कोरापुट दक्षिणी उड़ीसा में बसा एक शांत और खूबसूरत शहर है. यहां कुदरत की ख़ूबसूरती चारों ओर बिखरी है. यहां के हरे-भरे घास के मैदान, जंगल, झरने और घुमावदार घाटियां सैलानियों को ग़ज़ब का रोमांच देती हैं. दुगुमा, बागरा और खांडाहाटी झरनों की कलकल आवाज मानों दर्शकों को बुलाती रहती हैं. बरसात में इन झरनों का रौद्र रूप एडवेंचर के दीवानों को ललचाता है. कोरापुट में बने मंदिर, मठ, मध्य काल के स्मारक अतीत के गौरव को बयां करते हैं.
इस शहर के सियासी मिजाज की बात करें तो यह कहना गलत ना होगा कि ये जिला कांग्रेस का वो दुर्ग रहा है जिसे लोकतंत्र के जंग में दो बार ही भेदा जा सका है. 2009 और 2014 छोड़ दें तो ये सीट कांग्रेस के कब्जे में रही है. 1999 में CM रहते हुए वाजपेयी सरकार के खिलाफ वोट कर एक मत से उनकी सरकार गिराने वाले गिरधर गमांग 40 साल से यहां का प्रतिनिधित्व संसद में करते आए हैं. लेकिन पिछले 10 सालों में बीजू जनता दल उनकी और कांग्रेस की बादशाहत को सफल चुनौती दी है. 2019 में कांग्रेस के सामने एक बार फिर से इस किले पर अपना झंडा बुलंद करने का दबाव है वहीं बीजद इस जमीन को कतई खोना नहीं चाहती है.
राजनितिक पृष्ठभूमि
कोरापुट संसदीय सीट देशभर में कांग्रेस के सबसे मजबूत किलों में से एक रहा है. आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनावों में कांग्रेस यहां से 13 बार जीतकर रिकॉर्ड कायम की है.
इस सीट पर पहली बार 1957 में लोकसभा के चुनाव हुए. यहां से कांग्रेस के टिकट पर जगन्नाथ राव इलेक्शन जीते. 57 में ही यहां पर उपचुनाव की नौबत आ गई, इस बार कांग्रेस के ही टी सागन्ना को जीत मिली. 1962 के आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर रामचंद्र उल्का ने बाजी मारी. 67 के चुनाव में रामचंद्र उल्का एक बार फिर विजयी बनकर निकले.
1971 में इस सीट से कांग्रेस के भागीरथी गमांग ने जीत हासिल की.
1972 में कोरापुट सीट से कांग्रेस ने गिरधर गमांग को टिकट दिया. गिरधर गमांग ने ये सीट तो जीती ही, उन्होंने यहां से इतिहास कायम कर दिया. 1972 के बाद वह इस सीट से लगातार 7 बार जीतते रहे. 1977, 80, 84, 89, 91, 96, 98 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के टिकट शानदार कामयाबी हासिल की.
1999 में कांग्रेस ने इस सीट से गिरधर गमांग की पत्नी हेमा गमांग को मैदान में उतारा, क्योंकि गिरधर गमांग खुद इस वक्त ओडिशा के सीएम थे. हेमा गमांग चुनाव जीत गई. 2004 के लोकसभा चुनाव में गमांग कांग्रेस के टिकट पर फिर सांसद बने. ओडिशा में बीजद के गठन के बाद इस सीट से गिरधर गमांग को तगड़ी चुनौती मिली. साल 2009 में जब वह कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में इस सीट से ताल ठोंकने उतरे तो वह चुनाव हार गए. बीजद प्रत्याशी जयराम पांगी से उन्हें हार मिली. 2014 में भी इस सीट से गिरधर गमांग चुनाव हार गए, हालांकि उनकी हार कम वोटों से हुई. बीजद के झीना हिक्का को यहां से जीत मिली.
सामाजिक ताना बाना
कोरापुट आदिवासी बहुल इलाका है. इस लिहाज से इस सीट को अनुसूचित जनजातियों के लिए सुरक्षित घोषित किया गया है. 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 20 लाख 56 हजार 741 है. यहां ग्रामीण और शहरी आबादी का अनुपात क्रमशः 82.65 और 17.35 है. इस क्षेत्र में अनुसूचित जनजाति की आबादी 52.25 फीसदी है जबकि अनुसूचित जाति का अनुपात 14.23 प्रतिशत है.
कोरापुट लोकसभा क्षेत्र में विधानसभा की 7 सीटें आती हैं, ये सीटें हैं- गुनुपुर, बिसम कटक, रायगढ़ा, लक्ष्मीपुर, पोतंगी, कोरापुट, जयपोर. 2014 के विधानसभा चुनाव में गुनुपुर, बिसम कटक, रायगढ़ा, और पोतंगी सीट से बीजू जनता दल के उम्मीदवार चुनाव जीते, जबकि बाकी तीन सीटें लक्ष्मीपुर कोरापुट और जयपोर क्षेत्र में कांग्रेस की जीत हुई.
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में बीजद के झीना हिक्का को 3 लाख 95 हजार 109 वोट मिले, जबकि गिरधर गमांग 3,75,781 वोट लाकर दुसरे नम्बर पर रहे. गिरधर गमांग ये चुनाव मात्र 1,93,38 वोटों से हारे. बीजेपी के शिवशंकर उल्का 89,788 वोट लेकर तीसरे नम्बर पर रहे.
2014 के चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक इस सीट पर कुल मतदाता 13 लाख 437 मतदाता थे. यहां पर पुरुष वोटर्स की संख्या 6 लाख 29 हजार 268 थी, आश्चर्यजनक रूप से इसके अनुपात में यहां महिला वोटर्स की संख्या ज्यादा थी. चुनाव आयोग के मुताबिक यहां पर महिला वोटर्स 6,71,169 थीं. 2014 में यहां 76.09 प्रतिशत मतदान हुआ था.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
बीजेडी सांसद झीना हिक्का की संसद में यह पहली पारी है. 43 साल के झीना ओडिशा के कोरापुट में ही पैदा हुए थे. उन्होंने समाजशास्त्र में एमए किया है. इसके अलावा सांसद झीना ने कानून और पत्रकारिता की डिग्री ली है. राजनीति के अलावा वह सामाजिक कार्यों और मीडिया में सक्रिय रहते हैं. वह लंबे समय से आदिवासियों के हक के लिए लड़ रहे हैं.
संसद में झीना हिक्का की मौजूदगी 65.42 प्रतिशत रही है, वे लोकसभा 321 बैठकों में से 210 दिन मौजूद रहे. सदन में उनके द्वारा 17 सवाल पूछे गए. उन्होंने लोकसभा की 7 डिबेट्स में हिस्सा लिया. सांसद निधि फंड की बात करें तो इनका रिकॉर्ड ठीक नहीं रहा है. सांसदों को 5 साल में मिलने वाले 25 करोड़ में उन्होंने मात्रा 7.17 करोड़ रुपया विकास के कार्यों पर खर्च किया है.