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धौरहरा लोकसभा सीट: जितिन प्रसाद के सामने कांग्रेस का बेड़ा पार लगाने की चुनौती?

Dhaurahra Loksabha constituency 2019 का लोकसभा चुनाव अपने आप में ऐतिहासिक होने जा रहा है. लोकसभा सीटों के लिहाज से सबसे बड़ा प्रदेश उत्तर प्रदेश की धौरहरा लोकसभा सीट क्यों है खास, इस लेख में पढ़ें...

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Jitin Prasad
Jitin Prasad

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2008 परिसीमन के बाद वर्चस्व में आई धौरहरा लोकसभा सीट इस समय भारतीय जनता पार्टी के खाते में है. ये सीट शाहजहांपुर से अलग होकर वर्चस्व में आई थी. 2009 में यहां पहली बार चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस के जितिन प्रसाद जीते लेकिन अगले ही चुनाव में चली मोदी लहर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. अब 2019 के चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन होने के साथ ही यहां की लड़ाई दिलचस्प हो गई है.

धौरहरा लोकसभा सीट का इतिहास

इस लोकसभा सीट का इतिहास काफी लंबा तो नहीं है लेकिन दिलचस्प है. 2009 में यहां पहली बार चुनाव हुए तो कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद चुनाव जीते थे. जितिन प्रसाद शाहजहांपुर से चुनाव जीत कर यहां आए थे और पहले ही चुनाव में जबरदस्त जीत हासिल की.

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लेकिन 2014 में चली मोदी लहर में उनका पत्ता पूरी तरह से साफ हो गया. पिछले लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी की रेखा ने जीत दर्ज की. 2019 के चुनाव में कांग्रेस के जितिन प्रसाद यहां चौथे नंबर पर रहे थे, उन्हें सिर्फ 16 फीसदी ही वोट मिले थे.

धौरहरा लोकसभा सीट का समीकरण

धौरहरा लोकसभा सीट सीतापुर जिले के अंतर्गत आती है. 2014 के चुनाव के अनुसार यहां पर करीब 17 लाख मतदाता हैं, जिनमें से 8.4 लाख पुरुष और 7 लाख से अधिक मतदाता महिला हैं. बता दें कि सीतापुर जिला देश के 250 सबसे पिछड़े जिलों में से एक है.

इस लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं. जिसमें धौरहरा, कास्ता, मोहम्मदी, मोहाली और हरगांव शामिल हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी.

2014 का जनादेश

2014 के चुनाव में इस सीट पर मोदी लहर का असर साफ देखने को मिला. बीजेपी की ओर से रेखा ने करीब 34 फीसदी वोट हासिल किए और बड़ी जीत दर्ज की. उनके सामने खड़े बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार दूसरे, समाजवादी पार्टी तीसरे और कांग्रेस की ओर से पूर्व सांसद जितिन प्रसाद चौथे नंबर पर रहे.

सांसद का प्रोफाइल और प्रदर्शन

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स्थानीय सांसद रेखा वर्मा ने 2014 के चुनाव में ही संसदीय राजनीति में कदम रखा. चुनाव जीतने के बाद वह संसद की कमेटियों की सदस्य भी बनीं. 16वीं लोकसभा में अगर उनके प्रदर्शन की बात करें तो उन्होंने कुल 51 बहस में हिस्सा लिया है और 200 से अधिक सवाल पूछे.

2014 में जारी किए गए ADR के आंकड़ों के अनुसार, रेखा वर्मा के पास 1 करोड़ से अधिक की संपत्ति है. अपनी सांसद निधि में से उन्होंने 85 फीसदी से अधिक की राशि खर्च की है.

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