कहते हैं कि धार्मिक और पौराणिक किवदंतियां देवभूमि उत्तराखंड के कोने-कोने में रची-बसी हैं. इन्हीं कथा-कहानियों के आवरण में यहां का समाज बना और फिर ऐसी ही यहां की राजनीति बनी. गढ़वाल लोकसभा सीट भी इसी सामाजिक और राजनीतिक विकास का साक्षी रहा है. धर्म और पर्यटन यहां की जिंदगी के आधार है और इस पर्यटन का अस्तित्व यहां मौजूद दर्जनों तीर्थस्थल हैं.
गढ़वाल सीट के तहत आने वाले चमोली जिले में भगवान विष्णु का धाम बदरीनाथ स्थित है. यहां का धार्मिक महत्व तो है ही, बर्फबारी के दौरान ये इलाका आपको खूबसूरत एहसास दिलाता है. इसी लोकसभा सीट में ज्वालादेवी मंदिर भी है जो एक शक्तिपीठ माना जाता है. इसके अलावा रुद्रप्रयाग में अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल है. यहां से अलकनंदा नदी देवप्रयाग में जाकर भागीरथी से मिलती है, इसके बाद ही ये धारा गंगा नदी कहलाती है. इन स्थलों के अलावा यहां सैलानियों के कई और भी नजारे हैं, जिनमें चोपता, गुप्तकाशी, गौरीकुंड जैसे जगह प्रमुख हैं.
उत्तराखंड की गढ़वाल लोकसभा सीट इस बार इस लिहाज से खास हो जाती है क्योंकि चर्चा है कि इस बार एनएसए अजित डोभाल के बेटे शौर्य डोभाल इस सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. शौर्य डोभाल दिसंबर 2017 में भाजपा से जुड़े. इसके बाद उन्हें उत्तराखंड बीजेपी कार्यकारिणी समिति का सदस्य बनाया गया. शौर्य डोभाल को लेकर इस सीट से चर्चाएं इसलिए भी है क्योंकि 84 साल के मौजूदा सांसद बीसी खंडूरी के इस बार चुनाव नहीं लड़ने की खबरें हैं. शौर्य डोभाल के अलावा इस सीट से कर्नल अजय कोठियाल, सतपाल महाराज की पत्नी अमृता, प्रदेश बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष तीरथ सिंह रावत और ऋतु खंडूरी भी रेस में हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
पहाड़ों में बसे पौड़ी गढ़वाल सीट पर अमूमन कांग्रेस और बीजेपी का कब्जा रहा है. आजादी के बाद देश में पहली बार जब लोकसभा चुनाव हुए तो पौढ़ी गढ़वाल पर भी मतदान हुए. 1952 से 1977 तक इस सीट पर लगातार कांग्रेस का कब्जा रहा. 1952 से 1971 तक हुए चार लोक सभा चुनाव में कांग्रेस के भक्त दर्शन यहां से चुनाव जीतते रहे. 1971 में जब पांचवीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए तो कांग्रेस के प्रताप सिंह नेगी ने चुनाव जीता.
1977 में इंदिरा गांधी के खिलाफ लहर के दौरान कांग्रेस को यहां हार का मुंह देखना पड़ा और जनता पार्टी के जगन्नाथ शर्मा चुनाव जीते. 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में यूपी के पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा को जीत मिली. 1984 और 89 में चंद्र मोहन सिंह नेगी चुनाव जीते. 1991 में जब देश में मंदिर आंदोलन का जोर था तो इस दौरान इस सीट पर बीजेपी ने बाजी मारी और भुवन चंद्र खंडूरी चुनाव जीते. हालांकि 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सतपाल महाराज को जीत मिली. इसके बाद इस सीट पर लंबे समय तक बीजेपी का दबदबा कायम रहा. पौड़ी सीट पर 1998, 1999 और 2004 में बीजेपी के बीसी खंडूरी जीतते रहे. 2007 में इस सीट पर उपचुनाव हुए तो बीजेपी के तेज पाल सिंह रावत चुनाव जीते. 2009 में इस सीट पर बीजेपी से लोगों का मोहभंग हुआ और कांग्रेस के सतपाल महाराज ने जीत हासिल की.
सामाजिक ताना-बाना
पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट के तहत विधानसभा की 14 सीटें आती हैं. ये 14 सीटें उत्तराखंड के पांच जिलों चमोली, गढ़वाल, नैनीताल, रुद्रप्रयाग और टिहरी गढ़वाल में फैली हुई हैं. इस लोकसभा सीट के तहत आने वाली विधानसभा सीटों में बदरीनाथ, कर्णप्रयाग, थराली, राम नगर, चौबट्टाखाल, कोटद्वार, लैंस डाउन, पौड़ी, श्रीनगर, यमकेश्वर, केदारनाथ, रुद्रप्रयाग, देव प्रयाग और नरेंद्रनगर शामिल है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस लोकसभा क्षेत्र के अंदर शानदार कामयाबी हासिल की और 14 में से 13 सीटें जीतीं. केदारनाथ विधानसभा सीट पर कांग्रेस का कब्जा है.
2014 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 12, 69, 083 मतदाता थे. पिछले आम चुनाव में यहां पुरुष मतदाताओं की संख्या 6 लाख 52 हजार 891 थी, जबकि महिला वोटर्स का आंकड़ा 6 लाख 16 हजार 192 था. यहां पर मतदान का प्रतिशत 53.74 रहा था. चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2017 के विधान सभा चुनाव में में यहां मतदाताओं की संख्या बढ़कर लगभग 14 लाख हो गई थी.
2011 की जनगणना पर गौर करें तो यहां की आबादी 16 लाख 81 हजार 825 है. भौगोलिक कारणों की वजह से यहां पर शहरीकरण की रफ्तार काफी धीमी है. इस इलाके की 83.64 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है, जबकि 16.36 प्रतिशत आबादी का निवास शहरों में है. यहां पर अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या 18.76 फीसदी है, जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी 1.13 प्रतिशत है.
2014 का जनादेश
2014 में मोदी लहर के दौरान इस सीट से उत्तराखंड के पूर्व सीएम भुवन चंद्र खंडूरी ने शानदार जीत हासिल की. बीसी खंडूरी ने अपने निकटत्तम प्रतिद्वन्दी कांग्रेस के हरक सिंह रावत को 1 लाख 84 हजार 526 वोटों से हराया. खंडूरी को चार लाख 5 हजार 690 वोट मिले जबकि हरक सिंह रावत को 2 लाख 21 हजार 164 वोट मिले. 2014 के आम चुनाव में यहां 53.74 फीसदी वोटिंग हुई थी.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
84 साल के बीसी खंडूरी की संसद में यह पांचवीं पारी है. संसद और लोकतांत्रिक प्रणाली में काम करने का इन्हें लंबा अनुभव है. सेना से मेजर जनरल के पद से रिटायर होने वाले बीसी खंडूरी दो बार उत्तराखंड के सीएम रहे. सीएम के रुप में उनकी पहली पारी 8 मार्च 2007 से लेकर 26 जून 2009 तक रही. दूसरी पारी सितंबर 2011 में शुरू हुई. इस बार खंडूरी 12 मार्च 2012 तक सीएम रहे. 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्हें सीएम रहते हुए हार का मुंह देखना पड़ा. 1999 में वाजपेयी के शासन काल में पूर्व पीएम अटल बिहारी ने उन्हें मंत्री बनाकर गोल्डन क्वाड्रिलैट्रल हाइवे बनाने का जिम्मा सौंपा. खंडूरी ने पूरी निष्ठा के साथ इस काम को पूरा किया. देश भर में सड़के बिछाने के काम ने उसी समय रफ्तार पकड़ी. कहा जाता है सैन्य अनुशासन के पैरवीकार खंडूरी उत्तराखंड की उठा-पटक की राजनीति में फिट नहीं बैठते हैं. राज्य में बीजेपी नेताओं के साथ उनके खटपट की खबरें अक्सर आती रहती है.
बीसी खंडूरी को सांसद निधि के तहत सरकार ने 12.5 करोड़ रुपये जारी किए, सांसद महोदय ने विकास कार्यों के लिए 7.35 करोड़ रुपये खर्च किए. जबकि ताजा सूचना के मुताबिक 5.46 करोड़ रुपये अभी भी खर्च नहीं हुए थे. मौजूदा लोकसभा में बीसी खंडूरी ने 104 सवाल पूछे. उन्होंने लोकसभा की 29 डिबेट्स में हिस्सा लिया. उन्होंने सदन में 5 निजी बिल पेश किए. लोकसभा में बीसी खंडूरी की उपस्थिति 92 फीसदी रही.