उत्तर प्रदेश के संसदीय सफर में बलिया लोकसभा का अपना अहम योगदान है. इस धरती ने कई महान हस्तियों से देश को नवाजा है. मंगल पांडे, चित्तू पांडे, जय प्रकाश नारायण और हजारी प्रसाद द्विवेदी समेत कई विभूतियों के अलावा एक प्रधानमंत्री (चंद्रशेखर) भी देश को दिया. प्रदेश के 80 संसदीय क्षेत्रों में शामिल बलिया (72वीं संख्या) आजाद हिंदुस्तान में शुरुआत से ही लोकसभा क्षेत्र के रूप में शामिल रहा है. यह क्षेत्र पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की कर्मभूमि के नाम से जानी जाती है. यहां का राजनीतिक इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है. यह शहर गंगा और सरयू नदी के किनारे बसा है.
माना जाता है कि महान ऋषि जमदग्नि, वाल्मीकि, भृगु और दुर्वासा आदि ऋषियों के आश्रम बलिया में ही थे. एक समय यहां बौध धर्म का काफी प्रभाव था. प्राचीन काल में बल्लिया के नाम से जाने जाने वाला बलिया कोसाला राज्य में शामिल था. छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कोसला सोलह महाजनपदों में एक था. प्राचीन काल के अलावा मध्ययुगीन काल में भी इसकी महत्ता बनी रही.
ब्रिटिश राज में भी बलिया शहर अपने त्याग, बलिदान और साहस के लिए जाना गया. इस शहर का आजादी की लड़ाई में अहम योगदान रहा. देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) के नायक मंगल पांडे इसी जिले के नगवां गांव में पैदा हुए थे. 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 20 अगस्त 1942 को चित्तू पांडे ने लोकप्रिय सरकार का गठन किया और यहां कांग्रेस राज घोषित कर दिया. आजादी के बाद
पहले यह गाजीपुर जिले का एक हिस्सा था, लेकिन बाद में स्वतंत्र रूप से जिला हो गया. इसे राजा बलि की धरती के रूप में माना जाता है और इस कारण इस क्षेत्र का नाम बलिया पड़ा.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
बलिया के संसदीय इतिहास की बात की जाए तो यह सीट पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की सीट के लिए जानी जाती है. चंद्रशेखर ने 1977 में बलिया से जीतकर पहली बार लोकसभा पहुंचे थे. इसके बाद 1980 के चुनाव में भी जीत हासिल की. लेकिन 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में चंद्रशेखर जगन्नाथ चौधरी के हाथों चुनाव हार गए. हालांकि इसके बाद वह यहां से लगातार 6 बार चुनाव जीते और उन्होंने 4 बार जगन्नाथ चौधरी (1980, 1989, 1991 और 1996) को हराया. चंद्रशेखर 10 नवंबर, 1990 में देश के नौंवे प्रधानमंत्री बने, लेकिन गठबंधन की यह सरकार महज 7 महीने ही चली और 21 जून 1991 को यह सरकार गिर गई.
8 बार यहां से सांसद रहे चंद्रशेखर का निधन जुलाई, 2007 में हो जाने से उपचुनाव कराया गया जिसमें उनके बेटे नीरज शेखर ने जीत हासिल की. 2009 के लोकसभा चुनाव में भी नीरज को जीत मिली. लेकिन 2014 के चुनाव में नीरज को भरत सिंह ने हरा दिया. बलिया संसदीय सीट से बीजेपी को पहली जीत 2014 में मिली. बलिया 1952 में गाजीपुर के साथ संयुक्त संसदीय क्षेत्र के रूप में शामिल था और राम नगीना सिंह यहां से पहले सांसद बने.
सामाजिक तानाबाना
बलिया जिले की आबादी 32.4 लाख है जो उत्तर प्रदेश का 29वां सबसे ज्यादा आबादी वाला जिला है. क्षेत्रफल के लिहाज से यूपी का 31वां जिला है. 32.4 लाख की आबादी में पुरुषों की संख्या 52 फीसदी (16.7 लाख) और महिलाओं की संख्या 15.7 लाख (48%) है. कुल आबादी में 81 फीसदी आबादी सामान्य वर्ग की है, जबकि 15% आबादी अनुसूचित जाति और 3% आबादी अनुसूचित जनजाति की है.
धर्म पर आधारित आबादी के आधार पर देखा जाए तो 92.79% लोग हिंदू हैं जबकि यहां पर 6.61 फीसदी मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं. इसके अलावा ईसाइयों की करीब 4 हजार आबादी भी बलिया में निवास करती है. 2011 की जनगणना के मुताबिक 1000 पुरुषों पर 937 महिलाएं हैं. सामान्य वर्ग में यह औसत 940 है तो अनुसूचित जनजातियों की आबादी 938 है. यहां की साक्षरता दर 71 फीसदी (81 फीसदी पुरुष और 60 फीसदी महिलाएं) है.
बलिया संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा (फेफना, बलिया नगर, बैरिया, जहूराबाद और मोहम्मदाबाद) क्षेत्र आते हैं और यह सभी पांचों सीट सामान्य वर्ग के लिए है. इन विधानसभा सीट की बात की जाए तो फेफना विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उपेंद्र तिवारी विधायक हैं और उन्होंने पिछले चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की अंबिका चौधरी को 17,897 मतों के अंतर से हराया था. उपेंद्र तिवारी ने 2012 के विधानसभा चुनाव में भी जीत हासिल की थी.
बलिया नगर विधानसभा सीट से भी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है. बीजेपी के आनंद स्वरूप शुक्ला ने एकतरफा मुकाबले में पिछले चुनाव में समाजवादी पार्टी के लक्ष्मण को 40,011 मतों से हराया था. बैरिया विधानसभा सीट पर भी बीजेपी का ही कब्जा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सुरेंद्र नाथ सिंह ने समाजवादी पार्टी के जयप्रकाश अंचल को 17,077 मतों के अंतर से हराया था. 2012 के चुनाव में सपा के लिए अंचल ने जीत हासिल की थी.
जहूराबाद विधानसभा क्षेत्र से सुखदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर विधायक हैं और उन्होंने बहुजन समाज पार्टी के कालीचरण को 18,081 मतों से हराया था. ओम प्रकाश राजभर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री हैं और अपने ही सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपनाए हुए हैं. मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी की अलका राय विधायक हैं जिन्होंने बसपा के सिबकतुल्लाह अंसारी को 32,727 मतों के अंतर से हराया था. बलिया के पांचों विधानसभा सीट पर बीजेपी (4) और उसके साझीदार सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (1) का कब्जा है.
2014 का जनादेश
2014 में बलिया में हुए लोकसभा चुनाव में 17,68,271 इलेक्टर्स थे जिसमें 53.29 फीसदी (9,42,211) मतदाताओं ने 1,757 पोलिंग बूथ में जाकर वोटिंग में हिस्सा लिया था. 15 प्रत्याशियों के बीच हुए इस चुनाव में बीजेपी के भरत सिंह ने 38.18 फीसदी (3,59,758) वोट हासिल किया और उन्होंने अपने करीबी प्रतिद्वंद्वी सपा के नीरज शेखर के 1,39,434 मतों के अंतर से हराया था.
पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर को चुनाव में 2,20,324 मत (23.38%) हासिल हुए. बसपा के उम्मीदवार वीरेंद्र चौथे स्थान पर रहे.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
2014 के लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने वाले भरत सिंह ने स्नातक तक की शिक्षा हासिल की है. उनका पेशा मूल रूप से खेती है. उनके परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटी है.
भरत सिंह पहली बार लोकसभा पहुंचे हैं. लोकसभा में उनकी उपस्थिति भी बेहद शानदार रही है. वह हेल्थ एंड फैमिली वेलफेयर स्टैंडिंग कमिटी के सदस्य हैं. 8 जनवरी, 2019 तक चले सत्रों में उनकी उपस्थिति 94 फीसदी रही है. 16 में से 6 सत्रों में उनकी उपस्थिति 100 फीसदी रही जबकि अन्य 9 सत्रों में 90 फीसदी से ज्यादा संसद में उपस्थित रहे.
उनकी सबसे खराब उपस्थिति 2016 के बजट सत्र के दूसरे चरण में रही जहां उनकी उपस्थिति 69 फीसदी रही. जहां तक बहस में भाग लेने का सवाल है तो उन्होंने 51 बहस में हिस्सा लिया. हालांकि इस मामले में वह राष्ट्रीय औसत (65.3%) और राज्य औसत (107.2%) से कम है. संसद सत्र के दौरान सवाल पूछने के मामले में सवालों की झड़ी लगा दी. उन्होंने 425 सवाल पूछे.
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले बलिया से 2014 में बीजेपी ने पहली बार अपनी जीत का खाता खोला था. 5 साल बाद लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सपा-बसपा गठबंधन के बाद बीजेपी के लिए अपनी यह सीट बचाए रख पाना आसान नहीं होगा. चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर पिछली बार सपा के टिकट पर दूसरे नंबर पर रहे थे और इस बार वो कड़ी चुनौती दे सकते हैं. देखना होगा कि बीजेपी अपनी सीट बचा पाती है या फिर नए समीकरण का फायदा उठाते हुए नीरज तीसरी बार लोकसभा पहुंच पाते हैं या नहीं.