तालों की नगरी से मशहूर अलीगढ़ लोकसभा चुनाव के लिहाज से काफी अहम शहर है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक प्रमुख सीट होने के अलावा यहां की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी भी काफी सुर्खियां बटोरती है. मौजूदा समय में ये सीट भारतीय जनता पार्टी के खाते में है. हाल ही के समय में अलीगढ़ पाकिस्तान के जनक माने जाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर पर काफी बवाल हुआ था. इस सीट पर मुस्लिम वोटरों का भी काफी प्रभाव है, ऐसे में 2019 लोकसभा चुनाव में यहां सभी की नजर रहेगी.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
अलीगढ़ लोकसभा सीट शुरुआत से ही काफी चर्चा में रहने वाली सीट रही, 1952 और 1957 के चुनाव में यहां कांग्रेस ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की थी. लेकिन इन चुनाव के बाद लगातार चार चुनाव यहां गैर कांग्रेसी दल ने जीते. इसमें 1967, 1971 भारतीय क्रांति दल और 1977, 1980 में जनता दल ने जीत दर्ज की थी.
हालांकि, 1984 में चली कांग्रेस पक्ष की लहर में कांग्रेस ने यहां वापसी की. पर 1989 के चुनाव में जनता दल के सत्यपाल मलिक ने फिर कांग्रेस को पटखनी दी. इसके बाद से ही ये सीट एक तरह से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ बन गई. 1991, 1996, 1998 और 1999 में यहां बीजेपी की शीला गौतम ने लगातार जीत दर्ज की. लेकिन 2004 के चुनाव में कांग्रेस और 2009 के चुनाव में बसपा ने यहां से बाजी मारी. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मोदी लहर के दम पर सतीश गौतम ने बड़ी जीत दर्ज की थी.
अलीगढ़ लोकसभा सीट का राजनीतिक इतिहास
अलीगढ़ लोकसभा सीट पर मुस्लिम वोटरों का काफी प्रभाव है. यहां अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी होने के कारण यहां के मुस्लिम वोटरों का संदेश पूरे उत्तर प्रदेश में जाता है. अलीगढ़ जिले में करीब 20 फीसदी मुस्लिम जनसंख्या और करीब 80 फीसदी हिंदू मतदाता हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव के अनुसार यहां करीब 17 लाख मतदाता हैं, इनमें करीब 9.65 लाख पुरुष और 8 लाख महिला मतदाता हैं.
अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र के तहत कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इनमें खैर, बरौली, अतरौली, कोल और अलीगढ़ सीटें आती हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में ये सभी पांचों सीटें भारतीय जनता पार्टी के खाते में गई थीं. बीते साल मई में यहां की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर पर काफी बवाल हुआ था.
स्थानीय सांसद सतीश गौतम ने जिन्ना की तस्वीर पर आपत्ति जताई थी, जिसके बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तस्वीर हटाने का आदेश दिया था. तब कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले इस मुद्दे पर राजनीतिक तौर पर काफी शोर हुआ था.
कैसा था 2014 का जनादेश?
2014 के चुनाव में बीजेपी के सतीश गौतम ने यहां एक तरफा जीत दर्ज की थी. उन्हें कुल 48 फीसदी वोट मिले थे, जबकि बहुजन समाज पार्टी के उनके प्रतिद्वंदी अरविंद कुमार सिंह को 21 फीसदी वोट मिले थे. यहां समाजवादी पार्टी तीसरे और कांग्रेस चौथे नंबर पर रही थी. 2014 में यहां कुल 59 फीसदी मतदान हुआ था, इसमें से 6183 वोट NOTA को गए थे.
सांसद का प्रोफाइल और रिपोर्ट कार्ड
युवा सांसद सतीश गौतम अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुए जिन्ना विवाद के बाद देशभर की सुर्खियों में छाए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैकग्राउंड से आने वाले सतीश गौतम 2014 में पहली बार सांसद चुने गए थे. सांसद बनने के बाद वह संसद की कई कमेटियों का हिस्सा रहे.
ADR के आंकड़ों के मुताबिक, सतीश गौतम के पास कुल 5 करोड़ से अधिक की संपत्ति है. 16वीं लोकसभा में उन्होंने कुल 12 बहस में हिस्सा लिया, इस दौरान उन्होंने कुल 37 सवाल पूछे. सतीश गौतम ने अपनी कुल सांसद निधि से करीब 93 फीसदी राशि खर्च की है.