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ओडिशा में BJD को तीसरा झटका, बीजेपी में शामिल हुए सांसद बलभद्र मांझी

चुनावी मौसम में नेताओं के दल बदलने का सिलसिला जारी है. ओडिशा की नबरंगपुर सीट से बीजू जनता दल (बीजेडी) के सांसद बलभद्र मांझी ने भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) का दामन थाम लिया है. बलभद्र मांझी ने हाल ही में बीजेडी से इस्तीफा दिया था.

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बलभद्र मांझी बीजेपी में हुए शामिल
बलभद्र मांझी बीजेपी में हुए शामिल

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चुनावी मौसम में नेताओं के दल बदलने का सिलसिला जारी है. ओडिशा की नबरंगपुर सीट से बीजू जनता दल (बीजेडी) के सांसद बलभद्र मांझी ने भारतीय जनता पार्टी(बीजेपी) का दामन थाम लिया है. बलभद्र मांझी ने हाल ही में बीजेडी से इस्तीफा दिया था.

उन्होंने केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, केंद्रीय मंत्री जुएल ओरम, ओडिशा के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह और बैजयंत जय पांडा समेत अनेक वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हुए. बीजेपी में शामिल होने के बाद मांझी ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की.  

उनके जुड़ने पर धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि चूंकि बलभद्र मांझी रेलवे पृष्ठभूमि से हैं, इसलिए उन्होंने केंद्र और राज्य को एक साथ लाकर एक अनूठा मॉडल विकसित किया था. उनकी पार्टी ने उन्हें छोड़ दिया. अब वे पीएम मोदी के साथ जुड़ गए हैं. हम उनका स्वागत करते हैं.

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बता दें कि राजनीति में आने से पहले बलभद्र मांझी रेलवे में चीफ इंजीनियर थे. 57 साल के मांझी एक बेटे और एक बेटी के पिता हैं. बलभद्र मांझी रेलवे में नौकरी के दौरान तब चर्चा में आए जब 1999 के सुपर साइक्लोन के दौरान रहामा-पारादीप के बीच क्षतिग्रस्त 23 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन को रिकॉर्ड 20 दिन में ठीक कर दिया था.

बीजेडी को ट्रिपल झटका

बीते कुछ दिनों में बीजेपी से जुड़ने वाले बलभद्र मांझी बीजेडी के तीसरे नेता हैं. इससे पहले गुरुवार को ओडिशा से विधायक और बीजेडी सरकार में मंत्री रह चुके दामोदर राउत ने भी बीजेपी का दामन थामा.  ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने हाल ही में उन्हें कैबिनेट से निकाल दिया था. राउत धर्मेंद्र प्रधान की मौजूदगी में बीजेपी में शामिल हुए.

राउत से पहले बीजेडी के बैजयंत जय पांडा ने भी बीजेपी का दामन थामा. लोकसभा और विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते बीजेपी ने जय पांडा को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी. पार्टी ने उन्हें उपाध्यक्ष और प्रवक्ता की जिम्मेदारी दी है. पांडा चार बार सांसद रह चुके हैं. साथ ही वे बीजेडी के संस्थापक सदस्यों में से रहे हैं.

पार्टी के इस फैसले से साफ है कि वो अपनी पकड़ पूर्वी राज्यों में मजबूत करना चाहती है. 2014 लोकसभा चुनावों में मोदी लहर के बावजूद बीजेपी ओडिशा में कोई खास कमाल नहीं कर पाई थी. 21 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को केवल 1 (सुंदरगढ़) सीट ही मिल पाई थी.

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