दक्षिण-पश्चिम ओडिशा में स्थित नबरंगपुर की गिनती देश के पिछड़े जिलों में होती है. इसकी गवाही देते हैं यहां के साक्षरता आंकड़े 2011 की जनगणना के अनुसार नबरंगपुर की साक्षरता दर मात्र 46.43 प्रतिशत है जबकि उड़ीसा की साक्षरता दर 72.87 है. केन्द्र सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक इस संसदीय क्षेत्र के इलाके नक्सलवाद से प्रभावित हैं. कांग्रेस की परंपरागत सीट रही नबरंगपुर में घुसपैठ करने में ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी को लंबा वक्त लग गया. 2014 में बीजेडी ने एक बेहद कड़े मुकाबले में मात्र 2000 वोट से ये सीट कांग्रेस से छीन ली.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
नबरंगपुर लोकसभा सीट कांग्रेस का मजबूत गढ़ है. इस सीट पर अबतक 15 बार लोकसभा चुनाव हुए हैं, इनमें से 11 बार कांग्रेस जीती है. 1952 में इस सीट पर गणतंत्र परिषद ने जीत हासिल की थी. 1957 में ये सीट परिसीमन की वजह से वजूद में नहीं था. 1962 में हुए चुनाव में यहां से कांग्रेस ने जीत हासिल की. इसके बाद इस सीट से कांग्रेस की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ वो 36 साल तक यानी कि 1998 तक जारी रहा. 62 में यहां से जगन्नाथ राव चुनाव जीते. 1967 में कांग्रेस ने खगपति प्रधानी को मैदान में उतारा. प्रधानी इस सीट से चुनाव जीते. इसके बाद लगातार 1998 तक कांग्रेस उनपर भरोसा करती रही और वे जीतते रहे.
1999 में यहां के मतदाताओं का कांग्रेस से मोहभंग हुआ. बीजेपी के परशुराम मांझी इस सीट से चुनाव जीते. 2004 में भी इस सीट से बीजेपी के टिकट पर परशुराम मांझी ने फतह हासिल की. 2009 में कांग्रेस ने एक बार फिर यहां वापसी की. प्रदीप कुमार मांझी इस सीट से चुनाव जीते. हालांकि 2014 में बीजेडी ने इस सीट पर पहली बार एंट्री दर्ज की और कांग्रेस के जबड़े से जीत छीन ली.
सामाजिक ताना-बाना
नबरंगपुर लोकसभा का विस्तार ओडिशा के कोरापुट, मल्कानगिरी और नबरंगपुर जिलों में है. आदिवासियों की बहुलता की वजह से यह सीट एसटी के लिए सुरक्षित है. अगर यहां की आबादी की बात करें तो 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी 21 लाख 24 हजार 995 थी. यहां की लगभग 93 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है, जबकि 7 फीसदी आबादी का निवास शहरी इलाकों में है. इस सीट पर अनुसूचित जनजाति का आंकड़ा 56.5 फीसदी है, जबकि 16.89 प्रतिशत जनसंख्या अनुसूचित जातियों की है.
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस संसदीय सीट पर मतदाताओं की संख्या 12 लाख 97 हजार 210 थी. इनमें से पुरुष मतदाता 6 लाख 45 हजार 875 थे, जबकि महिला मतदाताओं की संख्या 6 लाख 51 हजार 335 थी.
इस सीट पर विधानसभा की 7 सीटें हैं. ये सीटें हैं उमरकोट, झारीग्राम, नबरंगपुर, डाबूगाम, कोटपद, मल्कानगिरी, चित्रकोंडा. 2014 के विधानसभा चुनाव में कोटपद और डाबूगाम सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार जीते थे, बाकी 5 सीटों पर बीजू जनता दल का कब्जा रहा था.
2014 का जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान इस सीट पर रोमांचक मुकाबला हुआ था. बीजेडी ने मात्र 2042 वोटों के अंतर से ये सीट कांग्रेस के जबड़े से छीन ली थी. बीजेडी के बलभद्र मांझी को 3 लाख 73 हजार 887 वोट मिले थे. जबकि कांग्रेस के प्रदीप कुमार मांझी को 3 लाख 71 हजार 845 वोट मिले. बीजेपी तीसरे स्थान पर रही थी. पार्टी कैंडिडेट परशुराम मांझी को 1 लाख 38 हजार 430 वोट मिले थे. 2014 में कांग्रेस को शिकस्त देने में NOTA वोटों की अहम भूमिका रही. इस सीट पर 44 हजार 408 मतदाताओं ने NOTA बटन दबाया था. NOTA वोटों का आंकड़ा बीजेपी को मिलने वाले वोटों के बाद चौथे नंबर पर था. 2014 में यहां मतदान का प्रतिशत 78.80 प्रतिशत रहा था.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
बीजेडी सांसद बलभद्र मांझी की लोकसभा में यह पहली पारी है. राजनीति में आने से पहले बलभद्र मांझी रेलवे में चीफ इंजीनियर थे. 57 साल के बलभद्र मांझी एक बेटे और एक बेटी के पिता हैं. बलभद्र मांझी रेलवे में नौकरी के दौरान तब चर्चा में आए जब 1999 के सुपर साइक्लोन के दौरान उन्होंने रहामा-पारादीप के बीच क्षतिग्रस्त 23 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन को रिकॉर्ज 20 दिन में ठीक कर दिया था.
बलभद्र मांझी लोकसभा की कुल 321 बैठकों में से 260 दिन सदन में मौजूद रहे. सदन में जन सामान्य से जुड़े 197 सवाल पूछे. बलभद्र मांझी लोकसभा 75 डिबेट्स में भाग लिए. सांसद निधि फंड के तहत मिलने वाले 25 करोड़ की राशि में से इन्होंने 17.61 करोड़ रुपये विकास के कार्यों पर खर्च किए.