लोकसभा चुनाव के सातवें और आखिरी चरण में आठ राज्यों की 59 सीटों पर वोटिंग जारी है. मतदान के शुरू होते ही बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अप्रैल-मई के महीने और सात चरणों में चुनाव कराए जाने को लेकर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा इतनी गर्मी में इतना लंबा चुनाव चलना उपयुक्त नहीं है. नीतीश ने सुझाव दिया है कि देश में फरवरी-मार्च या फिर अक्टूबर-नवंबर के महीने में चुनाव होने चाहिए. इसके अलावा कम से कम चरणों में चुनाव कराए जाने चाहिए.
साध्वी प्रज्ञा के बयान पर नीतीश ने क्या कहा?
नाथूराम गोडसे पर साध्वी प्रज्ञा के दिए बयान के बाद सियासी भूचाल आ गया था. अब एनडीए के साथी नीतीश कुमार ने साध्वी प्रज्ञा के बयान की निंदा करते हुए कहा कि गांधी के खिलाफ ऐसे बयान बर्दाश्त नहीं किए जा सकते. हालांकि इस मामले में बीजेपी क्या फैसला लेती है इसे नीतीश कुमार ने बीजेपी का आंतरिक मामला बताया. बता दें कि भोपाल संसदीय सीट से चुनावी मैदान में उतरी आतंकवाद मामले की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ने नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताया था.
नीतीश कुमार ने वोट देने के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव के कार्यक्रम में बदलाव करने की जरूरत है. मैंने चुनाव प्रचार के दौरान महसूस किया है कि गर्मी के महीने और लंबे चरण के चलते लोगों को रैली में आने और मतदान में काफी परेशानी होती है. इसलिए गर्मी के महीने में चुनाव इतना लंबा नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि इसके लिए सर्वदलीय मीटिंग होनी चाहिए.
नीतीश कुमार ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद चुनाव कार्यक्रम में सुधार के लिए वो देश की सभी पार्टियों को पत्र लिखेंगे. इसके लिए सर्वदलीय बैठक होनी चाहिए. यह बात होनी चाहिए कि चुनाव इतना लंबा नहीं होना चाहिए बल्कि एक से दो चरण में चुनाव हो तो बेहतर है. उन्होंने कहा कि एक चरण से दूसरे चरण के बीच इतना लंबा गैप नहीं होना चाहिए.
नीतीश ने कहा कि पहले चरण में जिन सीटों पर चुनाव हुए हैं, उसके अगल-बगल की सीटों पर भी उसी चरण में चुनाव कराए जा सकते थे. इसके अलावा अप्रैल-मई के बजाय फरवरी-मार्च या फिर अक्टूबर-नवंबर के महीने में ही होने चाहिए. नीतीश ने कहा, 'मैं इस बात को अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूं.'दिलचस्प बात यह है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग और चुनाव कार्यक्रम को लेकर लगातार सवाल खड़े किए हैं. कुछ दलों ने रमजान के महीने में चुनाव कराए जाने के चलते सवाल खड़े किए थे. इसके अलावा कई दलों ने चुनाव आयोग पर पक्षपात करने का आरोप भी लगाया. हालांकि यह पहली बार है कि बीजेपी के सहयोगी दल ने पूरे चुनाव कार्यक्रम पर सवाल खड़े किए हैं.