज्यादा 8 बार कांग्रेस के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की.

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